कोलकाता: भारतीय जनता पार्टी समेत सूबे के विपक्षी दलों के लिए रैलियां आयोजित करने में ‘अनावश्यक’ तौर पर अड़ंगा लगाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार को कलकत्ता हाई कोर्ट की नाराजगी का सामना करना पड़ा। इस मुद्दे पर राज्य सरकार के वकील की आलोचना करते हुए जस्टिस सेनगुप्ता ने गुरुवार को कहा कि विपक्ष को रैलियां करने से रोकने की कोशिशें पूरी तरह से बचकानी हरकतें हैं। जस्टिस सेनगुप्ता ने कहा कि यह एक पुलिस स्टेट नहीं है और न ही राज्य में आपातकाल है। उन्होंने कहा कि आप इस तरह विपक्षी गतिविधियों को रोकने के लिए बच्चों की तरह नहीं लड़ सकते।
कोर्ट ने अधिकारी को दी रैली की इजाजत
जस्टिस सेनगुप्ता ने यह टिप्पणी पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। अधिकारी ने पूर्वी मिदनापुर जिले के खेजुरी में बीजेपी की एक सार्वजनिक सभा की अनुमति नहीं मिलने के फैसले को चुनौती दी थी। एक जज की बेंच ने विपक्ष के नेता को 26 अगस्त को उसी स्थान पर रैली आयोजित करने की भी अनुमति दी। सभा मूल रूप से 19 अगस्त को निर्धारित थी, लेकिन अंतिम क्षण में इसे रद्द कर दिया गया। जिला पुलिस प्रशासन ने 18 अगस्त से ठीक एक दिन पहले धारा 144 लागू कर दी, इसके बाद अधिकारी ने सभा की तारीख 26 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी थी।
‘बिना कारण बताए लगाई गई धारा 144’
26 अगस्त को होने वाली सभा को पुलिस ने इजाजत देने से इनकार कर दिया जिसके बाद विपक्ष के नेता ने कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। गुरुवार को जस्टिस सेनगुप्ता ने यह भी कहा कि जिला पुलिस ने धारा 144 लगाते समय उचित कानूनी प्रावधानों का पालन नहीं किया। उनके मुताबिक, बिना कारण बताए धारा 144 लगाई गई थी। जस्टिस सेनगुप्ता ने कहा, ‘यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के भी खिलाफ है। न्यायमूर्ति सेनगुप्ता ने कहा, बिना कोई कारण बताए धारा 144 इस तरह से नहीं लगाई जा सकती और वह भी सभा से ठीक एक दिन पहले।’