Highlights
- माली और फ्रांस के बीच हुई बहस
- नौ साल बाद गई थी फ्रांस की सेना
- फ्रांस पर लगाया जासूसी का आरोप
Mali France Relations: अफ्रीकी देश माली के विदेश मंत्री अब्दुल्ला दयूब ने मंगलवार को फ्रांस पर अशांत पश्चिमी अफ्रीकी देश पर आक्रामक कार्रवाई करने के साथ ही उसकी जासूसी कराने का आरोप लगाया है। हालांकि फ्रांस ने इन आरोपों को “झूठा” और “मानहानिकारक” बताते हुए खारिज कर दिया है। दोनों देशों के बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में तीखी बहस हुई। इस दौरान माली ने अगस्त 2020 में हुए तख्तापलट और फ्रांसीसी सैनिकों की पूरी तरह से वापसी के बाद से दोनों देशों के संबंधों में आई खटास को रेखांकित किया।
फ्रांस ने माली सरकार के अनुरोध पर इस्लामी चरमपंथियों से लड़ने के लिए 2013 में अपने सुरक्षा बलों को माली भेजा था। माली के विदेश मंत्री अब्दुल्ला दयूब ने एक बार फिर वही आरोप दोहराए, जो अगस्त में अंतरिम सरकार ने लगाए थे। सरकार ने कहा था कि फ्रांस के विमानों ने माली के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया और वह आम नागरिकों के लिए समस्याएं पैदा कर रहे “अपराधी समूहों” को सहायता प्रदान कर रहा है। उन्होंने “फ्रांस द्वारा माली के खिलाफ जासूसी कराने और अस्थिरता पैदा करने संबंधी सबूतों पर प्रकाश डालने के लिए” सुरक्षा परिषद की विशेष बैठक बुलाने का अनुरोध किया।
फ्रांस ने क्या कुछ कहा?
हालांकि संयुक्त राष्ट्र में फ्रांस के राजदूत निकोलस डि रिवेएरे ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वह “माली की अंतरिम सरकार के झूठे और मानहानिकारक आरोपों के बाद सच्चाई को फिर से सामने लाना चाहते हैं।” उन्होंने जोर देते हुए कहा कि “फ्रांस ने कभी भी माली के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया है।” डि रिवेएरे ने कहा, “फ्रांस साहेल, गिनी की खाड़ी और चाड झील क्षेत्र में उन सभी राज्यों से जुड़ा रहेगा, जिन्होंने आतंकवाद का मुकाबला करने और समुदायों के बीच स्थिरता व शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का सम्मान करने का विकल्प चुना है।”
माली से 9 साल बाद गई सेना
इससे पहले खबर आई थी कि फ्रांस की सेना मंगलवार रात माली के टिम्बकटू शहर से रवाना हो गई है। यह इस बात का संकेत है कि इस्लामी चरमपंथियों को खदेड़ने के लगभग नौ साल बाद पूर्व औपनिवेशिक शक्ति उत्तरी माली में अपनी मौजूदगी कम कर रही है। इस कदम के बीच सवाल उठ रहे हैं कि क्या माली की सेना खुद कार्रवाई कर चरमपंथियों को रोक पाने में सक्षम है। चरमपंथियों ने 2013 के हमले के बाद से खुद को मजबूत किया है और दक्षिण में अपनी पहुंच को बढ़ाया है।