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दुनिया के इस हिस्से में छिपा है 35 ट्रिलियन डॉलर का खजाना, कब्जाने की होड़ में लगे चीन, अमेरिका और रूस

Arctic Region: इन आठ देशों में कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, स्वीडन, रूस और अमेरिका शामिल हैं। यूक्रेन युद्ध के बीच नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने शुक्रवार को कहा कि रूस ने आर्कटिक क्षेत्र में सोवियत काल के समय के सैकड़ों सैन्य ठिकानों को फिर से शुरू कर दिया है।

Written By: Shilpa
Published : Aug 28, 2022 16:41 IST, Updated : Aug 28, 2022 18:14 IST
Treasure Hidden in Arctic
Image Source : AP Treasure Hidden in Arctic

Highlights

  • आर्कटिक क्षेत्र में छिपा है तेल और गैस
  • अमेरिका, चीन और रूस यहां भी भिड़े
  • अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहे हैं कई देश

Arctic Region: आर्टकिट के बढ़ते रणनीतिक और व्यवसायिक महत्व को देखते हुए अमेरिका ने यहां अपनी पकड़ को मजबूत करना शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ रूस ने अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए सैन्य बेस और घातक हथियारों की तैनाती की है। अमेरिकी विदेश विभाग ने एक बयान जारी कर कहा कि आर्कटिक क्षेत्र, जो एक शांतिपूर्ण, स्थिर, समृद्ध और सहकारी क्षेत्र रहा है, वह अमेरिका के लिए बहुत महत्वपूर्ण रणनीतिक महत्व रखता है। उन्होंने कहा कि आर्कटिक क्षेत्र के आठ में से एक देश होने के नाते अमेरिका यहां अपने राष्ट्रीय, आर्थिक हितों की रक्षा करने, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने, सतत विकास, निवेश को बढ़ावा देने और आर्कटिक क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध और समर्पित है।  

इन आठ देशों में कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, स्वीडन, रूस और अमेरिका शामिल हैं। यूक्रेन युद्ध के बीच नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने शुक्रवार को कहा कि रूस ने आर्कटिक क्षेत्र में सोवियत काल के समय के सैकड़ों सैन्य ठिकानों को फिर से शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि आर्कटिक में रूस की सैन्य क्षमता नाटो के लिए एक रणनीतिक चुनौती है। वहीं दूसरी तरफ चीन खुद को एक ऐसा देश बता रहा है, जो आर्कटिक के करीब है। उसका इरादा आर्कटिक में 'पोलर सिल्क रोड' बनाने का है। 

 
आर्कटिक में छिपा है 35 ट्रिलियन डॉलर का खजाना

विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की नजर आर्कटिक के खजाने और नए समुद्री मार्ग पर टिकी हुई हैं, ये वो मार्ग है, जो यहां की बर्फ पिघलने के बाद दुनिया के सामने आएगा। रूस, चीन और अमेरिका के बीच आर्कटिक में अपना प्रभाव बढ़ाने की लड़ाई के कारण यहां एक तरह का शीत युद्ध शुरू हो गया है। आर्कटिक धरती के उन कुछ गिने चुने क्षेत्रों में से एक है, जिसका दोहन नहीं हुआ है। यहां का तापमान माइनस में रहता है, जो इंसानों के लिए बेहद खतरनाक है। यह मानव विकास और उत्खनन के लिए प्राकृतिक दीवार भी है। हालांकि जलवायु परिवर्तन के बाद स्थिति बदल रही है। आर्कटिक क्षेत्र में करीब 35 ट्रिलियन डॉलर का तेल और प्राकृतिक गैस छिपे हो सकते हैं। 

यही वजह है कि रूस आर्कटिक पर अपनी आर्थिक और सैन्य पकड़ मजबूत कर रहा है। इसके साथ ही यहां बड़ी संख्या में मछलिया हैं, जो बड़ी मानव आबादी का पेट भरने के काम आ सकती हैं। आर्कटिक का संरक्षित तेल और गैस का भंडार दुनिया की ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकता है। ऐसा माना जाता है कि दुनिया का 16 फीसदी तेल और 30 फीसदी गैस आर्कटिक में है, जिसे अभी तक खोजा नहीं जा सका है। ये यहां समुद्र के नीचे मौजूद है।

2035 तक पिघल जाएगी आर्कटिक की बर्फ

आर्कटिक इलाके में तेल और गैस के अलावा निकल और प्लेटिनम सहित अन्य संसाधन भी हैं। इस खजाने की वजह से दुनियाभर के देश यहां आ रहे हैं। वह यहां अपने सैन्य खर्च को बढ़ा रहे हैं और अपने दावों के समर्थन के लिए अपनी विशेष प्रशिक्षित सेना को तैनात कर रहे हैं। आर्कटिक की ध्रुवीय बर्फ बड़ी तेजी से पिघल रही है। और कुछ अनुमानों में पता चला है कि आर्कटिक क्षेत्र 2035 तक पूरी तरह बर्फ से मुक्त हो जाएगा। अब गर्मियों के महीनों में समुद्री यात्रियों के लिए आर्कटिक क्षेत्र से होकर यूरोप और उत्तरी एशिया में अपना रास्ता बना पाना संभव हो गया है।

ये नए रास्ते पहले से मौजूद स्वेज या पनामा नहर समुद्री व्यापार मार्गों की तुलना में बहुत छोटे हैं। इससे हजारों जहाजों को सफर करने में कम समय लगेगा। अगर समुद्री मार्ग की बात करें तो नीदरलैंड के रॉटरडैम से चीन के शंघाई शहर तक का समुद्री मार्ग 26 हजार किलोमीटर लंबा था। स्वेज नहर के निर्माण के बाद यात्रा 23 फीसदी कम हो गई है। अगर यात्रा आर्कटिक से शुरू होती है तो यह 24 फीसदी छोटी हो जाएगी। इससे ईंधन की लागत और समय दोनों की बचत होगी।

सेना का गढ़ बनाने पर काम कर रहा रूस 

गर्मी के महीनों में रूसी जहाज आइस ब्रेकर्स की मदद से यहां से गुजरे थे। ये यात्रा बर्फ के कम होने के बाद और भी आसान हो जाएगी। इस क्षेत्र पर कई देश अपना दावा करते हैं, जिसके कारण ये विवादित बना हुआ है। आर्कटिक में रूस की बढ़ती सैन्य शक्ति से अमेरिका, डेनमार्क, कनाडा और नॉर्वे चिंतित हैं। यूक्रेन युद्ध के बीच विशेष रूप से आर्कटिक क्षेत्र चर्चा का विषय बन रहा है। 11 टाइम जोन के साथ रूस दुनिया का सबसे बड़ा देश है। रूस को डर है कि आर्कटिक क्षेत्र के साथ उसकी 24,000 किलोमीटर लंबी सीमा खतरे में है। 

यही कारण है कि रूसी सेना आर्कटिक क्षेत्र में अपने सैन्य विस्तार पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है। रूस ने आर्कटिक में अपने 50 सैन्य ठिकानों को फिर से खोल दिया है। इतना ही नहीं 10 रडार स्टेशनों को अपग्रेड किया गया है। रूस ने अपनी वायु सेना को भी मजबूत किया है और आर्कटिक के पास अत्याधुनिक मिग-31 लड़ाकू जेट तैनात किए हैं, जो लंबी दूरी तक तबाही मचाने में सक्षम हैं। इसके अलावा जहाज रोधी और विमान भेदी मिसाइलों को तैनात किया गया है। रूसी युद्धपोत हाइपरसोनिक मिसाइलों से लैस हैं।

अमेरिका और नाटो ने जीत की तैयारी तेज की

रूस के बढ़ते प्रभाव के बीच अमेरिका ने आर्कटिक क्षेत्र के लिए सैन्य तैयारी करना शुरू कर दिया है। अमेरिका अपने अलास्का राज्य से कनाडा, ग्रीनलैंड और नॉर्वे तक अर्ली वार्निंग रडार स्टेशनों की एक श्रृंखला का निर्माण कर रहा है। इतना ही नहीं अमेरिका अपनी पांचवीं पीढ़ी के अत्याधुनिक फाइटर जेट्स अलास्का में तैनात कर रहा है। अमेरिका और नाटो की किलर पनडुब्बियां अक्सर ध्रुवीय बर्फ के नीचे से गुजरती हैं। अमेरिकी नौसेना के 6 युद्धपोत अब आर्कटिक क्षेत्र में गश्त कर रहे हैं, जिसे रूस अपना प्रभाव क्षेत्र मानता है। 

अमेरिका अपने गश्ती दल के जरिए यह बताने की कोशिश कर रहा है कि आर्कटिक एक अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र है। अमेरिका के इन कदमों से नाराज रूस ने साल 2019 में बेरेंट्स सी में लाइव फायर ड्रिल किया था। रूस से सटे नाटो का नया सदस्य बनने जा रहे नॉर्वे ने अमेरिकी ठिकानों के निर्माण को मंजूरी दे दी है। अमेरिका भी यहां भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद रखता है। नाटो ने यहां साल 2018 में अपने 50 हजार सैनिकों के साथ अभ्यास किया था। कनाडा भी इस क्षेत्र में अपनी सैन्य ताकत काफी बढ़ा रहा है।

प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहा चीन

दूसरी ओर दुनिया भर में कर्ज का जाल फैलाकर प्राकृतिक संसाधनों को लूटने में लगा चीन अब आर्कटिक सागर की सतह के नीचे खजाने पर कब्जा करने की तैयारी में है। चीन आर्कटिक को अंतरराष्ट्रीय महत्व का क्षेत्र मानता है, जो आर्कटिक में उसके पड़ोसियों के लिए सुरक्षित नहीं है। चीन ने अपनी पकड़ तेज करने के लिए बर्फीले पानी में अनुसंधान करने में सक्षम जहाजों का निर्माण किया है। चीन ने अपने 10 वैज्ञानिक अनुसंधान मिशन आर्कटिक क्षेत्र में भेजे हैं। माना जा रहा है कि चीन अब परमाणु ऊर्जा से चलने वाला आइसब्रेकर बना रहा है। 

इतना ही नहीं चीन अब आर्कटिक को अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना से जोड़ रहा है। चीन स्वीडन जैसे देशों को बंदरगाह खरीदने की पेशकश कर रहा है। वह फिनलैंड से चीन तक एक रेलवे लाइन बनाना चाहता है। चीन ने साल 2018 में ग्रीनलैंड और फिनलैंड में एयरपोर्ट बनाने की पेशकश की थी, जिसे फिनलैंड ने खारिज कर दिया था। इस तरह आर्कटिक अब 21वीं सदी में महाशक्तियों के बीच वर्चस्व का नया अखाड़ा बन गया है। हालांकि यहां फैली भारी बर्फ के कारण किसी भी देश के लिए तेल और गैस का खजाना निकालना आसान नहीं होगा। 

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