नई दिल्ली: अमेरिका और ईरान के बीच के विवाद और गहरा होता जा रहा है। दोनों देशों के विवाद को लेकर अब तो पूरी दुनिया ही दो हिस्सों में बंटती नज़र आने लगी है। फिक्र करने वाली बात तो ये है कि अमेरिका जितना ईरान के खिलाफ है उतना ही रूस ईरान के साथ मजबूती से खड़ा हो रहा है। ऐसे में ईरान के नाम पर दो सुपर पावर यानी अमेरिका और रूस आमने-सामने नजर आते हैं। लेकिन, क्या आपको पता है कि अमेरिका और ईरान के बीच विवाद क्या है? नहीं! तो चलिए हम आपको बताते हैं।
राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के दौरान क्या बोले ट्रंप?
अमेरिका और ईरान के बीच की तल्खियों को जानने के लिए पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान को याद करते हैं जो उन्होंने राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान दिया था। उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा अमेरिका और पांच दूसरे देशों के ईरान के साथ परमाणु रिएक्टर को लेकर समझौता को वाहियात बताया था और वादा किया था कि वह राष्ट्रपति बनने के बाद उस समझौते को खत्म कर देंगे। उन्होंने अपने वादे के मुताबिक 8 मई 2018 को वह समझौता रद्द कर दिया।
ईरान से इतना क्यों चिढ़ता है अमेरिका?
ये समझने के लिए हमें वक्त की सूंई को इतना पीछे ले जाना होगा जहां से हमें याद आए कि 2006 में ईरान ने अपने यहा पांच परमाणु रिएक्टर लगाए थे। जिनमें से एक रूस की मदद से लगाया था। जिसे लेकर इजरायल और अमेरिका समेत कई और देशों की नजरें टेढ़ी हो गई थीं। हालांकि, ईरान बार-बार कहता रहा है कि उनके द्वारा लगाए गए परमाणु रिएक्टर का मकसद परमाणु हथियार बनाना नहीं बल्कि ऊर्जा उत्पन्न करना है। लेकिन, अमेरिका और इजरायल ये मानने को तैयार नहीं हुए। इन्हें शक था कि बुशेर परमाणु प्लांट में ईरान चोरी-छुपे परमाणु बम परमाणु बना रहा है।
2015 में हुआ एक समझौता
अमेरिका और इजरायल के शक जाहिर करने पर परमाणु रिएक्टर के इस्तेमाल को लेकर फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने ईरान के साथ बातचीत शुरू की। इस बातचीत में अमेरिका, चीन और रूस भी शामिल हुए। फिर नौ साल बाद 2015 में सभी देश ने ईरान के साथ एक समझौता किया। जिसके तहत ईरान अपने परमाणु प्लंट की तय समय सीमा पर नियमित जांच के लिए राजी हो गया ताकि ये पता चल सके कि ईरान के परमाणु प्लांट में हथियार बना रहा है या नहीं।
IAEA को मिली खास जिम्मेदारी
समझौते के तहत ईरान के परमाणु प्लांट के जांच की जिम्मेदारी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी IAEA को मिली। वह हर तीन महीने में ईरान के परमाणु प्लांट की जांच कर रिपोर्ट तैयार करता था। हालाकिं, कभी उसकी रिपोर्ट में ईरान पर परमाणु प्लांट के गलत इस्तेमाल को लेकर शक नहीं जताया गया। जिस वक्त ये समझौता हुआ था तब अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा थे। जिन्होंने इजरायल कि इस बात को नकारते हुए ये समझौता किया था कि ईरान का परमाणु प्लांट दुनिया के लिए खतरा है। ओबामा इजरायल की बात से सहमत नहीं थे।
ओबामा से अलग, इजरायल जैसा रुख रखते हैं ट्रंप
लेकिन, डोनाल्ड ट्रंप इस समझौते को लेकर बराक ओबामा से सहमत नहीं थे। इधर से 2016 के अमेरिकी चुनाव में ट्रंप ने ईरान समझौते का मुद्दा उठाया और उधर से इजरायल ने भी इस समझौते को लेकर आवाज उठाई। ट्रंप ने तभी चुनाव प्रचार के दौरान इस डील को खत्म करने की बात कह दी थी और उन्हों राष्ट्रपति बनने के बाद ऐसा ही किया। 8 मई 2018 को अमेरिका अचानक इस समझौते से अलग हो गया। तब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर आरोप लगाया कि उसका वादा झूठा था।
...और गहरा होता गया विवाद
ट्रंप द्वारा सौदा रद्द करने पर इजरायल की ओर से मुहैया कराए गए कुछ खुफिया दस्तावेजों के हवाले से कहा गया कि ईरान परमाणु हथियार बनाने का काम रहा है। हालाकिं, सौदे के मुताबिक ईरान के परमाणु रिएक्टर्स की जांच करने वाले IAEA की ओर से अमेरिका के इस दावे को कारिज किया गया था। इतना ही नहीं अमेरिका के अलग होने के बावजूद रूस, चीन, ब्रिटेन फ्रांस और जर्मनी अब भी समझौते के साथ हैं और आगे भी समझौते को जारी रखने की बात कह रहे हैं। लेकिन, इस पूरी प्रक्रिया के दौरान आज स्थिति ऐसी हो गई है कि अमेरिका और ईरान को लेकर दुनिया के कई देश आमने-सामने नजर आते हैं।