यूनिसेफ ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि नवजात बच्चों के जन्म के लिहाज से पाकिस्तान सबसे ज्यादा जोखिम भरा देश है, वहीं भारत को उन दस देशों में रखा गया है जहां नवजात बच्चों को जीवित रखने के लिए सर्वाधिक ध्यान देने की जरूरत है। यूनिसेफ बच्चों के कल्याण के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था है। 'एवरी चाइल्ड अलाइव' (द अर्जेंट नीड टू ऐंड न्यूबॉर्न डैथ्स) शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में जापान, आइसलैंड और सिंगापुर को जन्म के लिए सबसे सुरक्षित देश बताया गया है जहां जन्म लेने के पहले 28 दिन में प्रति हजार बच्चों पर मौत का केवल एक मामला सामने आता है। (इजरायल और टेक्सास के बीच 15 अरब डॉलर का समझौता, मिस्र को किया जाएगा प्राकृतिक गैस का निर्यात )
यूनिसेफ के वैश्विक अभियान 'एवरी चाइल्ड अलाइव' यानी 'हर बच्चा रहे जीवित' के माध्यम से सरकारों, उद्यमों, स्वास्थ्य सुविधा प्रदाताओं, समुदायों और लोगों से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के वादे को पूरा करने और हर बच्चे को जीवित रखने की दिशा में काम करने की अपील की गयी है। इसमें बांग्लादेश, इथियोपिया, गिनी—बिसाउ, भारत, इंडोनेशिया, मालावी, माली, नाइजीरिया, पाकिस्तान और तंजानिया को सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित करने वाले देशों में रखा गया है। इन दस देशों में दुनियाभर में नवजात बच्चों की मौत के आधे से ज्यादा मामले आते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों में प्रसव के समय या उसके तुरंत बाद जच्चा—बच्चा की मौत का जोखिम बहुत कम होता है, वहीं कुछ देशों में इस मामले में खतरा अधिक माना जाता है। नवजात संबंधी मृत्युदर को देखते हुए बच्चों के जन्म के लिहाज से पाकिस्तान सबसे जोखिमभरा देश है। साल 2016 में पाकिस्तान में जन्मे प्रति हजार बच्चों में से 46 की एक महीने का होने से पहले मौत हो गयी। यहां 2014 में प्रति दस हजार आबादी के लिए केवल 14 प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवर थे। सर्वाधिक मृत्युदर वाले 10 देशों में आठ उप—सहारा अफ्रीकी देश हैं और दो दक्षिण एशिया के हैं। इस सूची में दूसरे स्थान पर मध्य अफ्रीकी गणराज्य, तीसरे पर अफगानिस्तान और चौथे पर सोमालिया है। रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में संघर्ष, प्राकृतिक आपदाएं, अस्थिरता और कुशासन जैसी समस्याओं का प्रभाव स्वास्थ्य प्रणाली पर अकसर पडता है और नीति निर्माता प्रभावी नीतियां नहीं बना सके हैं। हालांकि 2016 में संख्या के लिहाज से देखें तो नवजात की मौतों के मामले में भारत पहले नंबर पर रहा। भारत में इस साल 6,40,000 नवजातों के मारे जाने के मामले दर्ज किये गये। यहां नवजात मृत्यु दर 25.4 प्रति हजार रही। इस तरह से दुनियाभर में जन्म लेने के कुछ समय या दिनों के भीतर मौत के 24 प्रतिशत मामले भारत में दर्ज किये गये। संख्या के मामले में पाकिस्तान दूसरे नंबर पर है। यहां इस साल 2,48,000 शिशुओं की जन्म के कुछ समय बाद मौत हो गयी।
रिपोर्ट के अनुसार कम मृत्युदर की बात करें तो जन्म लेने के लिहाज से जापान, आइसलैंड और सिंगापुर सबसे सुरक्षित देश हैं जहां प्रति हजार जन्म पर मृत्युदर क्रमश: 0.9, 1 और 1.1 रही। अर्थात इन देशों में जन्म लेने के पहले 28 दिन में प्रति हजार बच्चों पर मौत का केवल एक मामला सामने आता है। इस सूची में उक्त तीन देशों के बाद फिनलैंड, एस्टोनिया, स्लोवेनिया, साइप्रस, बेलारूस, कोरिया गणराज्य, नार्वे और लक्जमबर्ग के नाम हैं। यहां प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या भी अपेक्षाकृत अधिक है। यूनिसेफ की रिेपोर्ट में कहा गया है कि जापान, आइसलैंड और सिंगापुर में जन्मे किसी बच्चे की तुलना में पाकिस्तान में जन्मे बच्चे की पहले महीने में मौत हो जाने की आशंका करीब 50 गुना अधिक होती है। इन देशों में संसाधन संपन्न स्वास्थ्य प्रणाली, बडी संख्या में अत्यंत कुशल स्वास्थ्य कर्मी, विकसित बुनियादी ढांचा, स्वच्छ पानी की उपलब्धता है तो स्वास्थ्य केंद्रों में साफ—सफाई के उच्च मानदंड अपनाये जाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार उच्च आय वाले देशों में औसत नवजात मृत्युदर तीन है, वहीं कम आय वाली श्रेणी में आने वाले देशों में यह दर 27 प्रति हजार है। अगर हर देश अपने यहां नवजात मृत्युदर को उच्च आय वाले देशों के स्तर पर ले आये तो 2030 तक 1.6 करोड बच्चों को मरने से बचाया जा सकता है। इसके लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच को जरूरी बताया गया है।
नवजात मृत्यु दर को कम करने के लिए रिपोर्ट में 4 'पी' पर ध्यान देने की बात कही गयी है। इनमें प्लेस (जगह)—साफ सुथरे स्वास्थ्य केंद्र, पीपुल (लोग)—भलीभांति प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी, प्रोडक्टस (उत्पाद)—जीवनरक्षक दवा और उपकरण और पावर (अधिकार)—सम्मान, गरिमा तथा जवाबदेही का उल्लेख है। निम्न मध्य आय वाले देशों में नवजात मृत्युदर के लिहाज से पाकिस्तान पहले नंबर पर है। भारत इसमें 12वें नंबर पर आता है। लेकिन केन्या, बांग्लादेश, भूटान, मोरक्को और कांगो जैसे देश इस मामले में भारत और पाकिस्तान से अच्छी स्थिति में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में रोजाना करीब 7000 नवजात बच्चे काल के गाल में समा जाते हैं। इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक मामलों में प्रशिक्षित डाक्टरों, नर्सों आदि के माध्यम से किफायती, गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करके, प्रसव से पहले मां और प्रसव के बाद जच्चा—बच्चा को पोषण, साफ जल जैसे बुनियादी समाधानों से बच्चों की जान बचाई जा सकती है।
रिपोर्ट एक और महत्वपूर्ण तथ्य की ओर ध्यान दिलाती है कि दुनियाभर में करीब 26 लाख बच्चों की जन्म लेने के एक महीने के अंदर ही मौत हो जाती है। इसके अलावा करीब 26 लाख बच्चे प्रतिवर्ष मृत ही जन्म लेते हैं। ऐसे मामलों में सरकारी स्वास्थ्य तंत्र या नीति निर्माताओं की ओर से गणना का कोई निश्चित प्रावधान नहीं होता। सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में जहां नवजात बच्चों और उनके जीवित रहने के लिहाज से वैश्विक लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं लेकिन बिना प्राण के जन्मे बच्चों को लेकर कोई विशेष लक्ष्य निर्धारित नहीं है।