Highlights
- ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में नहीं होता कार्बन उत्सर्जन
- ग्रीन हाइड्रोजन सौर व पवन ऊर्जा जैसी अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल करके बनाया जाता है
- वर्ष 2021 में दुनिया भर में 94 मिलियन टन पहुंची मांग
Green Hydrogen:हाइड्रोजन का इस्तेमाल मुख्य तौर पर उर्वरक जैसे केमिकल बनाने के लिए और तेल रिफायनरियों में किया जाता है। दुनिया में अधिकांश हाइड्रोजन प्राकृतिक गैस और कोयले से बनाई जाती है। इस पद्धति में बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। लिहाजा विकसित देश इसके बजाय “ग्रीन हाइड्रोजन” की ओर देख रहे हैं, जिसे सौर व पवन ऊर्जा जैसी अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल करके बनाया जाता है। ऊर्जा विशेषज्ञों रॉड क्रॉम्पटन और ब्रूस यंग “ग्रीन हाइड्रोजन” के संभावित लाभ और इससे जुड़ी चुनौतियों के बारे में बता रहे हैं।
वर्ष 2021 में 94 मिलियन टन पहुंची मांग
साल 2021 में दुनियाभर में हाइड्रोजन की मांग 94 मिलियन टन पर पहुंच गई और विश्व में बिजली की जितनी खपत हुई, उसमें से 2.5 प्रतिशत का उत्पादन हाइड्रोजन से किया गया था। फिलहाल दुनियाभर में ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन महज 0.1 प्रतिशत के आसपास है, लेकिन बड़े विस्तार की योजना पर काम चल रहा है। ग्रीन हाइड्रोजन के लिए नए अनुप्रयोगों की भी परिकल्पना की गई है। लिब्रेइच का वर्गीकरण हरित हाइड्रोजन के लिए संभावित बाजारों का एक उपयोगी संकेतक है। चूंकि ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग करने का उद्देश्य वास्तव में कार्बन डाइऑक्साइड के उपयोग को कम करना है, इसलिए इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ऐसे अनुप्रयोग होने चाहिए, जिनसे उत्सर्जन में बहुत बड़े पैमाने पर कटौती की जा सके। लिब्रेइच वर्गीकरण से पता चलता है कि ऐसे कौन से अनुप्रयोग हैं, जो किए जाने चाहिए। इन अनुप्रयोगों में सबसे बड़ी चुनौती बहुमूल्य ग्रीन हाइड्रोजन के कुशल उपयोग को लेकर है। लेकिन कम स्वच्छ हाइड्रोजन की तुलना में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में फिलहाल बहुत अधिक खर्च आता है।
ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में नहीं होता कार्बन उत्सर्जन
ग्रीन हाइड्रोजन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे बनाने में कार्बनडाइ आक्साइड गैस का उत्सर्जन नहीं होता। उर्वरक के उत्पादन के लिए अमोनिया की जरूरत पड़ती है और अमोनिया हाइड्रोजन से बनाया जाता है। ऐसे में यदि दुनियाभर में हर साल आवश्यक 180 मिलियन अमोनिया बनाने के लिए हाइड्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है, तो महंगाई बढ़ सकती है। इसलिए यह देखना महत्वपूर्ण है कि यह बदलाव कैसे आएगा। ग्रीन हाइड्रोजन जल से बनाई जाती है। अक्षय (ग्रीन) ऊर्जा का उपयोग करते हुए, ‘इलेक्ट्रोलाइजर’ नामक उपकरण जल में हाइड्रोजन को ऑक्सीजन (एच2ओ) से अलग करता है। इस प्रक्रिया को ‘इलेक्ट्रोलाइसिस’ कहा जाता है। ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं होता, लेकिन अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में फिलहाल जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जाता है, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। हाइड्रोजन पारंपरिक रूप से गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे कोयले (“ब्लैक हाइड्रोजन”) और प्राकृतिक गैस (“ग्रे हाइड्रोजन”) से बनाई जाती है।
जानें क्या है ब्लू हाइड्रोजन
जब कार्बन डाइऑक्साइड का इस्तेमाल करते हुए इन विधियों के जरिए हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है, तो उसे “ब्ल्यू हाइड्रोजन” कहा जाता है। हालांकि अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में होने वाले खर्च में कमी आ रही है, जबकि ‘इलेक्ट्रोलाइसिस’ प्रक्रिया के खर्च में भी अभी उतनी वाणिज्यिक प्रतिस्पर्धा नहीं है। अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक, फिलहाल फैक्टरी के स्तर पर ग्रीन हाइड्रोजन की अनुमानित ऊर्जा लागत 250 अमेरिकी डॉलर और 400 डॉलर प्रति बैरल तेल के बीच है। भविष्य में इस लागत में कमी आने का अनुमान है, लेकिन ये निश्चित नहीं हैं। फिलहाल तेल की कीमत लगभग 100 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल है यानी यह पारंपरिक पेट्रोलियम उत्पादों के बजाय ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग में आने वाले खर्च से बहुत कम है।
विकसित देश पड़े संशय में
हाइड्रोजन की ढुलाई की लागत को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। दुर्भाग्य से, हाइड्रोजन चूंकि एक गैस है, इसलिए इसकी ढुलाई में काफी खर्च आता है। इसकी ढुलाई तेल से बने ईंधन, तरल पेट्रोलियम गैस या तरल प्राकृतिक गैस की तुलना में कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है। लिहाजा, कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल कई मायनों में लाभकारी है, लेकिन इसके उत्पादन और ढुलाई में आने वाले भारी-भरकम खर्च के कारण कमजोर अर्थव्यवस्था वाले या विकासशील देशों के लिए इसका उत्पादन व इस्तेमाल आसान नहीं है। विकसित देश भी खुलकर इसके उत्पादन और इस्तेमाल को लेकर असमंजस में हैं।