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पश्चिम बंगाल: जूट मिलों में पूरे कर्मचारियों के साथ होगा काम, PMO के पत्र के बाद राज्य सरकार का फैसला

अधिकारी ने कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस फैसले की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सलाहकार भास्कर खुलबे द्वारा राज्य के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा को लिखे पत्र के बाद की।

Written by: Bhasha
Updated on: May 30, 2020 19:57 IST
पश्चिम बंगाल: जूट मिलों में पूरे कर्मचारियों के साथ होगा काम, PMO के पत्र के बाद राज्य सरकार का फैसल- India TV Hindi
Image Source : PTI/FILE पश्चिम बंगाल: जूट मिलों में पूरे कर्मचारियों के साथ होगा काम, PMO के पत्र के बाद राज्य सरकार का फैसला

कोलकाता: पश्चिम बंगाल के एक अधिकारी ने शनिवार को बताया कि राज्य सरकार ने जूट मिलों को एक जून से 100 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ काम शुरू करने की अनुमति देने का फैसला, प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से आए एक पत्र के मद्देनजर लिया है। अधिकारी ने कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस फैसले की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सलाहकार भास्कर खुलबे द्वारा राज्य के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा को लिखे पत्र के बाद की।

खुलबे ने पत्र में लिखा, ''मैंने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि वह भारतीय जूट मिल संघ को पश्चिम बंगाल की 59 जूट मिलों में शत प्रतिशत कर्मचारियों के साथ काम करने की अनुमति दें, ताकि वे 15 जून तक प्रति दिन 10,000 गट्ठरों की उत्पादन क्षमता हासिल कर सकें। उन्होंने विनम्रता के साथ मेरे अनुरोध पर विचार करने पर सहमति जतायी थी।'' जूट उद्योग ने राज्य के फैसले का स्वागत किया है क्योंकि लॉकडाउन के मद्देनजर खाद्यान्नों की पैकेजिंग के लिए आवश्यक जूट बैग की काफी मांग है।

हालांकि, जूट उद्योग काम शुरू करने को लेक असमंजस में है। मिलों के सामने श्रमबल का संकट है। कोरोना वायरस महामारी फैलने के बीच करीब 50 प्रतिशत श्रमिक अपने गृह राज्य लौट गए हैं। जूट मिलों ने शनिवार को कहा कि उन्हें अपने उत्पादन को सामान्य करने में कम से कम दो से तीन सप्ताह का समय लगेगा। वह भी तब जबकि प्रवासी श्रमिक समय पर काम पर लौट आएं। इसका मतलब है कि तकनीकी रूप से मिलें एक जून से 100 प्रतिशत श्रमिकों के साथ परिचालन कर सकती है, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं लगता। 

उद्योग का अनुमान है कि उनका 50 प्रतिशत श्रमबल अपने घरों को लौट गया है। जूट मिलों में काम करने वाले ज्यादातर श्रमिक झारखंड, बिहार और ओड़िशा के है। लॉकडाउन लंबा खिंचने की वजह से उनकी आमदनी का जरिया बंद हो गया था जिसके बाद वे बसों और लॉरियों में अपने घरों को लौट गए। राज्य की 59 में से ज्यादातर जूट मिलें श्रमिकों को ठेके पर रखती हैं। यानी काम नहीं होने पर उन्हें वेतन नहीं मिलता। 

एक समूह के प्रवर्तक ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि श्रमिकों ने कामकाज शुरू होने का लंबे समय तक इंतजार किया। शुरुआत में सिर्फ 15 प्रतिशत श्रमबल के साथ परिचालन की अनुमति मिली। ऐसे में जिनको काम नहीं मिल पाया वे अपने घरों को लौट गए। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के अलावा ईद की वजह से भी काफी श्रमिक अपने गृह राज्य चले गए हैं। 

राज्य में कई जूट मिलें चलाने वाले समूह के प्रवर्तकों ने कहा कि पूर्ण रूप से परिचालन शुरू करने की अनुमति काफी देर से मिली है। भारतीय जूट मिल संघ के चेयरमैन राघव गुप्ता ने कहा, "बंद के दौरान बड़ी संख्या में श्रमिक अपने घर चले गए हैं। हमने उनसे 15 दिन में काम पर रिपोर्ट करने को कहा है। अभी हमें इंतजार करना होगा।" 

यह पूछे जाने पर कि बिना उचित सार्वजनिक परिवहन के श्रमिक दूरदराज के क्षेत्रों से कैसे वापस लौटेंगे, गुप्ता ने कहा कि संघ इस मुद्दे को सरकार के समक्ष उठाएगा। जूट मिलों के सूत्रों का कहना है कि घर लौटे श्रमिकों को स्थानीय लोगों से बदलना आसान नहीं है क्योंकि जूट मिलों का काम हर कोई नहीं कर सकता। 

भारत चैंबर ऑफ कॉमर्स के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा में वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने भरोसा दिलाया कि बंगाल के उद्योगों के श्रमबल के संकट को दूर करने के लिए विशेष ट्रेनों की व्यवस्था की जाएगी।

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