Highlights
- जो बाइडेन ने सऊदी अरब के खिलाफ कई फैसले लिए
- बाइडेन ने मोहम्मद बिन सलमान से मिलने से किया था इनकार
- यमन युद्ध में अमेरिका का साथ छूटते ही सऊदी अरब कमजोर पड़ा
Joe Biden-Mohammed Bin Salman Meeting: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हाल में ही सऊदी अरब का दौरा किया है। यह एक ऐसा देश है, जिसे लेकर बाइडेन के विचार ज्यादा सकारात्मक नहीं रहे हैं। बाइडेन ने अपने 2019 के राष्ट्रपति चुनाव के अभियान में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के मामले पर खूब बोला है। तब उन्होंने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिल सलमान को सजा देने की बात तक कही थी। केवल इतना ही नहीं, बाइडेन ने दावा किया था कि सऊदी अरब को कीमत चुकानी होगी। बाइडेन ने मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर सऊदी अरब को अलग-थलग करने का दावा भी किया था।
हालांकि उनके इस सऊदी दौरे ने स्पष्ट कर दिया है कि बाइडेन प्रशास ने अपनी सऊदी अरब की नीति को बदल दिया है। सऊदी अरब पहुंचने पर जो बाइडेन ने सबसे पहले मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात की। बाइडेन ने अमेरिका और सऊदी अरब के बीच हुईं द्विपक्षीय वार्ताओं में भी प्रिंस सलमान के साथ बातचीत की। हालांकि इससे पहले ऐसा कतई नहीं था। वह अतीत में प्रिंस सलमान से बात करने से इनकार कर चुके हैं। यही वजह है कि दोनों की इस मुलाकात की दुनियाभर में खूब चर्चा हुई है।
एमबीएस से मिलने से किया था इनकार
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को एमबीएस भी कहा जाता है। जो बाइडेन ने जनवरी 2021 में कार्यभार संभालते ही अमेरिकी खुफिया असेसमेंट जारी किया था। इसमें उन्होंने कहा था कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और वास्तविक शासक मोहम्मद बिन सलमान ने सऊदी आलोचक और वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का आदेश दिया था। खशोगी की अक्टूबर, 2018 में तुर्की के इस्तांबुल में सऊदी दूतावास के भीतर हत्या कर दी गई थी। उनके शव का निपटारा भी दूतावास के भीतर ही कर दिया गया था। इस असेसमेंट के बाद राष्ट्रपति बाइडेन ने सीधे मोहम्मद बिन सलमान से बात करने से इनकार कर दिया था।
राष्ट्रपति बनते ही सऊदी को दिया झटका
केवल इतना ही नहीं, बाइडेन के राष्ट्रपति पद संभालते ही अमेरिकी सरकार ने यमन युद्ध में सऊदी अरब को दिया जा रहा समर्थन खत्म कर दिया था। इससे अटकलें तेज हो गईं कि 1945 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंक्लीन डी. रूजवेल्ट और सऊदी किंग अब्दुल अजीज इब्न सउद के बीच हुई बैठक से जुड़ा अमेरिकी-सऊदी रणनीतिक गणबंधन संकट में पड़ सकता है। इसके साथ ही अमेरिका ने सऊदी अरब की रक्षा के लिए तैनात किया गया अपना मिसाइल डिफेंस सिस्टम भी हटा दिया था। और इसे अन्य देशों में तैनात करा दिया था। अमेरिका के समर्थन को वापस लेते ही यमन में हूथी विद्रोहियों के खिलाफ जारी सऊदी अरब का अभियान कमजोर पड़ गया था।
1.5 साद बाद मजबूरी में पहुंचे सऊदी अरब
अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के 1.5 साल बाद जो बाइडेन सऊदी अरब के साथ रिश्ते अच्छे करने के लिए मध्य पूर्व आए हैं। उन्होंने यहां जेद्दाह में प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ बातचीत की है। ये लाल सागर के तट पर स्थित एक शहर है। इस बैठक से एक हफ्ते पहले अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मध्य पूर्व में ईरान और उग्रवाद की चुनौतियों से निपटने के लिए सऊदी अरब को 'जरूरी साझेदार' बताया था। ऐसी स्थिति में ये साफ हो गया है कि बाइडेन प्रशासन की मोहम्मद बिल सलमान को सजा देने या फिर सऊदी अरब को अलग-थलग करने की कोशिशें खत्म हो गई हैं।
बाइडेन की यू-टर्न के पीछे क्या कारण है?
मोहम्मद बिन सलमान को लेकर बाइडेन प्रशासन के नजरिए में बदलाव के पीछे के कारण तीन प्रमुख भू-राजनीतिक घटनाक्रम माने जा रहे हैं। ये वो घटनाक्रम थे, जो व्हाइट हाउस (अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय) के सीधे नियंत्रण में नहीं थे। इन्हीं कारणों ने बाइडेन को पश्चिम एशया में अमेरिका के अपने सहयोगियों को लेकर अधिक पारंपरिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया है। ये कारण इतने बड़े हैं कि बाइडेन ने राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान किए अपने वादे तक तोड़ दिए।
पहला कारण- अब्राहम अकॉर्ड
अब्राहम अकॉर्ड समझौते की वजह से इजरायल के चार अरब देशों यूएई, बेहरीन, मोरक्को और सूडान के साथ रिश्ते अच्छे हुए थे। इस समझौते को सफल बनाने में ट्रंप प्रशासन ने अहम भूमिका निभाई थी। वहीं अमेरिका के दोनों साझेदार इजरायल और सऊदी अरब ने ईरान का मुकाबला करने के लिए एक नई राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा साझेदारी बनाने के लिए आधिकारिक कदम उठाए थे। अब बाइडेन असमंजस में थे कि उन्हें ओबामा के समय के यथार्थवाद की तरफ लौटना चाहिए या फिर ट्रंप मॉडल को अपनाकर अरब-इजरायल साझेदारी को मजबूत करना चाहिए। बाद में उन्हें ट्रंप मॉडल अधिक प्रभावी लगा, जिसके बाद उन्होंने उसी तरफ बढ़ना सही समझा।
दूसरा कारण- ईरान परमाणु समझौता
दूसरा कारण ईरान है। बाइडेन प्रशासन ईरान परमाणु समझौते को बहाल करने के लिए खूब कोशिशें कर रहा है। लेकिन इस वक्त ईरान ने कड़ा रुख अख्तियार किया हुआ है। मध्य पूर्व में अमेरिकी लक्ष्यों के बारे में ओबामा का संकीर्ण दृष्टिकोण था। उन्होंने ईरान और सऊदी अरब के बीच में शांति की वकालत की। उन्होंने इजरायल के विरोध को दरकिनार करते हुए ईरान के साथ परमाणु समझौते को आगे बढ़ाया। लेकिन ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से बाहर कर लिया। हालांकि उन्होंने ईरान और सऊदी अरब के बीच में मजबूत संबंधों को बढ़ावा दिया। अब बाइडेन प्रशासन इन दोनों ही चीजों को मिलाकर चल रहे हैं। वह परमाणु समझौते को बहाल करने की कोशिश कर रहे हैं, साथ ही ईरान-अरब साझेदारी को भी मजबूत करने के प्रयास कर रहे हैं।
तीसरा कारण- रूस यूक्रेन युद्ध
सऊदी अरब को लेकर बाइडेन के रुख में बदलाव का तीसरा कारण रूस यूक्रेन युद्ध है। रूस ने 24 फरवरी को विशेष सैन्य अभियान के नाम पर यूक्रेन पर पहला हमला किया था। जिसके बाद अमेरिका सहित यूरोपीय संघ ने रूस को सजा देने के लिए उससे तेल और गैस की खरीदारी पर काफी हद तक प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन इससे यूरोपीय संघ के देशों में परेशानी बढ़ गई। यूरोपीय संघ अपने कुल तेल और गैस के 90 फीसदी का आयात रूस से करता है। इससे यूरोपीय देशों में ऊर्जा का संकट खड़ा हो गया। अब ईयू रूसी ईंधन ढोने वाले टैंकरों पर इंश्योरेंस बैन लगाने की योजना बना रहा है। अगर एक बार इंश्योरेंस बैन लग गया, तो ईंधन के दाम और ज्यादा बढ़ जाएंगे। इससे पश्चिमी देशों में महंगाई का संकट भी खड़ा हो जाएगा। यही वजह है कि बाइडेन को सऊदी अरब से तेल का उत्पादन बढ़ाने का अनुरोध करने के लिए यहां आना पड़ा है, ताकि इसके दाम कम हो सकें।