ब्रज में होली से जुड़ी परंपराओं का निर्वहन बसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाता है, जब मंदिरों व चौराहों पर होली जलाए जाने वाले स्थानों पर होली का डांढ़ा गाड़ा जाता है।
Image Source : pti मथुरा में बरसाना और नंदगांव की लठमार होली, वृंदावन के मंदिरों की रंग-गुलाल वाली होली और गोकुल की छड़ीमार होली फेमस है।
Image Source : pti होली पूजन के दो दिन बाद चैत्र मास की द्वितीया को बलदेव (दाऊजी) के मंदिर प्रांगण में भगवान बलदाऊ एवं रेवती मैया के श्रीविग्रह के समक्ष बलदेव का प्रसिद्ध हुरंगा खेला जाता है।
Image Source : pti इसमें कृष्ण और बलदाऊ के स्वरूप में मौजूद गोप ग्वाल राधारानी की सखियां बनकर आईं भाभियों के साथ होली खेलते हैं।
Image Source : pti देवर के रूप में आए पुरुषों का दल एक तरफ, तो भाभी के स्वरूप में मौजूद समाज की महिलाओं का दल दूसरी ओर होता है।
Image Source : pti दोनों दलों के बीच पहले होली की तान और गीतों के माध्यम से एक-दूसरे पर छींटाकशी होती है।
Image Source : pti इसके बाद, पुरुषों का दल महिलाओं पर रंग बरसाने लगता है। जवाब में महिलाएं पुरुषों के कपड़े फाड़कर उनका पोतना बनाती हैं और उनके नंगे बदन पर बरसाने लगती हैं।
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