Highlights
- भारत को अफगानिस्तान के करीब लाएगा चाबहार
- ईरान तक जाने का सीधा रास्ता मुहैया कराता है ये
- कई देशों के लिए व्यापार का प्रमुख केंद्र है
Chabahar Port: भारत और चीन के बीच हिंद महासागर में जारी संघर्ष किसी से छिपा नहीं है। भारतीय नौसेना को अब इस मामले में अमेरिका का साथ मिलने लगा है। लेकिन इन सबके बीच अरब सागर में जो कुछ हो रहा है, उसपर किसी का ध्यान ही नहीं गया। अरब सागर में दो प्रमुख बंदरगाह हैं, एक ईरान का चाबहार बंदरगाह है और एक पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह। भारत ने 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ईरान दौरे के वक्त चाबहार बंदरगाह को लेकर ईरान के साथ एक समझौता किया था। यह समझौता भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। बता दें पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह चीन के चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) का हिस्सा है। ग्वादर पर विकास के नाम पर कब्जा करने के पीछे चीन का उद्देश्य हिंद महासागर में अपनी पैंठ मजबूत करना है। वहीं चाबहार बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान के और करीब लाने का काम करेगा। दोनों ही बंदरगाह अपने आप में काफी खास हैं।
ग्वादर और चाबहार के बीच करीब 172 किलोमीटर की दूरी है और एक बंदरगाह से दूसरे तक पहंचने में 5 से 6 घंटे का वक्त लग सकता है। दोनों ही बंदरगाह काफी बड़े हैं लेकिन उनकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वे दक्षिण एशिया में रणनीतिक संतुलन बना या बिगाड़ सकते हैं। पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह होर्मुज जलमार्ग के बहुत करीब है। इससे चीन आसानी से हिंद महासागर तक पहुंच सकता है। यहां से चीन भारतीय नौसेना के अलावा अरब सागर में मौजूद अमेरिकी नौसेना पर भी नजर रख सकता है। इसके अलावा फारस की खाड़ी में क्या गतिविधियां चल रही हैं, इस पर भी चीन कड़ी नजर रख सकता है।
भारत को छोड़ चीन-पाकिस्तान से दोस्ती
अब अगर हम ईरान के चाबहार बंदरगाह की बात करें, तो यह ईरान के सिस्तान प्रांत में पड़ता है और ये जगह बलूचिस्तान के दक्षिण में स्थित है। चाबहार ऐसा अकेला बंदरगाह है, जो भारत को ईरान तक जाने का सीधा रास्ता मुहैया कराता है। यह कई देशों के लिए व्यापार हेतु प्रमुख केंद्र है। बंदरगाह ओमान और फारस की खाड़ी के भी करीब है। इतना ही नहीं बल्कि चाबहार बंदरगाह का मौसम हमेशा अमेरिका के फ्लोरिडा में मियामी बंदरगाह जैसा ही रहता है। यह मध्य पूर्व का सबसे ठंडा बंदरगाह है। इसका निर्माण 1973 से चल रहा है लेकिन संसाधनों की कमी के कारण इसमें लगातार देरी होती रही है।
चीन का मकसद आखिर क्या है?
पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में है। बलूचिस्तान पाकिस्तान का वह हिस्सा है जिसके पास प्राकृतिक गैस और तेल का सबसे बड़ा भंडार है। इसी वजह से चीन ने ग्वादर को अपने लिए चुना था। पाकिस्तान इसी जगह से सबसे ज्यादा तेल और गैस का उत्पादन करता है। बलूचिस्तान के लोगों को इस बात का पता है कि संसाधनों के बावजूद उन्होंने कुछ हासिल नहीं किया है। 2002 में, चीन ने ग्वादर पोर्ट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट शुरू किया। यही वजह है कि कई बार बलूचिस्तान के लोग न केवल पाकिस्तान सरकार बल्कि चीन के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन करते हुए दिखाई देते हैं।
इस परियोजना पर चीन और पाकिस्तान के कई निवेशकों ने अरबों डॉलर खर्च कर दिए हैं। चीन ने अब इसपर 200 मिलियम डॉलर और निवेश करने की बात कही है। परियोजना का पहला चरण 2005 में पूरा हुआ था। 2001 तक ग्वादर की आबादी केवल 5000 थी। लेकिन चीन के परियोजना शुरू करने के बाद इसने 12,500 का आंकड़ा पार कर लिया। चीन यहां से तेल की आपूर्ति करने वाले विभिन्न रास्तों पर नजर रख सकता है।
विफल होगी चीन की घेराबंदी
चीन की हिंद महासागर में मौजूदगी उसकी सेना को कई गुना तक ताकतवर बना सकती है। इसके लिए वह म्यांमार और श्रीलंका से जरूरी मदद हासिल कर सकता है। लेकिन पाकिस्तान के साथ दोस्ती का फायदा उठाकर चीन एशिया में भी अपनी पकड़ बनाए रख सकता है। चीन हमेशा से ही भारत को घेरने की कोशिशें करता रहा है। हाल में रॉबर्ट कपलान की एक किताब आई है, जो हिंद महासागर पर आधारित है। इस किताब में उन्होंने बताया है कि कैसे चीन और पाकिस्तान एक दूसरे को सहयोग दे रहे हैं।
ग्वादर पर इनका मुकाबला करने के लिए भारत ने गोवा के दक्षिण में भारत ने कारवार में एक नौसैनिक अड्डा लॉन्च किया है। यह 8 बिलियन डॉलर का नौसैनिक अड्डा अरब सागर में चीन को जवाब देने के लिए जरूरी बताया जा रहा है। 2022 से ही भारत ने चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए ईरान को मदद देना शुरू कर दिया है। भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने चाबहार को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किए हैं।
क्या है ग्वादर बंदरगाह का इतिहास?
ग्वादर ओमान की खाड़ी पर स्थित है और फारस की खाड़ी का मुख्य प्रवेश द्वार है। 1958 तक यह ओमान के पास था। इसके बाद इसे पाकिस्तान के शासकों को सौंप दिया गया। 1973 में जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने पाकिस्तान का दौरा किया, तो जुल्फिकार अली भुट्टो ने ग्वादर में एक नए बंदरगाह के निर्माण के लिए अमेरिकी मदद मांगी। उन्होंने ग्वादर को अमेरिकी नौसेना के लिए एक सुविधा के रूप में बनाने की भी पेशकश की। लेकिन वार्ता विफल रही। इसके बाद चीन से मदद मांगी गई। फिर साल 2002 में चीन ने 20 करोड़ डॉलर का निवेश किया। पहली बार 450 मजदूरों को यहां भेजा गया और काम साल 2006 में पूरा किया जा सका।
भारत का जवाब ही है चाबहार
ग्वादर बंदरगाह कई मायनों में भारत के लिए एक चुनौती रहा है। भारत के कई सुरक्षा विशेषज्ञ यह मानने लगे थे कि यहीं से चीन की जासूसी गतिविधियां बढ़ेंगी। चीन इस क्षेत्र में भारत और अमेरिका की नौसेना की जासूसी करने में सफल होगा। ग्वादर भारत के लिए सीधा खतरा था और इसका केवल एक जवाब था चाबहार। भारत ने चाबहार में 213 किलोमीटर लंबी जरांज-दिलाराम सड़क का काम पूरा कर लिया है।
ये सड़क अफगानिस्तान के निमरोज प्रांत से निकलती है। इस सड़क ने ईरान को चाबहार-मिलाक रेल मार्ग को अपग्रेड करने में मदद की है। लेकिन अब विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि ईरान चीन से दूर होने का जोखिम नहीं उठाएगा। लेकिन चाबहार पर भारत की गतिविधियां यह दिखाने के लिए काफी हैं कि वह चीन के सामने इस हिस्से में न तो कमजोर होगा और न ही झुकेगा।