लाहौर एक ऐसा शहर है जिसके पाकिस्तान में जाने का गम तमाम हिंदुस्तानियों को अक्सर होता है।
Image Source : Pexels किसी जमाने में अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर लाहौर में आज भी तमाम भव्य इमारतें मौजूद हैं।
Image Source : Pexels हालांकि अब यह शहर वैसा नहीं रहा जैसा कि 1947 से पहले हुआ करता था।
Image Source : Reuters उस जमाने में यहां हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, यहूदी, पारसी आदि धर्मों के लोग मिल-जुलकर रहा करते थे।
Image Source : Pexels लेकिन बंटवारे के आसपास यहां सांप्रदायिकता की आग लगी और तमाम लोग जैसे भाप बनकर उड़ गए।
Image Source : Pexels 1941 में इस शहर में 4.33 लाख मुसलमान रहते थे जिनकी संख्या 2017 में बढ़कर 1.05 करोड़ हो गई।
Image Source : Pexels 1941 में लाहौर में ईसाइयों की संख्या 21,495 थी जो 2017 में बढ़कर 5.71 लाख हो गई।
Image Source : Pexels इस शहर में 1941 में 34 हजार से ज्यादा सिख भी रहा करते थे, जिनकी संख्या अब नहीं के बराबर रह गई है।
Image Source : Pexels इसी तरह 1941 में लाहौर में 1,094 जैन रहा करते थे जो कि आज किसी भी आंकड़े में नहीं हैं।
Image Source : Pexels लाहौर की गलियों में कभी पारसी, बौद्ध और यहूदी भी रहते थे लेकिन आज आप इनको शायद ही यहां कहीं पाएंगे।
Image Source : Pexels लाहौर में 1941 में लगभग 1.80 लाख हिंदू रहा करते थे जो कि कुल जनसंख्या के 26 फीसदी से ज्यादा थे।
Image Source : Pexels लेकिन 1917 में इस शहर में हिंदुओं की जनसंख्या घटकर मात्र 2670 रह गई, जो कि कुल जनसंख्या का 0.02 फीसदी है।
Image Source : Pexels 2017 में लाहौर की जनसंख्या में 94.7 फीसदी मुस्लिम और 5.14 फीसदी ईसाई धर्म को मानने वाले लोग थे।
Image Source : Pexels इस तरह देखा जाए तो वक्त के साथ लाहौर में अन्य धर्मों को मानने वाले लोगों के लिए जगह कम पड़ती गई।
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