नई दिल्ली: सऊदी अरब की एक अदालत ने फलस्तीनी कवि अशरफ फयाज को दी गई फांसी की सजा को बदल दिया है,अपने नए फरमान ने अदालत ने कवि को 8 साल की कैद, 800 कोड़े मारने और कविता न लिखने का फरमान सुनाया है। गौरतलब है कि कवि अशरफ फयाज पर इस्लाम न कबूल करने और कविता के माध्यम से ईश निंदा और नास्तिकता के प्रचार का आरोप लगा था। इसके साथ ही उनके मोबाइल में कुछ महिलाओं के फोटो पाए जाने पर अदालत ने उनको दोषी करार देते हुए 16 बार 800 कोड़े मारने का फरमान सुनाया है। हालांकि कवि अपने ऊपर लगे आरोपों को मानने से इंकार कर रहे हैं।
कौन है अशरफ फयाज
अशरफ फयाज एक फलस्तीनी शरणार्थी परिवार से हैं। वे कवि है। उनकी एक कविता को पढ़ने के बाद एक नागरिक ने उन पर ईश निंदा और नास्तिकता का प्रचार करने का आरोप लगया था। उनके फोन में कुछ महिलाओं के फोटो पाए जाने के बाद उन को 800 कोड़े मारे जाने का फरमान सुनाया गया है,हालांकि उन्होंने इस मामले में अदालत से माफी मांग ली थी।
क्या कहना है अशरफ के वकील का
अशरफ के वकील का कहना है कि अदालत के आदेशानुसार अशरफ को सरकारी मीडिया में एक माफीनामा देना होगा। वकील ने यह भी कहा है कि उन्हें मिलने वाली 800 कोड़ों की सजा उन्हें 16 बार दी जाएगी।
लेकिन अशरफ के वकील के कहना है कि वह इस नए फैसले के खिलाफ अपील करेंगे और अशरफ की रिहाई की मांग भी करेंगे।
नास्तिकता का प्रचार करने और ईश निंदा का आरोप
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार एक सऊदी नागरिक ने अशरफ पर नास्तिकता का प्रचार करने और ईश-निंदा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था जिसके कारण उन्हें अगस्त 2013 में गिरफ़्तार किया गया था। इस मामले में अशरफ को दूसरे ही दिन रिहा कर दिया था लेकिन 2014 में उन्हें अपना धर्म त्याग देने के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया था। 2008 में अशरफ की छपी कविता में धर्म को चुनौती दी गई थी साथ ही नास्तिक विचारधारा का भी प्रचार किया गया था। उनपर कानून के उल्लंघन का भी आरोप है।
800 कोड़े मारने का फरमान आखिर क्यों दिया गया ?
उन्होंने महिलाओं की फोटो खींचकर उसे फोन में रखा हुआ था। जिसके बाद उन्हें इस केस में 800 कोड़े मारने की सजा सुनाई गई थी। जिसके बाद उन्होंने अदालत से माफी मांगी। अदालत ने उनके माफीनामे को इस बात के लिए मंजूरी दी कि वह अपना धर्म बदलें।
लेकिन फिर कोर्ट ने उनके केस को निचली अदालत में भेजा जिसने नवंबर 2015 में उन्हें मौत की सज़ा सुनाई। जनवरी 2016 में दुनिया भर के सैकड़ों लेखकों ने उनके समर्थन में बयान दिया था।