Highlights
- विभिन्न देशों पर लगे वैश्विक प्रतिबंधों का विकासशील देश झेल रहे ज्यादा असर
- विकासशील देशों के विकास का पहिया थमने से बड़ी आर्थिक मंदी के मिल रहे संकेत
- भारत ग्लोबल संकट के बीच बना दुनिया की एकमात्र उम्मीद
Developed countries:विश्व में तेजी से बदलते आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक परिवेश में विकासशील देशों के समक्ष नई-नई चुनौतियां पेश हो रही हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया के हालात तेजी से खराब हुए हैं। खासकर के विकासशील देशों के आर्थिक हालात बदतर होते जा रहे हैं। इसकी वजह विकसित देशों द्वारा किसी अन्य देश पर लगाए जाने वाले ऐसे प्रतिबंध हैं, जिनका सीधा असर विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। मगर हैरानी तो इस बात की है कि विकसित देश ऐसे फैसले लेते वक्त विकासशील देशों की चिंता नहीं कर रहे हैं।
अमेरिका, यूएन और पश्चिमी देशों ने कई देशों पर विभिन्न तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाया है। रूस, ईरान इत्यादि देश इसके उदाहरण हो सकते हैं। मगर इसका असर विकासशील देशों पर अधिक पड़ रहा है। हालांकि विकसित और पश्चिमी देश भी इससे अप्रभावित नहीं है, लेकिन विकासशील देशों की तो मानो विकासगति ही मंद पड़ गई है। अगर ये हालात नहीं बदले तो आने वाले समय में पूरी दुनिया पर इन प्रतिबंधों का व्यापक असर होगा। वैश्विक मंदी के तौर पर इसका असर अभी से देखने को मिलने लगा है। इसलिए पूरी दुनिया को अब इस तरह के प्रतिबंध लगाने से पहले सोचना होगा। ताकि विकासशील देशों को इतना अधिक मुश्किलों के दौर से नहीं गुजरना पड़े।
भारत बना विकासशील देशों की आवाज
भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की हाल में संपन्न सालाना बैठकों में भारत समेत कई देशों ने विकसित देशों के राजनीतिक और आर्थिक निर्णयों के ‘वैश्विक’ प्रभाव पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने यहां अपनी बैठकों के दौरान इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। इस सप्ताह की शुरुआत में सीतारमण ने कहा था कि निकट भविष्य में विकसित देशों को अपने राजनीतिक और आर्थिक फैसलों के वैश्विक प्रभाव की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और महज अपने लोगों के नैतिक और लोकतांत्रिक दायित्वों को पूरा करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाने के बजाय सुरक्षा उपाय करने चाहिए। भारत की इस टिप्पणी का सभी विकासशील देश समर्थन कर रहे हैं। भारत एकमात्र ऐसा देश है, जो सभी की आवाज मजबूती से उठा रहा है।
कई देशों ने उठाया विकसित देशों की कार्यशैली पर सवाल
सीतारमण की यह टिप्पणी ऐसे वक्त में आयी है, जब अमेरिका की अगुवाई में पश्चिम देशों ने रूस से तेल का आयात कम कर दिया है और वह अन्य देशों को भी चेतावनी दे रहे हैं कि अगर उन्होंने रूस से तेल खरीदा तो उन्हें प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। सीतारमण ने शनिवार को यहां भारतीय पत्रकारों के एक समूहों के साथ बातचीत में कहा कि उन्होंने अपनी द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय बैठकों के दौरान भी यह मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने किसी एक मंत्री या उनकी प्रतिक्रिया पर गौर नहीं किया लेकिन मैंने यह कहा। संयोग से एक अलग बैठक में मुल्यानी (इंद्रावती, इंडोनेशिया के वित्त मंत्री) ने भी यह मुद्दा उठाया।
शायद एक या दो देशों ने भी यह मुद्दा उठाया। अगर मैं गलत नहीं हूं तो संभवत: नाइजीरिया के वित्त मंत्री ने भी आवाज उठायी।’’ सीतारमण 11 अक्टूबर से अमेरिका की छह दिवसीय यात्रा पर हैं। आईएमएफ तथा विश्व बैंक की सालाना बैठकों में भाग लेने के अलावा उन्होंने यात्रा के दौरान कई देशों के अपने समकक्षों के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी कीं।