काबुल/ब्रसेल्स: NATO महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने अफगानिस्तान की सेना के तालिबान के सामने तेजी से घुटने टेकने के लिए देश के नेतृत्व को जिम्मेदार बताया है। स्टोलटेनबर्ग ने साथ ही कहा कि NATO को अपने सैन्य प्रशिक्षण प्रयासों में हुईं खामियों को भी उजागर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि 'अफगान राजनीतिक नेतृत्व टिके रहने में विफल रहा' और 'अफगान नेतृत्व की इस विफलता ने उस त्रासदी को जन्म दिया, जिसे आज हम देख रहे हैं।' हाल के हफ्तों में अफगानिस्तान में तालिबान की व्यापक जीत के सुरक्षा प्रभावों पर चर्चा करने के लिए मंगलवार को NATO दूतों की एक बैठक की अध्यक्षता करने के बाद उन्होंने यह टिप्पणी की।
‘कुछ ऐसे सबक हैं, जिनसे NATO को सीखने की जरूरत है’
तालिबान के हमलों का सामना करते वक्त जिस तरह अफगानिस्तान की सेना ने घुटने टेक दिए, उसका जिक्र करते हुए स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि वह इस बात को लेकर हैरान हैं कि इतनी जल्दी पतन कैसे हो गया। उन्होंने कहा कि ये कुछ ऐसे सबक हैं, जिनसे NATO को सीखने की जरूरत है। गौरतलब है कि दो दशक पहले अमेरिका के नेतृत्व में विभिन्न देशों के सैन्य गठबंधन उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) ने अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ युद्ध छेड़ा था। इसके बाद NATO देशों की सेनाओं ने अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित किया था, हालांकि तालिबान के सामने लड़ाई में वे ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाए।
‘इस मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति से बहस करना बेकार है’
इन सबके बीच अफगानिस्तान के प्रथम उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने तालिबान के सामने घुटने टेकने से साफ इनकार कर दिया है और खुद को देश का केयरटेकर राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। उन्होंने कहा है कि इस मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति से बहस करना बेकार है और अफगानों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। उन्होंने कहा कि अमेरिका और नाटो ने भले ही अपना हौसला खो दिया हो लेकिन हमारी उम्मीद अभी बाकी है। सालेह ने कहा कि जो बेकार का प्रतिरोध हो रहा था वह खत्म हो गया है और उन्होंने साथी अफगानों से तालिबान के खिलाफ जंग में शामिल होने का आवाह्न किया।