Highlights
- कोविड वैक्सीन के पेटेंट नियमों को खत्म करने की मांग ने जोर पकड़ा
- WTO ने पेटेंट नियमों को खत्म करने की सहमति जताई थी लेकिन खत्म नहीं किया था
- दुनिया में कोविड वैक्सीन के असमानता को लेकर ही पेटेंट नियम एक बहस का मुद्दा बना हुआ है
Covid Vaccine Patent: कोविड वैक्सीन तक आसान पहुंच के कारण पेटेंट नियमों को खत्म करने की मांग जोर पकड़ रही है। पेटेंट नियमों को खत्म करने से पहले विकासशील देशों को बेहतर परिणाम सुनिश्चित करने की जरूरत है। विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सदस्यों ने जून में कोविड-19 टीकों को लेकर पेटेंट नियमों में छूट देने पर सहमति जतायी थी, लेकिन इन्हें खत्म करने से इनकार कर दिया था। 2020 के अंत में जब टीके दुनिया के कुछ हिस्सों में पहुंचने लगे तो कुछ राहत मिली और इस दिशा में उम्मीद की किरण नजर आई। कई देश टीकाकरण की दर के मामले में अब भी काफी पीछे हैं। इस असमानता के चलते ही पेटेंट नियमों को खत्म करने के समर्थकों को आवाज बुलंद करने का अवसर मिला है। लेकिन अन्य मुद्दे अब भी बरकरार हैं।
कोविड वैक्सीन को लेकर दुनिया में असमानता
जरूरी नहीं है कि टीकाकरण की दर किसी देश की संपत्ति के साथ अनिवार्य रूप से संबंधित हो। उदाहरण के लिए अर्जेंटीना, बांग्लादेश, भूटान, ब्राजील, कंबोडिया, चिली, चीन, कोलंबिया, क्यूबा, इक्वाडोर, ईरान, लाओस, मलेशिया, नेपाल, पेरु, श्रीलंका, थाइलैंड, उरुग्वे और वियतनाम आदि देशों में टीकाकरण की दर अमीर माने जाने वाले ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, नीदरलैंड और जर्मनी से अधिक है या उनके समान है। दूसरी ओर, अफ्रीका का कोई भी देश टीकाकरण दर के मामले में पश्चिमी देशों के आसपास भी नहीं है।
वैक्सीन पेटेंट पर WTO
एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी समझौते के तहत विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के लिए यह जरूरी है कि वे टीकों समेत नए आविष्कारों से संबंधित पेटेंट की रक्षा करें। पेटेंट 20 साल तक चलता है और इस अवधि के दौरान केवल पेटेंट धारक या इसका लाइसेंसधारक ही कोई टीका निर्मित कर सकता है। कोई समझौता होने की सूरत में यह अपवाद हो सकता है। कई विकासशील देशों ने कोविड-19 टीके और दवा के संबंध में WTO के समक्ष पेटेंट नियमों में छूट का प्रस्ताव रखा था। जून में लिए गए निर्णय के बाद, यदि विश्व व्यापार संगठन का कोई सदस्य पेटेंट का अनिवार्य लाइसेंस जारी करता है, तो भी पेटेंट मालिक पेटेंट का उपयोग करके बनाए गए टीकों के लिए भुगतान का हकदार है। इस निर्णय के बाद बस यह फर्क पड़ा है कि पेटेंट धारक वैक्सीन बनाने और वितरित करने के लिए अनिवार्य लाइसेंस जारी करने से इनकार नहीं कर सकता।
वैक्सीन निर्माताओं के लिए क्यों जरूरी है पेटेंट
पेटेंट संरक्षण का उद्देश्य कोविड-19 टीकों जैसे नए उत्पादों का आविष्कार करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना है। विभिन्न कोविड-19 टीके एक दशक पहले हुई तकनीकी प्रगति की देन हैं, यही वजह है कि कोविड-19 महामारी के उभरने के बाद टीकों का इतनी जल्दी उत्पादन किया जा सका है। उस तकनीकी प्रगति के बिना दुनिया अब भी किसी कोविड-19 टीके की प्रतीक्षा कर रही होती, और मृत्यु दर में वृद्धि जैसे विनाशकारी प्रभाव सामने आ रहे होते। सभी पेटेंट टीके बाजार में नहीं आते और न ही सभी को नियामक अनुमोदन प्राप्त होता है, इसलिए वित्तीय सफलता की गारंटी के बिना टीके विकसित करने और परीक्षण की लागत व जोखिम को वहन करने की आवश्यकता होती है। यदि पेटेंट अधिकारों को समाप्त कर दिया जाता है, तो सवाल उठता है कि कोई भी दवा कंपनी भविष्य की महामारियों के लिए टीके के विकास में निवेश क्यों करेगी।
निजी उधमों से ही नहीं बल्कि सरकारी सब्सिडी भी मिलनी चाहिए
पेटेंट कानून के आलोचकों का कहना है कि तकनीकी विकास के लिए धन केवल निजी उद्यमों से नहीं बल्कि सरकारी अनुदानों से भी मिलना चाहिए। जिन रिसर्च के आधार पर मॉडर्ना का टीका तैयार किया गया, उनमें से कुछ रिसर्च अमेरिकी सरकारी की एजेंसियों या उन एजेंसियों के रिसर्च पर आधारित थे, जिनके साथ मॉडर्ना ने समझौता किया था। इसी प्रकार ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी में एस्ट्राजेनेका टीका तैयार करने के लिए भी कुछ देशों की सहायता ली गई थी। फिर भी इस तरह के रिसर्च में निजी वित्तपोषण के बिना सरकारी धन के दम पर सफलता हासिल नहीं की जा सकती। कुल मिलाकर, किसी भी तरह के टीकों के निर्माण में निर्माताओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें से एक परेशानी पेटेंट नियमों में छूट न होना भी है।