Highlights
- ईरान में हिजाब के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
- महिलाएं आग के हवाले कर रहीं अपने हिजाब
- माहसा अमीनी की मौत के बाद भड़के प्रदर्शन
Iran Hijab: ईरान में एक बार फिर वही स्थिति देखने को मिल रही है, जो इससे पहले साल 1979 में देखने को मिली थी। जिसे इस्लामिक क्रांति के नाम से जाना जाता है। इस क्रांति ने सबकुछ बदलकर रख दिया था। इस समय ईरान में हिजाब का भारी विरोध हो रहा है। राजधानी तेहरान समेत कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। महिलाएं हिजाब में आग लगा रही हैं और विरोध दर्ज कराने के लिए अपने बाल तक काट रही हैं। इन प्रदर्शनों में पुरुष भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। सोशल मीडिया पर इन प्रदर्शनों के कई वीडियो वायरल हो रहे हैं। जिनमें लोग देश के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली खामनेई के खिलाफ नारे लगा रहे हैं। देश में लोकतांत्रित व्यवस्था होने के बावजूद सभी फैसले खामनेई ही लेते हैं।
ईरान में इन विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत तब हुई, जब एक 22 साल की कुर्द महिला माहसा अमीनी की मौत हो गई। माहसा को ईरान की मोरल (नैतिक) पुलिस ने ढंग से हिजाब नहीं पहनने के चलते हिरासत में लिया था। पुलिस पर आरोप हैं कि उसने माहसा को प्राताड़ित किया, जिसके बाद उनकी अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। माहसा का परिवार कह रहा है कि उनकी बेटी को हिरासत के दौरान खूब पीटा गया। जबकि प्रशासन का कहना है कि माहसा की मौत का कारण हार्ट अटैक था। प्रदर्शनों की शुरुआत देश के पश्चिमी हिस्से से हुई। ये वो इलाका है, जिसे कुर्दिस्तान भी कहा जाता है। यहां के लोग कई साल से अलग देश की मांग पर अड़े हुए हैं। माहसा यहीं के साकेज शहर की रहने वाली थीं। यहां महिलाओं ने हाथ में हिजाब लेकर विरोध प्रदर्शन किया और सरकार विरोधी नारे लगाए।
हिरासत के बाद हुई मौत
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अमीनी को जीना नाम से भी जाना जाता था। वह अपने शहर साकेज से राजधानी तेहरान आई थीं। यहां वह अपने भाई के साथ रिश्तेदारों से मिलने गईं, तभी उन्हें देश में महिलाओं के लिए जारी ड्रेस कोड का उल्लंघन करने के आरोप में हिरासत में ले लिया गया। देश में ड्रेस कोड से संबंधित कानूनों को लागू करने के लिए ईरान की मोरल पुलिस की अपनी यूनिट हैं। अमीनी को उनकी हिरासत का कोई वाजिब कारण नहीं बताया गया। हालांकि मीडिया संगठनों का कहना है कि उन्हें उनके कपड़ों के चलते हिरासत में लिया गया था। अमीनी की मां ने ईरानी मीडिया संगठन को दिए इंटरव्यू में कहा है कि उनकी बेटी ने नियमों के मुताबिक ही कपड़े पहने थे।
हिरासत में लिए जाने के बाद अमीनी को डिटेंशन सेंटर ले जाया गया। जहां पूछताछ के वक्त उनके भाई मौजूद थे। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स ने कहा है कि अमीनी के भाई ने अंदर से उनके 'चिल्लाने की आवाजें' सुनीं, जिसके तुरंत बाद एंबुलेंस बुलाई गई। अमीनी को फिर अस्पताल ले जाया गया, जहां वह कोमा में चली गईं। अचेत अवस्था में अस्पताल के पलंग पर पड़ी अमीनी की कई तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। जिसमें उनके मुंह पर ट्यूब, कांनों से खून और आंखों के आसपास चोट के निशान नजर आ रहे हैं। ईरान के सुरक्षाबलों ने एक बयान जारी कर कहा कि हिजाब से संबंधित नियमों पर 'शैक्षिक प्रशिक्षण' दिए जाने के दौरान अमीनी अचानक गिर गई थीं और उन्हें हार्ट अटैक आ गया। हालांकि अमीनी के परिवार ने कहा कि हिरासत से पहले वह पूरी तरह स्वस्थ थीं।
ईरान के सुरक्षाबलों ने भी वीडियो जारी किया है, जिसे एडिटिड बताया जा रहा है। जिसमें दिखाई दे रही एक महिला को पुलिस अधिकारी अमीनी बता रहे हैं। जो डिटेंशन सेंटर में एक अन्य महिला से बात करती दिख रही है। तभी अचानक वह अपना सिर पकड़ती है और नीचे गिर जाती है। फिर वीडियो में कट्स के बाद मेडिकल स्टाफ कमरे में प्रवेश करता हुआ दिखाई देता है। अमीनी के परिवार ने अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं की है कि वीडियो में दिखाई दे रही महिला अमीनी ही हैं या कोई और।
विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत कैसे हुई?
अमीनी की मौत के बाद महिलाओं के ड्रेस कोड, इससे जुड़े नियम, इन्हें तोड़ने पर हिरासत में लिए जाने और प्रताड़ित करने के मामले में बहस शुरू हो गई। प्रदर्शनों के पीछे का एक सबसे बड़ा कारण ये भी है कि ईरान के सुरक्षाबलों ने घटना की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया है। कुर्दों के मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले प्लैटफॉर्म Hengaw का कहना है कि प्रदर्शनों में अभी तक कम से कम 38 लोग घायल हुए हैं। सबसे पहले प्रदर्शन तेहरान के कासरा अस्पताल के बाहर शुरू हुए थे। जहां पुलिस अमीनी को लेकर आई थी। इसके बाद प्रदर्शन तेहरान के बाहर भी होने लगे और अमीनी के शहर साकेज तक पहुंच गए।
पुलिस ने अमीनी के अंतिम संस्कार में लोगों की संख्या को कम से कम रखने की कोशिश की, लेकिन फिर भी उनकी कब्र पर हजारों लोग मौजूद थे। द गार्जियन ने बताया कि अमीनी के अंतिम संस्कार के बाद प्रदर्शनकारी साकेज के गवर्नर के कार्यालय के बाहर भी जमा हो गए और फिर जल्द ही प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया। कुर्द मानवाधिकार समूहों के अनुसार, विरोध स्थल पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ब्लैक पैपर (काली मिर्च) स्प्रे और आंसू गैस का इस्तेमाल किया है। कई वायरल वीडियो में गोलियों की आवाज भी सुनी गईं। वायरल वीडियो में महिला प्रदर्शनकारियों को अमीनी के साथ एकजुटता में हिजाब उतारते हुए देखा जा सकता है।
तेहरान विश्वविद्यालय में फाइन आर्ट्स की फैकल्टी ने भी 100 से अधिक छात्रों के साथ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया, जिन्होंने पोस्टर पकड़े हुए थे। इन पोस्टरों पर लिखा था, 'महिलाएं, जीवन, स्वतंत्रता' और उन्हें सजा का खतरा। कई महिलाओं ने सरकार और अमीनी की मौत के विरोध में अपने बाल काटने के वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किए हैं।
ईरान का हिजाब कानून क्या है?
इस्लामी क्रांति (1978-79) के बाद ईरान ने 1981 में एक अनिवार्य हिजाब कानून पारित किया था। इस्लामी दंड संहिता के अनुच्छेद 638 में कहा गया है कि महिलाओं का सार्वजनिक रूप से या सड़कों पर हिजाब के बिना दिखाई देना अपराध है। द गार्जियन ने इस महीने की शुरुआत में बताया था कि ईरानी अधिकारी उन महिलाओं की पहचान करने के लिए सार्वजनिक परिवहन में फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं, जो हिजाब नियमों का ठीक से पालन नहीं कर रही हैं।
इसी साल जुलाई में नेशनल हिजाब और चैसटिटी डे (राष्ट्रीय हिजाब और शुद्धता दिवस) पर ईरान में व्यापक विरोध देखा गया, जहां महिलाओं ने सार्वजनिक रूप से अपने हिजाब को हटाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया था। कई लोगों ने सार्वजनिक परिवहन में हिजाब नहीं पहनने की तस्वीरें और वीडियो भी पोस्ट किए थे।
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने जुलाई में ईरान के हिजाब और शुद्धता कानून को नए प्रतिबंधों के साथ लागू करने के लिए एक आदेश पारित किया था। सरकार ने 'अनुचित तरीके से हिजाब' पहनने जैसे मामलों को रोकने के लिए हाई हील्स और मोजा पहनने के खिलाफ भी आदेश जारी किया। इस आदेश में महिलाओं के लिए अपनी गर्दन और कंधों को ढंकना अनिवार्य कर दिया गया।
क्या थी 1979 की क्रांति?
ईरान में आज जो कुछ भी हो रहा है, उसकी तुलना 1979 में हुई क्रांति से की जा रही है। जिस अरब क्रांति को आज पूरी दुनिया जानती है, उसकी शुरुआत ईरान की इस्लामिक क्रांति से ही मानी जाती है। 11 फरवरी 1979 को ईरान से 'पहलवी राजवंश' (जिसे अमेरिकी समर्थन प्राप्त था) के शासन की समाप्ति हुई और मुस्लिम क्रांति के जनक 'अयातुल्ला रुहोल्ला खोमैनी' को ईरान का सर्वोच्च नेता चुना गया। ईरान में इस्लामिक क्रांति 1977 में आरंभ हुई थी। 1978 के अंत तक यह क्रांति अपने चरम पर पहुंच गई, जिसके बाद ईरान के शाह 'मोहम्मद रजा शाह पहलवी' ने 16 जनवरी 1979 को शपूर बख्तियार को प्रधानमंत्री पद सौंपा और खुद देश छोड़कर चले गए।
इसके बाद लोगों के समर्थन से अयातुल्ला खुमैनी ने 11 फरवरी 1979 को सरकार को भंग कर दिया और 1 अप्रैल 1979 को राष्ट्रीय जनाधार के आधार पर ईरान को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया। दिसंबर 1979 को संविधान बनाकर अयातुल्ला खुमैनी को देश का सर्वेच्च नेता चुन लिया गया। ईरान की क्रांति का सबसे बड़ा कारण शाह के शासन का क्रूर, भ्रष्ट और पश्चिमी सभ्यता का समर्थक होना था। इस्लामिक मूल्यों के हनन ने जनता के मन में शासन के प्रति रोष भर दिया, जिसके चलते इस्लामिक क्रांति हुई थी।
ईरान की इस्लामिक क्रांति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा और आज जो दुनिया का राजनैतिक और कूटनीतिक परिदृश्य है, उस पर कहीं ना कहीं ईरान की इस्लामिक क्रांति का प्रभाव है। 1980 में ईरान-ईराक के बीच छिड़े युद्ध के कारणों में ईरान की क्रांति भी एक प्रमुख वजह रही। इसलिए ईरान की इस्लामिक क्रांति इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।