बीजिंग: चीन में दो जून की रोटी की खातिर लाखों की तादाद में मां-बाप गांवों में अपने जिगर के टुकड़ों को छोड़ कर शहरों की तरफ कूच कर गए हैं। गांवों में तकरीबन 6 लाख 80 हजार बच्चे रिश्तेदारों के सहारे पल रहे हैं और बेरुखी तथा उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। सरकारी अखबार पीपुल्स डेली की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे ज्यादातर बच्चों की देखरेख उनके नामित अभिभावक करते हैं। कई मामलों में उनके मां या बाप को अपने बच्चों की देखरेख के लिए गांव लौटने को कहा गया है।
जिंदगी की इस जद्दोजहद में मां-बाप के लाड-प्यार से महरूम और गांव में पीछे छूट गए ये बच्चे 3 दशक में तरक्की की लंबी छलांग लगा कर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की चीन की कामयाबी की दास्तान का एक उदास और अंधेरा हिस्सा बन गए हैं। चीन की तरक्की की यह दास्तान हजारों गांवों के वीरान होने और स्थिर रोजगार की खोज में शहर की तरफ लाखों लोगों के पलायन के बगैर अधूरी है। अपने हुनर और खून पसीने से विकास रचने वाले ये श्रमिक मां-बाप साल में एक बार गांव लौटते हैं और अपने जिगर के टुकड़ों के साथ कुछ दिन गुजारते हैं। अकसर यह मौका फरवरी में आता है जब पूरा चीन नववर्ष की खुशियों में डूब जाता है।
शहरों में हुकोउ या निवास परमिट के नियम कठोर होते हैं। लिहाजा श्रमिकों को अपने बच्चों को अपने बूढ़े दादा-दादी या किसी अभिभावक के साथ छोड़ना पड़ता है। ये परमिट सिर्फ जन्म के इलाके में मिलते हैं। देश के दूसरे हिस्सों में इन बच्चों को शिक्षा एवं अन्य सामाजिक लाभ नहीं मिलते। शहरों में श्रमिकों के पलायन का सिलसिला अब भी जारी है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन आयोग (NHFPC) के आंकड़ों के अनुसार 2015 में चीन में गांवों से 25 करोड़ 40 लाख श्रमिक पलायन कर शहर गए थे। उम्मीद की जा रही है कि 2030 तक उनकी संख्या बढ़ कर 31 करोड़ 10 लाख हो जाएगी।
बहरहाल, चीन ने गांवों में पीछे छूट गए इन बच्चों की देख-भाल में सुधार के लिए नवंबर 2016 में एक अभियान शुरू किया। पीपुल्स डेली की रिपोर्ट के अनुसार, गांव में पीछे छूटे इन बच्चों में से अनेक के नाम स्कूलों से कट गए थे। ऐसे 11,821 बच्चों का फिर से स्कूल में नाम लिखाया गया है।