BRICS समूह (भारत, रूस, चीन, ब्राजील और साउथ अफ्रीका) का 9वां शिखर सम्मेलन 3 से 5 सितंबर तक दक्षिण चीन के तटीय शहर श्यामन में आयोजित होने जा रहा है। इस शिखर सम्मेलन को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि यह ब्रिक्स देशों के बीच मतभेदों को दूर करने और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का एक अच्छा मौका होगा। इस साल ब्रिक्स सम्मेलन की अगुवाई करने वाले देश चीन को पूरी उम्मीद है कि श्यामन में होने वाला 9वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन सभी पक्षों के ठोस प्रयासों के साथ सफल रहेगा।
देखा जाए तो BRICS देश आर्थिक मुद्दों पर एक साथ काम करना चाहते हैं, लेकिन इनमें से कुछ के बीच भारी विवाद हैं। इन विवादों में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद प्रमुख है। संबंधों में गर्मजोशी के बावजूद भारत और चीन एक दूसरे को एक विवादित और सीमांत क्षेत्र में आर-पार खड़े पाते हैं। इतना ही नहीं अभी इन पाँच देशों के बीच BRICS तंत्र को औपचारिक रूप देने पर भी विचार किया जा रहा है। यानि कि ब्रिक्स का सैक्रेटेरिएट बनाने पर भी फिलहाल कोई सहमति नहीं बन पाई है। साथ ही इस विषय पर भी कोई साफ विचार नहीं है कि समूह में नए सदस्यों को कैसे और कब जोड़ा जाए। रुस और ब्राजील में हुए सम्मेलन किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुँचे थे। इन सबको देखते हुए यह 9वां शिखर सम्मेलन इन सभी मुद्दों पर बातचीत करने का एक मौका देता है, और इस सम्मेलन में ब्रिक्स देशों के नेता वैश्विक विकास की संभावनाओं, वैश्विक वृद्धि में ब्रिक्स की भूमिका और योगदान पर अवश्य ही बातचीत करेंगे।
साल 2011 में ब्रिक्स समूह का गठन हुआ था जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे। इसका उद्देश्य अपने आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव से पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को चुनौती देना और दुनिया के बाकी देशों के साथ इन पांच देशों के बेहतर आर्थिक रिश्ते कायम करना है। लेकिन विश्व की 43% जनसंख्या को जगह देने वाले यह देश अब वैश्विक मांग में कमी और वस्तुओं की गिरती कीमत की मार झेल रहे हैं, वहीं कुछ देशों में भ्रष्टाचार के मामले भी सामने आए हैं। रूस और ब्राज़ील आर्थिक मंदी की चपेट में हैं, जबकि दक्षिण अफ्रीका इस मंदी से सामना करने से बाल-बाल बचा है, वहीं विश्व विकास का इंजन समझी जा रही चीन की अर्थव्यवस्था की गति में भी ब्रेक लगा है।
यह सम्मेलन इसलिए भी अहमियत रखता है क्योंकि पिछले कुछ महीनों में चीन और भारत के संबंधों में जो खटास पैदा हुई है, उसे कम करने अथवा खत्म करने के लिए दोनों देशों के शीर्ष नेता बातचीत करना चाहेंगे। इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से अलग-अलग मुलाकात कर सकते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि ब्रिक्स देशों के बीच द्विपक्षीय मतभेद हल होने के बाद, शिखर सम्मेलन वास्तव में ब्रिक्स को एक नए स्तर तक पहुंचाने का अवसर खोल सकता है जिससे कि यह एक महत्वपूर्ण बहुपक्षीय खिलाड़ी के रूप में उभर सके।
इस बार ब्रिक्स सम्मेलन कई मायनों में काफी अहम है। इसकी अहमियत इस वर्ष इसलिए और भी बढ़ गई है क्योंकि चीन की अध्यक्षता में ब्रिक्स तंत्र इस साल दूसरे स्वर्णिम युग में प्रवेश कर गया है। श्यामन में इस साल के शिखर सम्मेलन में अधिक व्यावहारिक और ठोस सहयोग का निर्माण होगा, और ब्रिक्स में विश्वास और भरोसे में सुधार होगा। चीन भावी सहयोग को पांच देशों तक ही सीमित नहीं रखना चाहता है। गत मार्च में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि चीन "ब्रिक्स प्लस" के लिए विस्तार विधियों की खोज करेगा और विकासशील देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ वार्ता के जरिए व्यापक साझेदारी करेगा। पिछले दस वर्षों की प्रगति और एक अधिक समावेशी रवैया के साथ, ब्रिक्स न केवल श्यामन शिखर सम्मेलन के लिए तैयार है, बल्कि आने वाले एक और सुनहरे दशक के लिए भी कमर कस ली है।
जब चौथा ब्रिक्स सम्मेलन भारत में हुआ तो विश्व बैंक की तर्ज पर ही ब्रिक्स देशों के बैंक यानी ब्रिक्स बैंक को शुरू करने का विचार किया गया। वर्ष 2014 में जब छठा ब्रिक्स सम्मेलन हुआ तो इस बैंक को मंजूरी मिल गई। इसके बाद वर्ष 2015 में चीन के शांगहाई शहर में ब्रिक्स बैंक का मुख्यालय का ऐलान कर दिया गया, और भारत के के.वी. कामथ को इसका पहला अध्यक्ष बनाया गया। इस बैंक को न्यू डेवलपमेंट बैंक यानी एनडीबी के नाम से जाना जाता है।
भू-राजनीतिक और वित्तीय दोनों आयामों में ब्रिक्स देशों के लिए एनडीबी बहुत आवश्यक है। बैंक न केवल ब्रिक्स देशों में बल्कि अन्य देशों में भी बुनियादी ढांचे और सतत विकास में परियोजनाओं के लिए वित्त पोषण के नए स्रोतों को पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसी साल दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में इसका पहला क्षेत्रीय कार्यालय खोला गया।
ब्रिक्स पांच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है जहां विश्वभर की 43% आबादी रहती है, जहां विश्व का सकल घरेलू उत्पाद 30% है और विश्व व्यापार में इसकी 17% हिस्सेदारी है। ब्रिक्स देशों द्वारा प्रदत्त योगदान 50% से अधिक है, जो विश्व आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण इंजन बन गया है। ब्रिक्स सहयोग ने न केवल खुद ही देशों की मदद की है, बल्कि सभी विकासशील देशों के लिए वैश्विक मुद्दों पर बोलने का अधिकार बढ़ाया है।वर्तमान परिस्थिति में ब्रिक्स देशों को आपसी एकता और सहयोग मज़बूत करना चाहिए, ताकि भूमंडलीकरण के खिलाफ़ और आतंकवाद जैसे अर्थतंत्र व सुरक्षा क्षेत्रों में मौजूद चुनौतियों का समान रुप से मुकाबला किया जा सके और वैश्विक मामलों में ब्रिक्स देशों की प्रभावशाली शक्ति उन्नत हो सके। उम्मीद है कि इस शिखर सम्मेलन में आपसी मतभेदों को सुलझाने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा, व्यापार, ऊर्जा और आतंकवाद के मुद्दों में अधिक सहयोग करने पर भी जोर दिया जाएगा।
(इस ब्लॉग लेखक अखिल पाराशर चाइना रेडियो इंटरनेशनल, बीजिंग में पत्रकार हैं)