बीजिंग: लद्दाख की गलवन घाटी में भारतीय सैनिकों के साथ उलझना चीन की कम्युनिस्ट सरकार के लिए बहुत भारी पड़ रहा है। जिनपिंग सरकार ने गलवान में 40 से ज्यादा सैनिकों की मौत को छिपाया जिससे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के पूर्व दिग्गजों और मौजूदा जवानों के बीच इस कदर नाराजगी बढ़ती जा रही है कि वो कभी भी सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह कर सकते हैं।
वाशिंगटन पोस्ट के ओपिनियन में चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के एक पूर्व नेता के पुत्र और चीन के लिए सिटीजन पावर इनिशिएटिव के अध्यक्ष जियानली यांग ने इसका खुलासा किया।
जियानली ने लिखा कि लंबे समय से पीएलए चीन की सत्ता का मुख्य हिस्सा रहा है। अगर देश की सेवा में कार्यरत पीएलए कैडर की भावनाएं आहत होती हैं तो ये रिटायर सैनिकों के साथ मिलकर देश की सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी करेगा।
वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित लेख में कहा गया है कि बीजिंग को डर है कि अगर वह यह मान लेता है कि भारत से ज्यादा उसके अपने सैनिक मारे गए थे तो देश में अशांति फैल सकती है और सीसीपी की सत्ता भी दांव पर लग सकती है।
यांग ने लिखा है, 'सीसीपी की सरकार के लिए पीएलए ने अब तक एक मजबूत स्तंभ की तरह काम किया है। अगर पीएलए के मौजूदा सैनिकों की भावनाएं आहत होती हैं और वे लाखों दिग्गजों (इनमें पीएलए के वो सदस्य शामिल हैं जो शी से नाराज हैं..जिनमें पीएलए को व्यवसायिक गतिविधियों से अलग करने की शी की मुहिम के विरोधी हैं) के साथ आ जाते हैं तो शी के नेतृत्व को मजबूती के साथ चुनौती दे सकते हैं।'
उन्होंने कहा कि चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान से जब पूछा गया कि इस झड़प में कितने सैनिक मारे गए तो उन्होंने साफ कह दिया कि इस बारे में उनके पास कोई जानकारी ही नहीं ही। अगले दिन जब उनसे भारतीय मीडिया की खबरों का हवाला दिया, जिसमें चीन के 40 से ज्यादा सैनिकों के मारे जाने की बात थी तो उन्होंने इसे गलत सूचना करार दे दिया।
यांग लिखते हैं, 'घटना के एक हफ्ते बाद भी चीन ने यह नहीं माना कि उसके कितने सैनिक मारे गए। जबकि भारत ने अपने सैनिकों के शहीद होने की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार की और उनका पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।' कम्युनिस्ट सरकार का सैनिकों के प्रति यह बर्ताव पीएलए के 50 लाख से अधिक पूर्व सैनिकों को बहुत आहत किया है और सरकार के खिलाफ उन्हें गुस्सा बढ़ते जा रहा है।