Highlights
- घाना में मारबर्ग वायरस के दो मामले मिले हैं
- रक्तस्रावी बुखार के तौर पर जाना जाता था
- औसत मृत्यु दर लगभग 50 प्रतिशत तक रही
Marburg Virus Cases in Ghana: घाना में जुलाई 2022 में घातक मारबर्ग वायरस के पहले दो मामलों की पुष्टि हुई। अत्यंत संक्रामक यह वायरस उसी परिवार से संबंधित है, जिससे इबोला होता है। ‘द कन्वरसेशन’ अफ्रीका के वेले फाटाडे और उसिफो ओमोजोकपीया ने विषाणु विज्ञानी ओयेवाले तोमोरी से इसकी उत्पत्ति के बारे में पूछा और जानना चाहा कि लोग इस बीमारी से खुद को कैसे बचा सकते हैं।
मारबर्ग वायरस क्या है और यह कहां से आया है?
मारबर्ग वायरस मारबर्ग वायरस रोग (एमवीडी) का कारण बनता है, जिसे पहले मारबर्ग रक्तस्रावी बुखार के रूप में जाना जाता था। इबोला वायरस के समान परिवार से संबंधित यह वायरस इंसानों में गंभीर वायरल रक्तस्रावी बुखार का कारण बनता है, जिसमें औसत मृत्यु दर लगभग 50 प्रतिशत है। यह दर वायरस के स्वरूप और मामलों के प्रबंधन के आधार पर विभिन्न प्रकोपों में 24 प्रतिशत से 88 प्रतिशत के बीच होती है।
पहली बार 1967 में जर्मनी के मारबर्ग नामक शहर और बेलग्रेड, यूगोस्लाविया (अब सर्बिया) में इसका मामला आया था। दोनों शहरों में एक साथ यह बीमारी फैली। मारबर्ग पर प्रयोगशाला में अध्ययन के लिए युगांडा से लाए गए बंदरों से इसका प्रसार हुआ। बंदरों से संबंधित सामग्री (रक्त, ऊतक और कोशिकाओं) के साथ काम करने के परिणामस्वरूप प्रयोगशाला के कर्मचारी संक्रमित हो गए। इन बीमारियों से जुड़े 31 मामलों में से सात लोगों की मौत हो गई।
शुरुआती प्रकोप के बाद दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मामले सामने आए हैं। अधिकतर मामले अफ्रीका में युगांडा, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और हाल में गिनी और घाना में आए। सीरोलॉजिकल अध्ययनों से नाइजीरिया में पूर्व में मारबर्ग वायरस के संक्रमण के प्रमाण भी सामने आए हैं। वायरस के वाहक या स्रोत की निर्णायक रूप से पहचान नहीं हो पाई है लेकिन इसका संबंध फ्रूट बैट (चमगादड़ की एक प्रजाति) से जोड़ा गया है। वर्ष 2008 में, युगांडा में एक गुफा का दौरा करने वाले यात्रियों में दो मामले सामने आए थे।
यह वायरस कैसे फैलता है?
यह वायरस संक्रमण के वाहक या भंडार (तरल पदार्थ, खून, उत्तक और कोशिकाओं) के संपर्क में आने से फैलता है। युगांडा के बंदरों से मारबर्ग के प्रसार के मामले में प्रयोगशाला के कर्मचारी बंदरों की कोशिकाओं और खून के संपर्क में आने से प्रभावित हुए थे।
यह संक्रमित लोगों के रक्त, अंगों या शरीर से जुड़े अन्य तरल पदार्थों और सतहों तथा सामग्रियों के साथ सीधे संपर्क (टूटी हुई त्वचा या श्लेष्मा झिल्ली के माध्यम से) के माध्यम से इंसान से इंसान में भी फैल सकता है। बिस्तर, और इन तरल पदार्थों से दूषित कपड़े जैसी सामग्री से भी इसका प्रसार होता है। लेकिन, बहुत कुछ ऐसा है जिसके बारे में हम नहीं जानते। उदाहरण के लिए, क्या गुफाओं में चमगादड़ वाले स्थानों के संपर्क में आने से लोगों में संक्रमण हो सकता है।
इस बीमारी में किस तरह के लक्षण होते हैं और वे कितने खराब होते हैं?
दो से 21 दिनों की अवधि में कुछ लक्षण दिखने के बाद, बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द की समस्या होती है। लक्षणों की शुरुआत के करीब पांचवें दिन, छाती, पीठ, पेट पर कुछ दाने दिखाई दे सकते हैं। मतली, उल्टी, सीने में दर्द, गले में खराश, पेट में दर्द और दस्त की समस्या भी हो सकती है। लक्षण तेजी से गंभीर हो जाते हैं और इसमें पीलिया, अग्नाशय सूजन, तेजी से वजन घटने, जिगर फेल होना, बड़े पैमाने पर रक्तस्राव तथा कई अंगों के सही से काम नहीं करने की समस्या होती है।
इस बीमारी में औसत मृत्यु दर 50 प्रतिशत है और अधिकतम 88 प्रतिशत या न्यूनतम 20 प्रतिशत हो सकती है। इससे पता चलता है कि यह एक गंभीर संक्रमण है। घाना में दो लोग संक्रमित हुए और दोनों की मौत हो गई।
क्या इसका उपचार है?
वास्तव में कोई उपचार नहीं, लेकिन शरीर में पानी की कमी नहीं होने देने के साथ प्रारंभिक देखभाल और लक्षण के आधा पर उपचार, बचाव की स्थिति में सुधार करता है।
लोग बचाव के लिए क्या कर सकते हैं?
बीमारियों से कभी छुट्टी नहीं मिलने वाली। इसका मतलब है कि देश में निगरानी का स्तर हमेशा बनाए रखना चाहिए, इसे हम कभी रोक नहीं सकते।
घाना के मामलों को देखते हुए हमें सतर्क रहना चाहिए। पर्याप्त निगरानी, जांच होनी चाहिए। घाना और अन्य पश्चिम अफ्रीकी देशों से आने वालों की जांच होनी चाहिए। लेकिन, ऐसा हो नहीं रहा। हर जगह रुख यही है कि घाना में तो अब तक केवल दो ही मामले आए हैं। लेकिन, हवाई अड्डों, बंदरगाहों और अन्य स्थानों पर चौकसी बढ़ाने का यह उपयुक्त समय है। नाइजीरिया में 1980 और 1990 के दशक के अध्ययनों से प्रमाण मिले हैं कि देश की कुछ आबादी मारबर्ग वायरस या संबंधित वायरस से प्रभावित हुई थी। इससे ऐसा लगता है कि हम जितना जानते हैं उसके मुकाबले ज्यादा तेजी से इसका प्रसार होता है।