महिलाओं का खतना एक काफी पुरानी कुप्रथा है, जिसपर लंबे समय से बहस हो रही है। लेकिन मामला एक बार फिर चर्चा में आ गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि ईसाइयों के सर्वोच्च धर्म गुरू पोप फ्रांसिस ने इस पर एक बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि महिलाओं का खतना एक 'अपराध' है। महिला अधिकारों, समानता और अवसरों के लिए लड़ाई जारी रहनी चाहिए। जानकारी के मुताबिक, इस्लाम धर्म में आमतौर पर पुरुषों का खतना होता है, लेकिन कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां महिलाओं का खतना किया जाता है। इसे अंग्रेजी में फीमेल जेनिटल म्यूटीलेशन (एफजीएम) कहा जाता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, रूढ़ीवादी मुसलमान मानते हैं कि खतने के बाद महिलाएं 'पवित्र' और 'शादी करने के लिए लायक' हो जाती हैं।
कुछ देशों में महिलाओं का खतना प्रतिबंधित है, जबकि कुछ देशों में यह आज भी किया जा रहा है। एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बोहरा समुदाय की महिलाओं का खतना किया जाता है। मिस्र ने साल 2008 में महिलाओं के खतना करने पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन अभी भी दुनिया में ऐसे मामलों की संख्या सबसे ज्यादा है। बहरीन से लौटते समय पोप फ्रांसिस ने महिलाओं के अधिकारों से जुड़े एक सवाल के जवाब में इस दर्दनाक प्रथा का जिक्र किया है।
खतरे में हैं 40 लाख लड़कियां
पोप फ्रांसिस ने कहा कि क्या हम आज दुनिया की युवा महिलाओं के साथ होने वाली इस त्रासदी को नहीं रोक सकते? यह भयानक है कि यह प्रथा आज भी अस्तित्व में है, जिसे मानवता रोक नहीं पा रही है। यह अपराध है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, एफजीएम यानी खतना अफ्रीका और मध्य पूर्व के लगभग 30 देशों में होता है। लेकिन अन्य जगहों पर, अप्रवासी आबादी भी इस प्रथा का पालन करती है। यूएन का कहना है कि इस साल 40 लाख से ज्यादा लड़कियों का खतना होने का खतरा है।
खतने में महिला के साथ क्या होता है?
महिलाओं का खतना रूढ़िवादियों की एक अत्यंत दर्दनाक प्रक्रिया है। इसमें महिलाओं के जननांगों को क्षत-विक्षत कर दिया जाता है। इसमें महिलाओं के बाहरी जननांग को किसी नुकीली चीज से काट दिए जाता है। दुनिया के कई देश इसका विरोध करते हैं और वैश्विक नेताओं ने 2030 तक इसे पूरी तरह खत्म करने का वादा किया है। लेकिन सच्चाई यह है कि पश्चिमी देशों में भी बड़ी संख्या में लड़कियां इस दर्द से गुजरती हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने बताया मानवाधिकारों का उल्लंघन
संयुक्त राष्ट्र ने इस प्रथा को 'मानवाधिकारों का उल्लंघन' बताया है। इसे रोकने और इसके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 6 फरवरी को 'इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टॉलरेंस फॉर एफजीएम' मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि बिना किसी चिकित्सकीय कारण के महिलाओं के जननांगों को नुकसान पहुंचाने वाली प्रक्रियाएं एफजीएम की श्रेणी में आती हैं। इस प्रक्रिया में नवजात लड़कियों से लेकर 15 साल की लड़कियां शामिल होती हैं।