Parle-G, हमारे बचपन का इमोशन! जानें 'देश का बिस्किट' बनने की पूरी कहानी

Parle-G, हमारे बचपन का इमोशन! जानें 'देश का बिस्किट' बनने की पूरी कहानी

Image Source : File

हम सभी ने अपने बचपन में परले जी बिस्किट का आनंद लिया है। आज हम आपको बता रहे हैं कि कैसे यह देश का बिस्किट बन गया।

Image Source : File

साल 1929 में सिल्क व्यापारी मोहनलाल दयाल ने मुंबई के विले पारले इलाके में एक पुरानी बंद पड़ी फैक्ट्री खरीदी।

Image Source : File

उन्होंने वहां बिस्किट बनाना शुरू किया। पारले जी बिस्किट का नाम फैक्ट्री वाले जगह के नाम पर पारले पड़ा।

Image Source : File

पारले ने फैक्ट्री शुरू होने के 10 साल बाद 1939 में बिस्किट बनाना शुरू किया। उस समय विदेशों से भारत में बिस्किट आता था जो काफी महंगा होता था।

Image Source : File

बिस्किट महंगा होने के चलते उस समय सिर्फ अमीर ही खा पाते थे। वहीं, मोहनलाल स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित थे।

Image Source : File

उन्होंने अपने बिस्किट पारले को आम जनता के लिए सस्ती कीमत पर लॉन्च किया।

Image Source : File

भारत में बना, हर भारतीय के लिए कम कीमत में उपलब्ध बिस्किट जल्द ही आम जनता के बीच लोकप्रिय हो गया।

Image Source : File

साल 1982 में पारले ग्लूको को पारले-जी के रूप में री-पैकेज कर बाजार में लॉन्च किया गया। इसमें G का मतलब ग्लूकोज था।

Image Source : File

पारले-G के यादगार विज्ञापनों ने इसे घर—घर तक पहुंचाया। दादाजी अपने नाती-पोतों के साथ कोरस गाता विज्ञापन स्वाद भरे, शक्ति भरे, पारले-जी खूब सूर्खियां बटोरा।

Image Source : File

इसके बाद 'जी माने जीनियस', 'हिंदुस्तान की ताकत', 'रोको मत, टोको मत'... जैसी टैगलाइन ने पारले-जी को हमेशा चर्चा में बनाए रखा।

Image Source : File

8 दशकों से पारले जी की सफलता का राज प्रोडक्ट की कम कीमत है।

Image Source : File

आज पारले-जी के पास 130 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं। हर महीने पारले-जी 100 करोड़ से ज्यादा बिस्किट के पैकेट का उत्पादन करता है।

Image Source : File

Next : पैसों की है जरूरत, ये बैंक दे रहे हैं पर्सनल लोन शानदार ऑफर