ढाका: बांग्लादेश ने एक बड़ा फैसला लेते हुए 3 इस्लामिक धर्मार्थ संस्थाओं को रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ काम करने पर रोक लगा दी है। सत्तारूढ़ आवामी लीग के सांसद महजबीन खालिद ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय धर्मार्थ संस्थान मुस्लिम एड, इस्लामिक रिलीफ और बांग्लादेश स्थित अल्लामा फजलुल्लाह फाउंडेशन को कॉक्स बाजार जिले में रोहिंग्या शरणार्थी शिविर के लिए काली सूची में डाल दिया गया है। विदेश मामलों की स्थायी संसदीय समिति के सदस्य खालिद ने कहा कि इन संस्थाओं पर कोई विशिष्ट आरोप नहीं लगाए गए थे।
खालिद ने बताया कि ऐसी चिंता व्यक्त की गई थी कि सीमावर्ती इलाकों के शिविरों में रहने वाले विस्थापित मुसलमानों को कट्टरपंथ की तरफ धकेला जा सकता है। इससे पहले भी बांग्लादेश की पुलिस नशीली दवाओं की तस्करी के आरोप में कई रोहिंग्या मुसलमानों को गिरफ्तार कर चुकी है। इसके अलावा सरकार ने रोहिंग्या शरणार्थियों को देश के अन्य हिस्सों में फैलने से रोकने के लिए भी तमाम उपाय कर रखे हैं। बांग्लादेश ने रोहिंग्याओं को शरणार्थी का आधिकारिक दर्जा नहीं दिया है और यह साफ कर दिया है कि वह नहीं चाहता कि ये लोग वहां अनिश्चितकाल तक रहें।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 25 अगस्त के बाद से करीब 5,15,000 रोहिंग्या लोग भागकर बांग्लादेश जा चुके हैं। ARSA ने राखिने में 9 अक्टूबर, 2016 को सरकारी चौकियों पर हुए हमले की जिम्मेदारी ली है। इसी हमले ने राखिने में सेना को पहली हिंसक कार्रवाई के लिए प्रेरित किया था। राखिने में रहने वाले एक लाख से अधिक रोहिंग्या वर्ष 2012 में सांप्रदायिक हिंसा के बाद से उत्पीड़न का शिकार हुए, जिसमें कम से कम 160 लोग मारे गए और 120,000 लोग 67 शरणार्थी शिविरों तक सीमित हैं। म्यांमार ने रोहिंग्या, जो देश में कई पीढ़ियों से रह रहे थे, उन्हें बांग्लादेश से भागकर आए अवैध आप्रवासी माना और उनसे नागरिक अधिकार छीन लिए।