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चीन को तालिबान से इतना 'प्यार' कैसे हो गया? जानिए- 'ड्रैगन' के दिमाग की खुराफात

कई बार चीन ऐसे बयान भी दे चुका है, जो इशारा कर रहे हैं कि उसे तालिबान को विश्व स्तर पर मान्यता देने में शायद कोई परहेज नहीं होगा। लेकिन, अब सवाल है कि चीन आखिर ऐसा क्यों करेगा? चीन आखिर क्यों अफगानिस्तान और तालिबान पर इतना 'प्यार' लुटा रहा है?

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated : August 24, 2021 13:20 IST
Taliban co-founder Mullah Abdul Ghani Baradar (left) and Chinese Foreign Minister Wang Yi (Right).
Image Source : AP/PTI Taliban co-founder Mullah Abdul Ghani Baradar (left) and Chinese Foreign Minister Wang Yi (Right).

नई दिल्ली/काबुल: अमेरिका सहित कई देशों ने अफ़गानिस्तान की फॉरेन फंडिग पर रोक लगा दी है। अमेरिका ने अफगानिस्तान के करीब 70 हज़ार करोड़ रुपये रोक दिये हैं। लेकिन, वहीं दूसरी ओर जब से अफगानिस्तान में तालिबान ने टेकओवर किया है, चीन बहुत खुश नजर आ रहा है। कई बार चीन ऐसे बयान भी दे चुका है, जो इशारा कर रहे हैं कि उसे तालिबान को विश्व स्तर पर मान्यता देने में शायद कोई परहेज नहीं होगा। लेकिन, अब सवाल है कि चीन आखिर ऐसा क्यों करेगा? चीन आखिर क्यों अफगानिस्तान और तालिबान पर इतना 'प्यार' लुटा रहा है? इस रिपोर्ट में इसके पीछे के कारणों पर नजर डालेंगे-

'सोने' की खान है अफ़ग़ानिस्तान!

चीन के लिए इस समय अफ़ग़ानिस्तान सोने की खान है, जिसके पास उन कीमती खनिज़ों का भंडार है जिनकी कीमत आज की तारीख़ में करीब साढ़े सात लाख करोड़ रुपये है। अमेरिकन ज्योलॉजिकल सर्वे ने 2007 में एक अनुमान लगाया था, जिसके मुताबिक अफगानिस्तान में करीब साढ़े सात लाख करोड़ रुपये के खनिज मौजूद हैं। इनमें 3 लाख करोड़ रुपये का लौह अयस्क, 2 लाख करोड़ का तांबा, 18 हज़ार करोड़ रुपये का सोना, 60 हज़ार करोड़ रुपये का नायोबियम है, जिससे सुपरकंडक्टिंग स्टील बनाया जाता है और 37 हज़ार करोड़ रुपये का कोबाल्ट है।

अमेरिका ने 5 साल तक किया सर्वे

साल 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान में एंट्री मारी और 2004 तक तालिबान को भगा दिया। अफ़गानिस्तान में अमेरिका के कब्ज़े के बाद अमेरिकन जियोलॉजिकल सोसाइटी ने अफगानिस्तान में मौजूद खनिजों की जांच शुरू की। करीब 5 साल तक चले सर्वे के बाद साल 2006 में अमेरिका को अफगानिस्तान में लिथियम और नाइओबियम जैसे कीमती खनिज़ों के भंडार होने की जानकारी मिली। 

दुनिया का सबसे बड़ा लिथियम भंडार

पेंटागन के मुताबिक, अफ़गानिस्तान के गजनी प्रांत में बड़े पैमाने पर लिथियम जमा है। यह अब दुनिया का सबसे बड़ा लिथियम भंडार है। यही वजह है कि अफगानिस्तान को लिथियम का ‘सऊदी अरब’ भी कहा जाता है।आज की तारीख़ में पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा मांग लीथियम की है क्योंकि लीथियम का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक कार, लैपटॉप, मोबाइल, टैबलेट, कंप्यूटर की बैटरी में किया जाता है।

इलेक्ट्रिक कारों के बाजार पर हुकुमत जमाना चाहता है चीन!

यही वजह है कि आने वाले समय में जब इलेक्ट्रिक कारों का बाज़ार बढ़ेगा तो लीथियम आयन बैटरियों का बाज़ार भी तेज़ी से बढ़ेगा और बढ़ भी रहा है। ऐसे में चीन की नज़रें अफ़गानिस्तान की उन माइन्स पर है, जहां लीथियम खनीज के भंडार छुपे हुए हैं। इस लीथियम के इस्तेमाल से चीन इलेक्ट्रिक कारों के बाज़ार पर अपनी हुकुमत जमा सकता है।

नायोबियम पर भी चीन की नजर

अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के अनुसार, अफगानिस्तान में नायोबियम का भी बहुत बड़ा भंडार है। इसका इस्तेमाल सुपरकंडक्टिंग स्टील बनाने में किया जाता है। ऐसे में चीन की नजर अफगानिस्तान के नाइओबियम पर भी है। तालिबान को अपने अहसानों तले दबाकर चीन इन खनिजों को हासिल करना चाहता है, जिससे बाद में वह सुपरकंडक्टिंग स्टील के मार्केट पर भी हुकुमत चला सके।

अफगानिस्तान में तेल का बड़ा भंडार

अफगानिस्तान में बड़ा तेल भंडार भी है। एक आकंड़े के मुताबिक, अफगानिस्तान में करीब 1600 मिलियन बैरल तेल और साढ़े 15 हज़ार ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस भंडार होने का अनुमान है। हालांकि, पेट्रोलियम सेक्टर में चीन पहले से अफगानिस्तान में माइनिंग कर रहा है। 2011 में चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (CNPC) ने  करीब 300 करोड़ रुपये में 25 साल के लिए कच्चा तेल निकालने का टेंडर लिया था। इसमें करीब 87 मिलियन बैरल तेल का भंडार था। 

डेढ़ करोड़ टन कीमती खनीज भी मौजूद

इसके अलावा अफ़गान की धरती में लगभग डेढ़ करोड़ टन कीमती खनीज होने का अनुमान है। इसमे ख़ास तौर पर तांबा, कोयला, लोहा, गैस, कोबाल्ट, पारा, सोना, लिथियम और थोरियम का दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है। यही कारण है कि चीनी कंपनियों ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से लगभग 40 किलोमीटर दूर लोगार प्रांत में तांबे की खदान के अधिकार भी हासिल कर लिए हैं। 

तालिबान से चीन की 'दोस्ती' का कारण?

अफगानिस्तान से अमेरिका के जाने से बाद अब चीन, पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान के माइनिंग इलाकों पर अपना कब्ज़ा करना चाहता है। इससे व्यापार के अलावा मिडिल एशिया में चीन की ताक़त और बढ़ सकती है। इसीलिए वह तालिबान को सपोर्ट करता दिख रहा है ताकि वक्त आने पर वह बदले में इन खनिजों का व्यापार कर सके। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन को अफ्तानिस्तान से नहीं बल्कि वहां मौजूद खनिजों से 'प्यार' है।

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