किस राक्षस ने मृत्यु के समय लिया था श्रीराम का नाम?

किस राक्षस ने मृत्यु के समय लिया था श्रीराम का नाम?

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क्या आप जानते हैं रावण की सेना में एक ऐसा राक्षस था जिनसे मरते समय भगवान राम के नाम का जाप किया था। आखिर उसने ऐसा क्यों किया आइए जानते हैं।

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रामायण के अनुसार भगवान राम और रावण के बीच बड़ा भीषण युद्ध चला था।

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जब हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे। तब रावण ने कालनेमि राक्षस को उनके मार्ग में बाधा उत्पन करने के लिए कहा था।

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कालनेमि रावण की सेना का मंत्री और एक मायावी राक्षस था।

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इसका वर्णन रामचरितमानस में भी मिलता है- दसमुख कहा मरमु तेहिं सुना। पुनि पुनि कालनेमि सिरु धुना॥ देखत तुम्हहि नगरु जेहिं जारा। तासु पंथ को रोकन पारा॥

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कालनेमि ने रावण को समझाया था कि भगवान राम से युद्ध जीतना तुम्हारे लिए संभव नहीं है। यह सुनकर रावण को क्रोध आ गया था।

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रावण के क्रोध को देखते हुए कालनेमि ने सोचा मरना तय है तो क्यों न श्री राम के सेवक के हाथो मरूं।

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उसने एक माया का नगर बनाया जहां सुंदर तालाब, मंदिर और हरे भरे वृक्ष थे।

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कालनेमि ने साधु का रूप धरा और श्री राम के नाम का जाप करने लगा।

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हनुमान जी राम धुन सुनते ही वहां रुके तो कालनेमि ने कहा मुझे पता है श्रीराम ही युद्ध जीतेंगे। मैं ज्ञान की दृष्टि से देख सब कुछ देख सकता हूं।

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बजरंगबली ने कालनेमि से जल मांगा तो उसने उन्हें तालाब दिखाया। तालाब से एक मगरी निकली और उसने हनुमान जी का पैर पकड़ लिया।

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पवनपुत्र ने उसे मारा तो वह अपने असली रूप में आ गई और उसने हनुमान जी से कहा वह साधु नहीं मायावी कालनेमि राक्षस है।

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रामचरितमानस में इस प्रकार लिखा है- सिर लंगूर लपेटि पछारा। निज तनु प्रगटेसि मरती बारा। राम राम कहि छाड़ेसि प्राना। सुनि मन हरषि चलेउ हनुमाना॥

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तब हनुमान जी ने कालनेमि राक्षस को पूछ से बांध कर पटका और उसका संहार किया।

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कालनेमि ने प्राण त्यागते हुए राम नाम का जाप किया और वह अंत में मोक्ष को प्राप्त हुआ। कालनेमि राम नाम की महिमा जानता था इसलिए उसने रावण से ज्यादा तर्क नहीं किए थे।

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