WHO threaten Vaccine Nationalism : दुनिया भर के वैज्ञानिक कोरोना की वैक्सीन विकसित करने के अंतिम पड़ाव पर हैं। माना जा रहा है कि साल के अंत तक यह वैक्सीन बाजार में आ जाएगी। लेकिन इस बीच दुनिया एक नए संकट में उलझती दिख रही है। यह संकट है वैक्सीन राष्ट्रवाद यानि वैक्सीन नेशनलिज्म (Vaccine Nationalism) का। इसका अर्थ है कि जो देश इस वैक्सीन को बनाने में सफलता हासिल करेगा, वही इसका पहला उपयोग भी करेगा।
लेकिन WHO ने चेतावनी दी हे कि इससे कोरोना महामारी बढ़ेगी न कि घटेगी। WHO के प्रबंध निदेशक ने कहा कि दुनिया में कहीं भी अगर कोरोना वैक्सीन बनती है तो शुरुआत में दुनियाभर के अलग अलग देशों में जिन लोगों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है उन्हें वैक्सीन देने की जरूरत है। न कि एक ही देश के ज्यादातर लोगों को। WHO ने कहा कि वैक्सीन पर किसी एक देश का हक नहीं बल्कि पूरी दुनिया का हक है। WHO के प्रबंध निदेशक ने जोर देते हुए कहा कि वैक्सीन नेशनलिज्म यानि जो देश वैक्सीन बनाए उसे पहले अपने लिए हि इस्तेमाल करे, से कोरोना महामारी का खतरा बढ़ेगा न कि घटेगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने आगाह किया है कि अमीर मुल्क संभावित वैक्सीन की जमाखोरी कर सकते हैं और गरीब देशों तक शायद इसकी पर्याप्त सप्लाई भी न होने पाए। WHO चीफ टेड्रॉस अडानोम गेब्रिएसिस ने एक दिन पहले ही 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' (Vaccine Nationalism) को रोके जाने की जरूरत पर जोर दिया।
बता दें कि वैक्सीन अभी बाजार में नहीं आई है, लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, फ्रांस, जर्मनी जैसे अमीर देश वैक्सीन मैन्यूफैक्चरर्स के साथ प्री-परचेज अग्रीमेंट कर चुके हैं। जापान, अमेरिका, ब्रिटेन और ईयू ने सबसे पहले अपने यहां वैक्सीन को सुनिश्चित करने के लिए अरबों रुपये खर्च कर डाले हैं। इन देशों ने कोरोना वैक्सीन बनाने के करीब पहुंचीं फाइजर इंक, जॉनसन ऐंड जॉनसन और एस्ट्रा जेनेका जैसी कंपनियों के साथ अरबों रुपये का करार कर लिया है।