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इन 29 देशों में आज भी औरतों के काटे जाते है जननांग

मिस्र: ज़ाम्बिया उन 20 अफ्रीका देशों में शामिल हो गया है  जिन्होंने एफजीएम (female genitals mutilation ) पर पाबंदी लगा दी है। इसके बावजूद दुनिया में अब भी ऐसे 29 देश हैं जहां बच्चियों और

India TV News Desk
Updated on: December 01, 2015 19:55 IST
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इन 29 देशों में आज भी औरतों के काटे जाते है जननांग

मिस्र: ज़ाम्बिया उन 20 अफ्रीका देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने एफजीएम (female genitals mutilation ) पर पाबंदी लगा दी है। इसके बावजूद दुनिया में अब भी ऐसे 29 देश हैं जहां बच्चियों और महिलाओं के जननांग (clitoris) काटने की कुप्रथा आज भी जारी है। ये परंपरा अफ्रीका और मिडल ईस्ट में ज़्यादा देखी जाती है। इन देशों में ये मान्यता है कि लड़कियों को शादी के लिए तैयार करने के लिए क्लिटोरिस (भग्नासा) को काटना ज़रूरी है। ज़ाहिर है इसकी वजह से महिलाओं में जननांग विकृतियां (जेनेटाइल मालफॉर्मेशन) सहित स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य समस्याएं पैदा हो रही हैं।

मिस्र

महिलाओं के जननांग काटने में मिस्र सबसे आगे है। आमतौर पर 9 से 12 साल की उम्र में ही लड़कियों के क्लिटोरिस काट दिये जाते हैं। मिस्र सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां 92 फीसदी शादीशुदा महिलाएं इस कुप्रथा से गुज़र चुकी हैं। 2000 में ये आंकड़ा 97 फीसदी था।

फ्रेंच गुयाना

दक्षिण अफ्रीकी देश फ्रेंच गुयाना में इस परंपरा पर रोक है लेकिन इसके बावजूद ये देश एफजीएम के मामले में यह दूसरे नंबर पर है। 2005 के एक सर्वे के मुताबिक, 15 से 49 साल की 96 फीसदी महिलाओं के जननांग काटे जा चुके हैं।

माली

दक्षिण अफ्रीका में स्थित माली में भी ये परंपरा आम है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, माली में 2006 में 15-49 साल की उम्र की 85.2 फीसदी महिलाएं इस प्रक्रिया से गुजरीं। वहीं, 2007 की एक रिपोर्ट में यह आंकड़ा करीब 92 फीसदी देखा गया। यहां के सोनरई, तामाचेक और बोजो लोगों में ही इसका आंकड़ा कम है। माली में 64 फीसदी महिलाएं एफएमजी को धार्मिक दृष्टि से जरूरी मानती हैं। यहां इसके खिलाफ अब तक कोई सख्त कानून भी नहीं है।

एरिट्रिया

दक्षिण अफ्रीकी देश एरिट्रिया में सरकार की ओर से 2003 में जारी रिपोर्ट में एफजीएम की दर 89 फीसदी बताई गई थी। यहां भी ग्रामीण इलाकों में धार्मिक दृष्टि से इसे ज़रूरी माना जाता है। ये मुस्लिम और ईसाई, दोनों ही धर्मों में प्रचलित है। मार्च 2007 में सरकार ने इसके खिलाफ कानून बनाया जिसके तहत जुर्माने से लेकर कैद तक की सज़ा का प्रावधान है।

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