Highlights
- तालीबानी दुनिया के सभी देशों के लिए खतरा
- अफगानिस्तान में तालीबानी आतंकियों की मौजूदगी से हमले बढ़े
- आइएसआइएस लगातार कर रहा आतंकवादी हमले
India at UN on Taliban:भारत ने तालिबान शासित अफगानिस्तान में आतंवादियों की मौजूदगी को लेकर यूएन के सामने वो कड़वी बात कह दी है कि जिसे सुनकर सभी देश दंग रह गए। अन्य देश ऐसा कहने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाएंगे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा कि तालिबान शासित अफगानिस्तान में आतंकवादी संगठनों की मौजूदगी सभी देशों के लिए खतरा है।
कंबोज ने कहा कि "हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि इस तरह के प्रतिबंधित आतंकवादियों, संस्थाओं या उनके उपनामों को और उनके ठिकानों को अफगान की धरती या अन्य क्षेत्र में प्रत्यक्ष या मौन समर्थन नहीं मिले। अफगानिस्तान से आतंकवादी खतरों को लेकर भारत की इन चिंताओं को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में भी साझा किया गया।
आइएसआएस लगातार कर रहा हमले
भारत ने इस दौरान कहा कि अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट-खुरासान (आइएस-के) आतंकी समूह की मौजूदगी और उसकी 'हमले करने की क्षमता' में 'काफी वृद्धि' हुई है। वह लगातार हमलों पर हमले कर रहे हैं और तमाम मासूमों की जान ले रहे हैं। इतना ही नहीं आइएसआइएस से संबद्ध संगठन भी दूसरे देशों पर आतंकवादी हमलों की धमकी देना जारी रखे हुए हैं। भारत ने इस दौरान गत जून में काबुल में एक गुरुद्वारे पर हुए हमले और अगले महीने उसके पास हुए बम विस्फोट की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए इसे 'बेहद खतरनाक' बताया। उन्होंने कहा कि इस हमले की जिम्मेदारी स्वयं आइएसआइएस के आतंकवादियों ने ली थी
तालीबानियों के अन्य आतंकी संगठनों से गठजोड़
भारत ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि तालिबानी आतंकवादियों के संबंध संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा सूचीबद्ध किए गए आतंकवादी समूहों जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से भी हैं। जो कि अफगानिस्तान और उससे बाहर संचालित हैं। इन आतंकवादी समूहों द्वारा दिए जाने वाले भड़काऊ बयान और उनकी गतिविधियां सभी देशों की शांति और स्थिरता के लिए सीधा खतरा हैं।
भारत के कथन को ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका ने स्वीकारा
अफगानिस्तान में तालीबानी आतंकियों की सरकार और उनसे संबद्ध अन्य आतंकी समूहों से दुनिया के देशों को आतंकवादी खतरे की बात को ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका, अल्बानिया, केन्या और यहां तक कि चीन और रूस ने भी स्वीकार किया है। सभी को अफगानिस्तान से आतंकवाद के खतरे का डर है। यह बैठक रूस के अनुरोध पर बुलाई गई थी, जो चीन, ईरान और पाकिस्तान के साथ तालिबान पर प्रतिबंधों में ढील देना चाहता था। मगर भारत की खरी-खरी सुनने के बाद सभी देश सन्न रह गए और चिंतन मनन करने पर मजबूर हुए।
इन देशों ने क्या कहा
चीन के स्थायी प्रतिनिधि झांग जून ने कहा कि अमेरिका को 'जड़ी हुई संपत्ति तुरंत वापस करनी चाहिए' और पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि मुनीर अकरम ने इसे विधिवत प्रतिध्वनित किया। अमेरिका के स्थायी प्रतिनिधि लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने जवाब दिया : "कोई भी देश जो अफगानिस्तान में आतंकवाद को रोकने के लिए गंभीर है, वह तालिबान को तत्काल, बिना शर्त अरबों की संपत्ति तक पहुंच प्रदान करने की वकालत नहीं करेगा । संयुक्त अरब अमीरात के स्थायी प्रतिनिधि लाना जकी नुसेबेह ने कहा कि परिषद को तालिबान को आतंकवाद से निपटने के लिए उपलब्ध साधनों का उपयोग करना चाहिए।
चीन-पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में आतंकवाद के लिए अमेरिका को ठहराया जिम्मेदार
अल्बानिया के स्थायी प्रतिनिधि फ्रिड होक्सा ने उल्लेख किया कि तालिबान और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के बीच व्यापक संबंध जारी हैं। जबकि केन्या के काउंसलर गिदोन किनुथिया नडुंगु ने कहा कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अफगानिस्तान आइएसआइएस और अल कायदा जैसे आतंकवादी समूहों के लिए हमले शुरू करने का आधार नहीं होगा। वहीं चीन, ईरान और पाकिस्तान के साथ रूस ने अफगानिस्तान में आतंकवाद के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया। रूस के स्थायी प्रतिनिधि वसीली नेबेंज्या ने कहा, "अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए एक विशेष मिशन के साथ अफगानिस्तान आया था .. वास्तव में यह देश दवाओं के उत्पादन और वितरण में काफी मजबूत हुआ था, लेकिन तालिबान के आने से यह आतंकवाद का केंद्र बन गया।"
रुचिरा ने कहा कि भारत ने अफगानिस्तान को 32 टन चिकित्सा सहायता भेजी है, जिसमें आवश्यक जीवन रक्षक दवाएं, टीबी-रोधी दवाएं और कोविड वैक्सीन की 500,000 खुराक और 40,000 टन से अधिक गेहूं शामिल है। इन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना सुनिश्चित करने के लिए वितरित किया जा रहा है।