वर्ल्ड डेस्क: आज ईरान की 1979 में हुई 'इस्लामिक क्रांति' की 35वीं सालगिरह है। आज जो अरब क्रांति पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी हुई है, उसकी शुरुआत ईरान की इस्लामिक क्रांति से ही मानी जाती है। 11 फरवरी 1979 को ही ईरान से 'पहलवी राजवंश' (जिसे अमेरिकी समर्थन प्राप्त था) के शासन की समाप्ति हुई, और मुस्लिम क्रांति के जनक ' अयातुल्ला रुहोल्ला खुमैंनी' को ईरान का सर्वोच्च नेता चुन लिया गया।
ईरान में इस्लामिक क्रांति 1977 में आरम्भ हुई 1978 के अंत तक यह क्रांति अपनें चरम पर पहुंच गई, जिसके फलस्वरुप ईरान के शाह 'मोहम्मद रेजा शाह पहलवी' नें 16 जनवरी 1979 को शपूर बख्तियार को प्रधानमंत्री पद सौंप कर देश छोड़ दिया। लेकिन लोगो के समर्थन से अयातुल्ला खुमैंनी नें 11 फरवरी 1979 को सरकार को भंग कर दिया और 1 अप्रैल 1979 को राष्ट्रीय जनाधार के आधार पर ईरान को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया गया। दिसंबर 1979 को संविधान बना कर अयातुल्ला खुमैंनी को देश का सर्वेच्च नेता चुन लिया गया।
ईरान की क्रांति का सबसे बड़ा कारण शाह के शासन का क्रुर, भ्रष्ट, और पश्चिमी सभ्यता का समर्थक होना था। इस्लामिक मूल्यों के हनन नें जनता के मन शासन के प्रति रोष भऱ दिया जिसकी परिणीती इस्लामिक क्रांति के रुप में हुई। ईरान की इस्लामिक क्रांति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा और आज जो दुनिया का राजनैतिक और कूटनीतिक परिदृश्य है उस पर कहीं ना कहीं ईरान की इस्लामिक क्रांति का प्रभाव है। 1980 में ईरान-ईराक के बीच छिड़े युद्ध के कारणों में ईरान की क्रांति भी एक प्रमुख कारण रही। इसलिए ईरान की इस्लामिक क्रांति इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।