Highlights
- ऑस्ट्रेलिया में स्वास्तिक पर लगा बैन
- इस्तेमाल करने पर जेल, लगेगा जुर्माना
- हिटलर के हकेनक्रेज से जोड़ा गया
Australia Swastic Ban: हमारे देश भारत में हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के लिए स्वास्तिक एक बेहद पवित्र चिन्ह है। जिसका मतलब भलाई या अच्छा भाग्य होता है। हजारों साल से भारत सहित दुनिया की तमाम सभ्यताएं इसका इस्तेमाल करती आ रही हैं। यही प्रतीक 20वीं सदी में पश्चिमी फैशन का भी हिस्सा था। लेकिन जब से इसे अधूरे ज्ञान वाले लोगों ने हिटलर के नफरत वाले चिन्ह हकेनक्रेज से जोड़ना शुरू किया, तभी से विवाद पैदा हो गया। दरअसल हिटलर ने 1920 में हकेनक्रेज को अपनी सोशलिस्ट पार्टी का चिन्ह बनाया था। उसकी क्रूर नाजी सेना की वर्दी पर ये बना होता था। लेकिन बहुत से पश्चिम के देश हकेनक्रेज की तुलना स्वास्तिक से करते हैं और उसे हिटलर की नाजीवाद और यहूदी विरोधी विचारधारा से जोड़कर देखते हैं।
अब स्वास्तिक एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है। अंग्रेजी में 'हुक्ड क्रॉस' के नाम से पुकारे जाने वाले इस चिन्ह को ऑस्ट्रेलिया के एक और राज्य न्यू साउथ वेल्स ने बैन कर दिया है। यहां नाजी झंडे को फहराने और स्वास्तिक चिन्ह को प्रदर्शित करने पर रोक लगाई गई है। अगर कोई इसका इस्तेमाल करता पाया गया, तो उसे एक साल की जेल और एक लाख डॉलर का जुर्माना भरना पड़ेगा। राज्य के ऊपरी सदन में गुरुवार को इससे जुड़ा बिल पास हो गया है, जिसे बीते अप्रैल को ड्राफ्ट किया गया था। इससे पहले इसी साल जून महीने में ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य ने इसे बैन किया था।
क्या हिंदुओं को होगी जेल?
इसके बाद से अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या अब ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले हिंदुओं को अपना पवित्र स्वास्तिक इस्तेमाल करने पर जेल में डाला जा सकता है? क्या वो अब यहां स्वास्तिक की पूजा नहीं कर पाएंगे? तो चलिए इसके बारे में भी जान लेते हैं।
खबर ये है कि न्यू साउथ वेल्स ने स्वास्तिक पर बैन लगाया है, ये बात बिलकुल सही है। इसका कहीं प्रदर्शन नहीं किया जाएगा। लेकिन इसका इस्तेमाल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। साथ ही धार्मिक उद्देश्यों के लिए हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के लोग भी इसे इस्तेमाल कर सकते हैं। तो ऐसे में यहां रहने वाले इन धर्मों के लोगों को कोई जेल या सजा नहीं होगी। इस राज्य में निचले और ऊपरी सदन में बिल पास होने के बाद कानून बना दिया गया है। न्यू साउथ वेल्स के इस कदम को नाजी प्रतीक के खिलाफ बडे़ कदम के तौर पर देखा जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया और न्यू साउथ वेल्स के बाद अब क्लींसलैंड और तस्मानिया भी यही कदम उठाने की तैयारी में हैं। अगर ऐसा होता है, तो ऑस्ट्रेलिया के आठ में से चार राज्यों में ये चिन्ह बैन होगा।
स्वास्तिक को क्यों बैन किया गया?
न्यू साउथ वेल्स के ज्यूइश बोर्ड ऑफ डेप्यूटीज के CEO डेरेन बार्क ने इस बारे में बताया कि स्वास्तिक नाजियों का प्रतीक है। ये हिंसा को दिखाता है। इसका इस्तेमाल कट्टरपंथी संगठन किया करते थे। उन्होंने आगे कहा कि हमारे राज्य में काफी समय से इसपर रोक को लेकर चर्चा चल रही है। अब अपराधियों को सही सजा मिलेगी।
नाजियों का स्वास्तिक से क्या रिश्ता है?
पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की बुरी तरह हुई हार के बाद 1920 में हिटलर ने इसे राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में स्वीकार किया। साथ ही हिटलर की नाजी जर्मनी के लाल रंग के झंडे में सफेद वृत्त में बनाकर इसे इस्तेमाल किया जाता था। वृत्त में काले रंग के स्वास्तिक का निशान था। इसे 45 डिग्री पर बनाया गया। साथ ही हकेनक्रेज नाम दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि इसे हिंदू धर्म के स्वास्तिक को चोरी करके बनाया गया है। लेकिन दोनों में ही जमीन आसमान का अंतर है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ये चिन्ह यहूदी विरोधी विचारधारा, नस्लवाद, फासीवाद और नरसंहार से जुड़ चुका था।
दूसरा विश्व युद्ध खत्म होते समय जर्मनी के झंडे वाला स्वास्तिक नफरत और नस्लीय पूर्वाग्रह के प्रतीक के तौर पर कलंकित हो गया था। युद्ध के बाद यूरोप और दुनिया के दबाव में इस नाजी झंडे और स्वास्तिक जैसे प्रतीक को जर्मनी में बैन किया गया। साथ ही फ्रांस, ऑस्ट्रिया और लिथुआनिया में भी इसके इस्तेमाल पर रोक लगी है।
हिंदू और नाजी वाले चिन्ह में अंतर क्या है?
भारत की प्राचीन सभ्यता से जुड़ा स्वस्तिक बनावट और अर्थ दोनों ही मामलों में हिटलर के हकेनक्रेज से अलग है। हिंदू धर्म में स्वास्तिक को बनाते समय उसके चारों कोनों पर बिंदू लगाए जाते हैं, जो हमारे चारों वेदों का प्रतीक हैं। इसे हिंदू धर्म में शुभ और तरक्की का प्रतीक कहा जाता है। इसकी सभी चार भुजाएं 90 डिग्री पर मुड़ी होती हैं। जैन धर्म में इसे सातवें तीर्थंकर का प्रतीक बताते हैं और बौद्ध धर्म में बुद्ध के पैरों या पदचिन्हों के निशान का प्रतीक माना जाता है। इसे किसी भी शुभ काम को करने से पहले बनाया जाता है। धार्मिक स्वास्तिक में पीले और लाल रंग का इस्तेमाल होता है। वहीं नाजी झंडे में सफेद रंग की गोलाकार पट्टी में काले रंग का स्वास्तिक जैसा चिन्ह बना होता है। नाजी संघर्ष के प्रतीक के तौर पर इसका इस्तेमाल किया करते थे।
कनाडाई सासंद ने समझाया था अंतर
कनाडा के भारतवंशी सांसद ने कनाडा के लोगों और सरकार से हिंदुओं के लिए एक प्राचीन और शुभ प्रतीक ‘स्वास्तिक’ और 20वीं सदी के नाजी प्रतीक ‘हकेनक्रेज’ के बीच फर्क को पहचानने का आग्रह करते हुए कहा था कि दोनों में कोई समानता नहीं है। इस कदम का अमेरिका के हिंदुओं ने स्वागत किया है, जिन्होंने कनाडा में कुछ निहित स्वार्थों के चलते इसे हिंदुओं के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देने के अवसर के रूप में इस्तेमाल करने के हालिया प्रयासों की निंदा की थी। कनाडा के सांसद चंद्र आर्य ने कहा, ‘विभिन्न धार्मिक आस्थाओं वाले दस लाख से अधिक कनाडाई और विशेष रूप से कनाडा के हिंदू के रूप में मैं इस सदन के सदस्यों और देश के सभी लोगों से हिंदुओं के पवित्र धार्मिक प्रतीक स्वास्तिक और नफरत के नाजी प्रतीक के बीच अंतर करने का आह्वान करता हूं, जिसे जर्मन में ‘हकेनक्रेज’ या अंग्रेजी में ‘हुक्ड क्रॉस’ कहा जाता है।’
कनाडा की संसद में आर्य ने कहा था कि भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत में स्वास्तिक का अर्थ है, ‘वह जो सौभाग्य और कल्याण लाता है।’ उन्होंने कहा, ‘हिंदू धर्म के इस प्राचीन और अत्यंत शुभ प्रतीक का इस्तेमाल आज भी हमारे हिंदू मंदिरों में, हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठानों में, हमारे घरों के प्रवेश द्वारों पर और हमारे दैनिक जीवन में किया जाता है। कृपया नफरत के नाजी प्रतीक को स्वास्तिक कहना बंद करें।’ आर्य ने कहा, ‘हम नफरत के नाजी प्रतीक ‘हकेनक्रेज’ या ‘हुक्ड क्रॉस’ पर प्रतिबंध का समर्थन करते हैं। लेकिन इसे स्वास्तिक कहना कनाडा के हिंदुओं के धार्मिक अधिकार और दैनिक जीवन में हमारे पवित्र प्रतीक स्वस्तिक का उपयोग करने की स्वतंत्रता से वंचित करना है।’
उत्तरी अमेरिका के हिंदुओं के गठबंधन (कोहना) ने एक बयान में कनाडा में स्वास्तिक को घृणा के प्रतीक के रूप में घोषित करने के प्रयासों के बारे में अपनी चिंताओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने के लिए आर्य की टिप्पणी का स्वागत किया था। दरअसल कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और भारतीय मूल के नेता जगमीत सिंह ने स्वास्तिक के बारे में आपत्तिजनक बयान दिए थे।