न्यू यॉर्क: कई साल तक न्यूनतम परमाणु शक्ति तक सीमित रहने के बाद अब राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने लंबी दूरी की अपनी कई बलिस्टिक मिसाइलों को फिर से बना लिया है। अमेरिका के अखबार 'द न्यू यॉर्क टाइम्स' ने खबर दी है कि चीन के इस कदम ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा पर प्रशांत क्षेत्र में मिसाइल रक्षा प्रणालियां तैनात करने के कार्यक्रम को स्थगित करने दबाव बना दिया है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन का कुछ मिसाइलों को ज्यादा शक्तिशाली बनाने का फैसला 'विशेष रूप से गौर करने लायक' है क्योंकि हथियारों का छोटा रूप बनाने और तीन या इससे अधिक हथियारों को एक ही मिसाइल में डालने की तकनीक चीन के पास दशकों से है। लेकिन, चीन के कुछ नेताओं ने इन्हें जानबूझकर अनुपयोगी बना दिया।
रिपोर्ट के मुताबिक चीन के पुराने नेताओं की अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध के दौरान हुई परमाणु प्रतिस्पर्धा जैसी हथियारों की दौड़ में रुचि नहीं थी।
इसमें कहा गया है, 'ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अगल राह अपनाई है और वह दक्षिण चीन सागर में विवादित द्वीपों पर सैन्य वायुक्षेत्र बना रहे हैं। वह इसे चीन का 'वायु रक्षा पहचान क्षेत्र' घोषित कर रहे हैं, पहली बार खाड़ी क्षेत्र से होकर चीन की पनडुब्बियां भेज रहे हैं और साइबर हथियारों की नई शक्तिशाली आयुधशाला बना रहे हैं।'
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि चीन के इस कदम से अमेरिका के अधिकारी हैरान हैं और चीन से निपटने के लिए ओबामा प्रशासन को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया कि ओबामा पर प्रशांत क्षेत्र में मिसाइल रक्षा प्रणालियां तैनात करने का बहुत ज्यादा दबाव है। हालांकि, अमेरिकी नीति आधिकारिक रूप से कहती है कि ये प्रणालियां उत्तर कोरिया का जवाब देने के लिए हैं, चीन के लिए नहीं।