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COP-28: जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हुआ अब तक का सबसे बड़ा फैसला, विकसित देशों को अब करना होगा ये काम

दुबई में चल रहे कॉप-28 सम्मेलन में गरीब और विकासशील देशों ने मिलकर एक बड़े समझौते पर हस्ताक्षर किया है। इसके तहत जलवायु संकट पैदा करने वाले अमीर देशों को मिलकर प्रभावित गरीब और मध्यम विकासशील देशों को जुर्माना देना होगा। ताकि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ उनकी जंग भी मजबूत हो सके।

Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Nov 30, 2023 20:58 IST, Updated : Nov 30, 2023 20:59 IST
दुबई में चल रहा कॉप-28 सम्मेलन।
Image Source : AP दुबई में चल रहा कॉप-28 सम्मेलन।

दुबई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता की शुरुआत जोरदार रही  है। इस दौरान कॉप-28 के दौरान एक सबसे बड़ा फैसला लिया गाय है। विभिन्न देशों ने जलवायु संकट में कम योगदान देने के बावजूद इसका खामियाजा भुगतने वाले विकासशील और गरीब देशों को मुआवजा देने के बारे में शीघ्र समझौता किया। सीओपी-28 के पहले दिन हानि और क्षति कोष के संचालन पर समझौता अगले 12 दिन में महत्वाकांक्षी निर्णयों के लिए मंच तैयार करता है। पिछले साल मिस्र के शर्म अल-शेख में आयोजित सीओपी27 में अमीर देशों ने हानि और क्षति कोष स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की थी। हालांकि, धन आवंटन, लाभार्थियों और अमल के संबंध में निर्णय एक समिति को भेजे गए थे।
 
देशों के बीच मतभेद इतने गंभीर थे कि इन मुद्दों को हल करने के लिए अतिरिक्त बैठकों की आवश्यकता पड़ी। इस महीने की शुरुआत में एक मसौदा समझौता हुआ था और एक दिन पहले एक संशोधित समझौता पत्र जारी किया गया था। इसने विकसित देशों को कोष में योगदान देने के लिए कहा। इसमें यह भी कहा गया कि अन्य देश और निजी पक्ष योगदान दे सकते हैं। समझौते में कहा गया है कि आवंटन में जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे अधिक जोखिम वाले देशों को प्राथमिकता दी जाएगी लेकिन कोई भी जलवायु प्रभावित समुदाय या देश पात्र है। विकासशील देश कोष की मेजबानी के लिए एक नयी और स्वतंत्र इकाई चाहते थे और उन्होंने अनिच्छा से ही विश्व बैंक को स्वीकार किया। इस कोष को शुरू करने के निर्णय के तुरंत बाद संयुक्त अरब अमीरात और जर्मनी ने घोषणा की कि वे इस कोष में 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर का योगदान देंगे।

अमीर देश विश्व बैंक पर डाल रहे दबाव

‘क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल’ में वैश्विक राजनीतिक रणनीति के प्रमुख हरजीत सिंह ने कहा, ‘‘अपनी स्थापना के एक वर्ष के भीतर हानि और क्षति कोष को शुरू करने के ऐतिहासिक निर्णय के बीच अंतर्निहित चिंताओं को संबोधित करना महत्वपूर्ण हो जाता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘एक तरफ, अमीर देशों ने त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने की आड़ में इस कोष की मेजबानी के लिए विश्व बैंक पर दबाव डाला है। इसके विपरीत, उन्होंने अपने वित्तीय दायित्वों को कम करने का प्रयास किया है और स्पष्ट वित्त जुटाने के पैमाने को परिभाषित करने का विरोध किया है।’’ स्वतंत्र जलवायु परिवर्तन ‘थिंक टैंक’ ई3जी के शोधकर्ता इस्कंदर एरजिनी वर्नोइट ने  कहा, ‘‘यह आदर्श नहीं है, लेकिन यह एक शुरुआत है। यह विकासशील देशों में उन समुदायों की मदद करने की दिशा में एक मामूली कदम है जो पहले से ही असर झेल रहे हैं। (भाषा)

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