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ग्लोबल वॉर्मिंग का कहर, कनाडा की अंतिम साबुत बची 4000 साल पुरानी हिमचट्टान भी टूटकर बिखरी

एलेसमेरे द्वीप के उत्तर-पश्चिम कोने पर मौजूद कनाडा की 4,000 वर्ष पुरानी मिलने हिमचट्टान जुलाई अंत तक देश की अंतिम ऐसी हिमचट्टान थी जिसमें कोई टूट नहीं हुई थी।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : August 08, 2020 11:52 IST
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Image Source : AP ग्लोबल वॉर्मिंग के कहर के चलते कनाडा में साबुत बची अंतिम हिमचट्टान भी टूटकर बिखर गई है।

टोरंटो: ग्लोबल वॉर्मिंग के कहर के चलते कनाडा में साबुत बची अंतिम हिमचट्टान भी टूटकर बिखर गई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस हिमचट्टान (आइस शेल्फ) का ज्यादातर हिस्सा गर्म मौसम और वैश्विक तापमान बढ़ने के चलते टूटकर विशाल हिमशैल द्वीपों में बिखर गया है। बता दें कि हिमचट्टानें बर्फ का एक तैरता हुआ तख़्ता होती हैं जो किसी ग्लेशियर या हिमचादर के ज़मीन से समुद्र की सतह पर बह जाने से बनती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, एलेसमेरे द्वीप के उत्तर-पश्चिम कोने पर मौजूद कनाडा की 4,000 वर्ष पुरानी मिलने हिमचट्टान जुलाई अंत तक देश की अंतिम ऐसी हिमचट्टान थी जिसमें कोई टूट नहीं हुई थी।

इसी बीच कनाडाई हिम सेवा की बर्फ विश्लेषक एड्रीन व्हाइट ने गौर किया कि उपग्रह से ली गई तस्वीरों में दिखा कि इसका 43 प्रतिशत हिस्सा टूट गया है। उन्होंने कहा कि यह 30 जुलाई या 31 जुलाई के आस-पास हुआ। व्हाइट ने कहा कि इसके टूटने से 2 विशाल हिमशैल (आइसबर्ग) के साथ ही छोटी-छोटी कई हिमशिलाएं बन गई हैं और इन सबका पहले से ही पानी में तैरना शुरू हो गया है। सबसे बड़ा हिमशैल करीब-करीब मैनहट्टन के आकार का यानि 55 वर्ग किलोमीटर है और यह 11.5 किलोमीटर लंबा है। इनकी मोटाई 230 से 260 फुट है।

उन्होंने कहा, ‘यह बर्फ का विशाल, बहुत विशाल टुकड़ा है। अगर इनमें से कोई भी ऑइल रिग (तेल निकालने वाला विशेष उपकरण) की तरफ बढ़ने लगे तो आप इसे हटाने के लिए कुछ नहीं कर सकते और आपको ऑइल रिग को ही हटाकर दूसरी जगह ले जाना होगा।’ 187 वर्ग किलोमीटर में फैली यह हिमचट्टान कोलंबिया जिले के आकार से ज्यादा बड़ी होती थी लेकिन अब यह महज 41 प्रतिशत यानी 106 वर्ग किलोमीटर ही शेष रह गई है।

ओटावा यूनिवर्सिटी के ग्लेशियर विज्ञान के प्राध्यापक ल्यूक कोपलैंड ने कहा कि क्षेत्र में मई से अगस्त की शुरुआत तक तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है जो 1980 से 2010 के औसत से ज्यादा गर्म है। यहां तापमान आर्कटिक क्षेत्र में बढ़ रहे तापमान से भी ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है जो पहले ही विश्व के अन्य हिस्सों के मुकाबले ज्यादा तापक्रम वृद्धि का सामना कर रहा है।

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