पोर्ट लुई: हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शनिवार को कहा कि इस विश्व संस्था से हिंदी में साप्ताहिक समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू हो गया है और हिंदी में एक ट्विटर अकाउंट भी खोला गया है। 11वे विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान उद्घाटन संबोधन में सुषमा स्वराज ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र से हिंदी में सप्ताहिक समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू किया गया है। यह प्रतिदिन भी प्रसारित हो सकता है लेकिन इसके लिए दो वर्ष तक इसके प्रसारण को देखा जाएगा, रेटिंग तैयार की जाएगी और प्रतिक्रिया अच्छी होगी तब इसका दैनिक प्रसारण भी हो सकता है।
उन्होंने कहा कि अब हम हिंदी भाषी लोगों की जिम्मेदारी है, इसे बढ़ावा दें। उल्लेखनीय है कि अभी यह हिंदी समाचार बुलेटिन प्रत्येक शुक्रवार को प्रसारित हो रहा है। विदेश मंत्री ने कहा कि हिंदी में संयुक्त राष्ट्र में ट्विटर अकाउंट भी खोला गया है। इसके साथ ही वेबसाइट पर प्रमुख दस्तावेज हिंदी में डाल दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि विश्व हिंदी सचिवालय का स्थायी भवन बनकर तैयार हो गया है और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इसका उद्घाटन कर चुके हैं। इसमें एक स्थायी अधिकारी को नियुक्त किया जा चुका है। सुषमा स्वराज ने कहा कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने में कुछ बाधाएं हैं।
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्रदान करने के लिए प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत से पारित करने के साथ समर्थन करने वाले सभी सदस्य देशों को इस पर होने वाले खर्च के लिए अंशदान करना होता है। उन्होंने कहा कि हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र में 129 देशों का समर्थन जुटाना कठिन काम नहीं है। हमने योग दिवस को मान्यता दिलाने में 177 देशों का समर्थन जुटाया है। विदेश मंत्री ने कहा कि लेकिन आधिकारिक भाषा के संदर्भ में सदस्य देशों को वोट से समर्थन देने के साथ आर्थिक खर्च भी साझा करना पड़ता है। अगर इसका पूरा खर्च भी हमें देना पड़े, तब भी हम इसके लिए तैयार हैं।
उन्होंने कहा कि मैंने संसद में भी कहा था कि 40 करोड़ रूपये तो क्या 400 करोड़ रूपये खर्च लगेगा, तो देने को तैयार हैं। लेकिन संयुक्त राष्ट्र का नियम है कि समर्थन करने वाले देशों को ही व्यय बांटना होता है। सुषमा स्वराज ने कहा कि यही स्थिति जर्मनी और जापान के समक्ष भी है। ये दोनों देश भी अपनी भाषा को इस विश्व निकाय की आधिकारिक भाषा बनाना चाहते हैं, लेकिन उनके समक्ष भी यही बाधा आ रही है।