दूसरे बेल्ट एंड रोड फोरम की मेजबानी करने के तीन हफ्ते बाद, पेइचिंग अब एशियाई सभ्यताओं का संवाद सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। आज 47 एशियाई देशों और एशिया से बाहर के देशों के प्रतिभागी, चीनी राजधानी में सांस्कृतिक विविधता का जश्न मनाने, सांस्कृतिक संबंध बढ़ाने और समुदाय की एक नई भावना को बढ़ावा देने के लिए इकट्ठा हुए हैं।
इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि सभी एशियाई देश आदान-प्रदान और आपसी सीख के विषय पर चर्चा करने के लिए एक साथ नजर आए हैं, और उम्मीद की जा रही है कि यह संवाद सम्मेलन अतीत को प्रतिबिंबित करने और भविष्य की ओर देखने का अवसर प्रदान करेगा।
वैसे भी इस सम्मेलन का उद्देश्य विभिन्न सभ्यताओं के बीच आपसी विश्वास और आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है। इस सम्मेलन की थीम है एशियाई देशों के बीच आदान-प्रदान और आपसी सीख, जो कि हर समय की जरूरतों के अनुरूप है। यह सम्मेलन विभिन्न सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मों के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व की तलाश करने का एक प्रबल और सजीव उदाहरण पेश करता है।
देखें तो इस सम्मेलन की महत्ता इस बात से भी लगायी जा सकती है कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग अलग-अलग मंचों पर कई बार एशियाई सभ्यताओं के बीच आदान-प्रदान और एशिया में अधिक विकास और सहयोग जीवन शक्ति को बढ़ावा देने की बात कह चुके हैं।लेकिन मैं समझता हूं कि एशिया सभ्यताओं का संवाद सम्मेलन न तो नया है, और न ही एक विशुद्ध चीनी विचार है। इस तरह के संवाद की आवश्यकता हमने अतीत में और वर्तमान में इसकी रचनात्मक क्षमता के कारण प्रचुर मात्रा में अच्छे से देखी है। सभ्यताओं के बीच आदान-प्रदान न केवल एशियाई देशों, बल्कि एशिया से बाहर के देशों की जनता के हित में है और यकीनन विभिन्न देश इस तरह के संवाद सम्मेलन की जरूरत महसूस कर रहे होंगे।
एशिया का एक गौरवशाली इतिहास है, साथ ही मानव सभ्यताओं का स्रोत भी है। देखा जाए तो एशियाई सभ्यताएं सबसे ज्यादा स्थायी, स्थिर और लचीली सभ्यताओं से संबंधित हैं। अक्षीय युग में मानवता के पांच विचार प्रणालियों में से चार का जन्म यहीं हुआ। इस क्षेत्र में दुनिया के सबसे लोकप्रिय धर्म- ईसाई धर्म, इस्लाम, हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और ताओ धर्म, सब मौजूद हैं।
वैसे भी पिछले साल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंगापुर में छात्रों को एशिया के उज्ज्वल भविष्य के सामने चुनौती वाले प्रश्न का जवाब देते हुए कहा था कि 21वीं सदी एशिया की शताब्दी है। 21वीं सदी को एशिया की सदी बनाकर रहना है, यह हमारे लिए चुनौती है। यह अपने आप में विश्वास करना और यह जानना आवश्यक है कि अब हमारी बारी है। हमें इस अवसर का फायदा उठाना होगा और उसका नेतृत्व करना होगा।
एशियाई दृश्य एक सामंजस्यपूर्ण संतुलन है, जिसमें सभी संपूर्ण भाग हैं। पूरी उम्मीद है कि यह संवाद सम्मेलन एशियाई देशों के बीच साझा किए गए निहित सिद्धांतों की पहचान करने की कोशिश करेगा। इस आयोजन का एक प्रमुख लक्ष्य एक बहुत ही आवश्यक प्रक्रिया शुरू करना भी है, जिसके दौरान एशियाई युवा अपनी समृद्ध विविध सभ्यताओं के बीच सहयोग और आपसी सीख की सदियों पुरानी भावना का पता लगा सकेंगे। यकीनन एशिया दुनिया के लिए एक आदर्श बन सकता है।
लेखक : अखिल पाराशर
(लेखक चाइना रेडियो इंटरनेशनल में पत्रकार हैं)