जब महात्मा गांधी ने भारत के अंग्रेजी पत्रकारों की उड़ाई खिल्ली

जब महात्मा गांधी ने भारत के अंग्रेजी पत्रकारों की उड़ाई खिल्ली

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यह वाकया देश की आजादी से महज 4 महीने पहले का है जब महात्मा गांधी ने नई दिल्ली में एक प्रार्थना सभा के दौरान अंग्रेजी के पत्रकारों के भाषा कौशल पर सवाल उठाया था।

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गांधी हर रोज की तरह प्रार्थना सभा को संबोधित करने पहुंचे थे। कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे थे जिन पर उन्हें उस दिन बोलना था।

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गांधी चाहते थे कि वह जो बोलें, अखबार वाले उसे उसी रूप में छापें लेकिन दिक्कत यह थी कि गांधी हिंदुस्तानी में बोलते थे और अंग्रेजी के अखबार उसका अनुवाद करते थे।

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गांधी की बोली गई बात और अंग्रेजी के अखबारों में प्रकाशित उसके अनुवाद में काफी अंतर होता था। यह उन्हें स्वीकार नहीं था।

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29 मई, 1947 को वह अपना भाषण खुद अंग्रेजी में लिख कर लाए थे। गांधी चाहते थे कि अंग्रेजी के अखबार कम से कम आज की उनकी बात सही-सही छाप दें और अनुवाद की गलती न करें।

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उन्होंने अपना भाषण शुरू किया, "आज मैंने थोड़ा कष्ट किया है। मेरे पास इतना समय कहां कि रोज मैं अपने भाषण को अंग्रेजी में लिख दिया करूं और हमारे अखबार जो अंग्रेजी में चलते हैं, उन्हें तो मेरा भाषण छापने को चाहिए ही।

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उन्होंने कहा- हमारे अखबारनवीस उसे अंग्रेजी में किस प्रकार दें। वे 'बेचारे' अंग्रेजी पूरी तरह कहां समझ पाते हैं?

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गांधी ने कहा, वैसे तो वे लोग BA, MA होते हैं लेकिन इतनी अंग्रेजी नहीं जानते कि मैं जो हिंदुस्तानी में कहता हूं उसका सही मतलब अंग्रेजी में समझा सकें। क्योंकि वह भाषा उनकी नहीं है, दूसरों की है।

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गांधी हालांकि किसी भाषा के विरोधी नहीं थे, अंग्रेजी के भी नहीं, अंग्रेजी बोलने और लिखने वालों के भी नहीं, बल्कि हर भाषा का समान रूप से सम्मान करते थे इसलिए वह भाषा के अधकचरे ज्ञान के खिलाफ थे।

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