Highlights
- भारत चीन के बीच 1950 से शुरू हुआ पहला विवाद
- 1954 में आक्साई चिन तक आ गया चीन
- 1962 में भारत और चीन के बीच हो गया युद्ध
India-China Border Dispute: उजबेकिस्तान के समरकंद में 15 सिंतबर से शुरू होने जा रहे शंघाई शिखर सहयोग संगठन सम्मेलन (SCO Summit) में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ प्रमुख तौर पर हिस्सा लेने जा रहे हैं। इस दौरान पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय वार्ता के कयास लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि दोनों देश शांति बहाली के लिए ही सीमा के विवादित क्षेत्र से अपने-अपने सैनिकों को पीछे हटा लिया है। ऐसे में अब सवाल ये है कि यदि दोनों नेताओं के बीच यह मुलाकात हो भी गई तो क्या 72 वर्षों का वह विवाद खत्म हो जाएगा, जिसकी वजह से भारत और चीन सीमा पर खूनी संघर्ष होता चला आ रहा है?
यह सवाल इसलिए भी है कि चीन यदि सीमा बहाली चाहता ही था तो वर्ष 2020 में फिर से भारतीय सीमा में उसके सैनिक क्यों घुसे, चीन ने क्यों भारत के भरोसे का कत्ल किया। इसका जवाब यही है कि चीन सबसे अधिक मौकापरस्त और चालबाज है। उसपर भरोसा कभी नहीं किया जा सकता है। चीन दोस्ती का स्वांग रचकर कब भारत के पीठ में खंजर मार दे, कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए भारत को भी सतर्क रहना होगा। मगर इसका मतलब यह नहीं कि भारत को चीन के साथ शांति वार्ता करना ही नहीं चाहिए या शी जिनपिंग से पीएम मोदी को नहीं मिलना चाहिए। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अगर चीन और शी जिनपिंग भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं और शांति की पहल करते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है, बल्कि यह दोनों ही देशों के लिए फायदेमंद है।
2020 में क्यों भिड़े थे चीन और भारत
डीजीएमओ में चीन ऑपरेशन के ब्रिगेडियर रहे मेजर जनरल एस मेस्टन कहते हैं कि पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी स्थित फिंगर 4 से 8 तक भारत का क्षेत्र है। यह वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) है। भारत फिंगर 8 तक क्लेम करता है। मगर चीन फिंगर 4 तक अपना दावा करता है। इसलिए यह एरिया ऑफ डिस्प्यूट में आता है। आमतौर पर भारतीय सैनिक फिंगर 4 तक ही रहते हैं, लेकिन पेट्रोलिंग के लिए फिंगर 8 तक कभी-कभी गुप्त रूप से जाते हैं। वहां चीनी फौज नहीं होती। कभी-कभी चीनी सैनिक भी फिंगर 8 तक पेट्रोलिंग करने आते हैं। भारतीय सैनिक जब वहां जाते हैं तो वहां कोई न कोई निशान छोड़कर आते हैं या कोई बोर्ड लगाकर आ जाते हैं कि यह हमारा क्षेत्र है। इसी तरह चीनी सैनिक आते हैं तो फिंगर 8 के पास कोई निशान छोड़ जाते हैं या बैनर लगाते हैं कि यह हमारा क्षेत्र है।
फेस ऑफ में हुई भिड़ंत
कई बार एक साथ पेट्रोलिंग के लिए भारत-चीन के सैनिक एक साथ फिंगर 8 तक आ जाते हैं। इसे फेस ऑफ कहते हैं। इसी दौरान दोनों पक्षों में किसी से कहासुनी हो गई तो झड़प हो जाती है। मगर फेसऑफ में फायरिंग नहीं होती। जब यह ज्यादा हो जाए तो केजुअलिटी हो जाती है। वर्ष 2020 में भी यही हुआ। यहां उनका सामना भारतीय सैनिकों से हो गया। एक समझौते के तहत निहत्थे पेट्रोलिंग की जाती है। भारत के सैनिकों ने जब उन्हें आगे बढ़ने से रोका तो यहीं भिड़ंत हो गई, जिसमें करीब 20 भारतीय जवान शहीद हो गए। चीन के भी करीब 40 सैनिक मारे गए, हालांकि चीन ने इसकी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की।
सीमा तक रोड बनाने का चीन कर रहा था विरोध
गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच खूनी संघर्ष की एक वजह यह भी थी कि भारत उस दौरान एलएसी तक दो क्षेत्रों को जोड़ने के लिए सड़क बना रहा था। चीन इसका विरोध कर रहा था। इस वजह से चीनी सैनिक भारत से भिड़ गए।
अरुणाचल प्रदेश को चीन दिखाता है अपने नक्शे में
अरुणाचल प्रदेश भारत का है, लेकिन चीन इसे अपने नक्शे में दिखाता है। इसे लेकर भी भारत और चीन के बीच विवाद है। स्थिति यह है कि अरुणाचल के कई हिस्से में भारत के राष्ट्रपति को भी वीजा लेकर जाना पड़ता है।
आक्साई चिन को लेकर भारत चीन के बीच मुख्य विवाद
मेजर जनरल मेस्टन कहते हैं कि पूरा का पूरा आक्साई चीन भारत का है, लेकिन उस पर चीन ने कब्जा कर लिया है। यह विवाद की मुख्य वजह है। इस पर चीन का कब्जा है। जिस तरह से पीओके भारत का है, लेकिन इस पर पाकिस्तान का कब्जा है। आक्साई चिन पर भारत के दावे को खारिज करता है। वह इसे शिनजियांग प्रांत का हिस्सा मानता है। आक्साई चिन विवाद की प्रमुख वजह है। आक्साई चिन करीब 40 हजार वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है।
पीओके की शक्सगाम वैली भी विवादित
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) भारत का है। मगर यह पाकिस्तान के कब्जे में है। उसमें से पाकिस्तान ने शक्सगाम वैली जो चीन को दी है वह भी हमारी है। यह बहुत खूबसूरत घाटी है। इसे लेकर भी भारत और चीन के बीच विवाद है।
भारत चीन के बीच 1950 से शुरू हुआ पहला विवाद
भारत और चीन के बीच वर्ष 1950 से पहला विवाद शुरू हुआ। तब चीन भारत का हिस्सा रहे तिब्बत को अपना क्षेत्र बताने लगा। इसके बाद चीन ने अपनी कुछ ऐतिहासिक धरोहरों के तिब्बत में होने का बहाना बनाकर इसे अपने कब्जे में ले लिया। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसका विरोध किया। विरोध पत्र लिखकर चीन को इस मुद्दे पर बातचीत करने को भारत ने कहा, लेकिन चीन ने यह बात नहीं मानी। इसको लेकर दोनों देशों के बीच विवाद रहने लगा। बाद में वर्ष 1954 में पंचशील समझौते के तहत पंडित नेहरू ने तिब्बत को चीन को सौंप दिया और नेहरू ने तब हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया।
1954 में आक्साई चिन तक आ गया चीन
भारत ने सोचा था कि चीन को तिब्बत दे देने के बाद यह विवाद हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा, लेकिन उसके इरादे नेक नहीं थे। वर्ष 1954 में ही चीन ने तिब्बत को शिनजियां ग से जोड़ने के लिए आक्साई चिन के रास्ते से एक सड़क बना दी। इसके बाद 1958 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश को भी अपने नक्शे में दिखा दिया। इसी दौरान तिब्बत ने चीन का विरोध कर दिया। आक्साई चिन में सड़क बाने की बात भारत को पांच साल बाद 1959 में पता चली। इसी वर्ष दलाईलामा भारत आ गए। तब चीन को लगा कि तिब्बतियों का विरोध भारत की वजह से है। चीन ने बल प्रयोग कर तिब्बत को चुप करा दिया। इसके बाद चीन ने आक्साई चिन और अरुणाचल के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर करीब 40 हजार वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन पर अपना दावा किया।
1960 में चीन के प्रीमियर झोउ एनालाइस ने आक्साई चिन से भारत को दावा छोड़ने को कहा
वर्ष 1960 में चीन के नेता प्रीमियर झोउ एनालाइस भारत दौरे पर आए। इस दौरान उन्होंने भारत को आक्साई चिन से अपना दावा छोड़ देने को कहा। मगर पंडित जवाहरलाल नेहरू इस पर राजी नहीं हुए।
फॉरवर्ड पॉलिसी विवाद
चीन लगातार एक के बाद एक भारतीय क्षेत्र पर अपना दावा करता जा रहा था। इसी बीच 1960 में इंटेलीजेंस ब्यूरो की सिफारिश पर भारत ने फॉरवर्ड पॉलिसी बनाई। इसके साथ ही भारतीय सेना को मैकमोहन रेखा और आक्साईचिन के सीमावर्ती क्षेत्र तक कब्जा करने को कहा गया। चीन ने इसका विरोध किया। इसके बाद एक वर्ष तक भारत और चीन के बीच हिंसक झड़प होती रही। चीन अक्सर भारतीय सैनिकों और चौकियों को निशाना बनाता रहा।
1962 में भारत और चीन के बीच हो गया युद्ध
आक्साई चिन को लेकर वर्ष 1962 में 20 अक्टूबर को चीन ने भारत पर हमला बोल दिया। उस दौरान चीन के पास 80 हजार सैनिक थे और भारत के पास केवल 22 हजार सैनिक। इस दौरान चीन की सेना चार ही दिनों में अरुणाचल, आक्साई चिन और असम तक पहुंच गई। मगर इस दौरान तीन हफ्ते तक कोई लड़ाई नहीं हुई। तब चीन ने भारतीय सैनिकों को 20 किलोमीटर और पीछे हटने को कहा। मगर भारत ने कहा कि चीन के सैनिक भारतीय सीमा में 60 किलोमीटर तक पहले ही घुस आए हैं। अब हम 20 किलोमीटर और पीछे नहीं हट सकते। इसके बाद 14 नवंबर से चीन ने फिर युद्ध छेड़ दिया।
21 नवंबर 1962 को चीन ने किया युद्ध विराम
इस युद्ध में भारत के करीब 1400 सैनिक मारे गए। 1700 लापता हो गए और 4000 के करीब को चीन ने बंदी बना लिया। वहीं चीन के स्रोत के अनुसार उसके 800 के करीब सैनिक मारे गए 1500 के करीब घायल हुए। इसके बाद चीन ने स्वयं 21 नवंबर को युद्ध विराम घोषित कर दिया। इस दौरान आक्साई चिन के 40 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को चीन ने अपने कब्जे में ले लिया। हालांकि वह अरुणाचल और असम के क्षेत्र से स्वयं पीछे हट गए। इस युद्ध में सिर्फ थल सेना का इस्तेमाल हुआ और भारत की हार हुई।
1967 में भारत ने चीन से लिया बदला
एलएसी पर आमतौर पर भारत के सैनिक ज्यादा होते हैं। जबकि चीन के कम होते हैं। नथुला में बिल्कुल आमने- सामने भारत-चीन के सैनिकों की तैनाती है। इनमें से आधा हिस्सा भारत और आधा हिस्सा चीन के पास है। 1967 में भारत ने तय किया कि वह अपने हिस्से में बाड़ या तार लगाएंगे। मगर चीन ने मना कर दिया। भारत ने कहा कि हम लगाएंगे क्योंकि यह हमारा क्षेत्र है। चीन ने कहा नहीं लगाने देंगे। भारतीय सैनिक बिना हथियार के थे। भारतीय सैनिक निहत्थे एलएसी पर तार लगा रहे थे। इस बीच चीन ने वार्निंग दी कि हट जाओ वर्ना गोली चला देंगे। दरअसल यहां दोनों देशों के सैनिक निहत्थे होते हैं। मगर चालाक चीन ने पहाड़ियों पर चुपके से अपने हथियार जुटा लिए थे। उन्होंने भारतीय सैनिकों पर फायरिंग कर दी। इस दौरान 67 सैनिक जो तार लगा रहे थे, सभी शहीद हो गए। इसके बाद भारत ने पलटवार किया और उनके भी करीब 200 सैनिक मार दिया। इसके बाद तीन-चार दिनों तक युद्ध चला। भारत ने चीन की फायरिंग के जवाब में तोप चला दी। इस प्रकार चीन के करीब 340 सैनिक मारे गए। भारत के कुल 88 शहीद हुए। इसके बाद चीन ने फाइटर जेट लाने की धमकी दी। मगर बाद में उन्होंने शांति बहाल की घोषणा कर दी। इस प्रकार युद्ध में भारत की जीत हुई।