Highlights
- टेलर ग्लेशियर में कई दशकों से बह रहा ‘खून‘ का यह झरना
- वैज्ञानिकों ने बताया नमकीन है इस झरने का स्वाद
- थॉमस ग्रिफिथ टेलर ने 1911 में की थी ‘ब्लड फाल‘ की खो
OMG: कुदरत का करिश्मा कहीं भी देखने को मिल सकता है। ऐसा ही एक अद्भुत करिश्मा दक्षिणी ध्रुव पर स्थिति अंटार्कटिका महाद्वीप में देखने को मिला है। अंटार्कटिका में एक ग्लेशियर से ‘खून‘ निकाल रहा है। लाल रंग के इस बहाव को देखकर वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हैं। ये खून बताता है कि ग्लेशियर के काफी नीचे जिंदगी पनप रही है। ग्लेशियर का यह खून नमकीन सीवेज है, जो एक पुराने इकोसिस्टम का हिस्सा है। जानिए आखिर क्या है ग्लेशियर के इस लाल रंग या कहें खून का मामला।
टेलर ग्लेशियर में कई दशकों से बह रहा ‘खून‘ का यह झरना
अंटार्कटिका में जिस एक ग्लेशियर से खून का झरना बह रहा है, उसका नाम टेलर ग्लेशियर है। यह पूर्वी अंटार्कटिका के विक्टोरिया लैंड पर है। यहां जाने वाले बहादुर खोजकर्ताओं और वैज्ञानिकों को यह नजारा हैरान कर रहा है। खून का यह झरना आज से नहीं बल्कि कई दशकों से बह रहा है। अब जाकर इसके निकलने का कारण पता चल सका है।
वैज्ञानिकों ने बताया नमकीन है इस झरने का स्वाद
टेल ग्लेशियर के नीचे एक बहुत पुरानी जगह है। ऐसा माना जाता है कि वहां पर जीवन मौजूद है। धरती पर एलियन की मौजूदगी की तरह। यानी ग्लेशियर के नीचे जीवन पनप रहा है। जिन वैज्ञानिकों ने इस खून के झरने को नजदीक जाकर देखा है, सैंपल लिया है, वे बताते हैं कि इसका स्वाद नमकीन है। जैसा कि खून का होता है। लेकिन यह इलाका किसी नरक से कम नहीं है। यहां जाने का अर्थ है जान जोखिम में डालना।
थॉमस ग्रिफिथ टेलर ने 1911 में की थी ‘ब्लड फाल‘ की खोज
खून के झरने यानी ‘ब्लड फाल‘ की खोज सबसे पहले ब्रिटिश खोजकर्ता थॉमस ग्रिफिथ टेलर ने वर्ष 1911 में की थी। अंटार्कटिका के इस इलाके में यूरोपियन वैज्ञानिक सबसे पहले पहुंचे थे। शुरुआत में थॉमस और उनके साथियों को लगा था कि ये लाल रंग की एल्गी है, लेकिन ऐसा था ही नहीं। बाद में यह मान्यता रद्द कर दी गई।
ग्लेशियर के नीचे आयरन साल्ट है, यह 1960 में पता चला
फिर 1960 में पता चला कि यहां ग्लेशियर के नीचे लौह नमक यानी आयरन साल्ट है। यह बर्फ की मोटी परत से वैसे निकल रहा है जैसे आप टूथपेस्ट से पेस्ट निकालते हैं। फिर साल 2009 में यह स्टडी आई है कि यहां पर ग्लेशियर के नीचे सूक्ष्मजीव हैं, जिनकी वजह से ये खून का झरना निकल रहा है। ये सूक्ष्मजीव इस ग्लेशियर के नीचे 15 से 40 लाख साल से रह रहे हैं। यह एक बहुत बड़े इकोसिस्टम का छोटा सा हिस्सा है। इंसान इसका छोटा सा हिस्सा ही खोज पाए हैं। यह इतना बड़ा है कि इसके एक छोर से दूसरे छोर तक की खोज करने में कई दशक लग जाएंगे। क्योंकि इस इलाके में आना-जाना और रहना बेहद मुश्किल है।
ग्लेशियर में पाए गए हैं बैक्टीरिया, माइनस तापमान में भी नहीं जमता ‘खून‘
जब खून के झरने के पानी की जांच लैब में की गई, तो पता चला कि इसमें दुर्लभ सबग्लेशियल इकोसिस्टम के बैक्टीरिया हैं। जिनके बारे में किसी को पता नहीं है, ये ऐसी जगह जिंदा हैं, जहां पर ऑक्सीजन है ही नहीं। यानी बैक्टीरिया बिना फोटोसिंथेसिस के ही इस जगह पर अपना जीवन जी रहे हैं। इस जगह का तापमान दिन में माइनस 7 डिग्री सेल्सियस रहता है। यानी खून का झरना बेहद ठंडा है और ज्यादा नमक होने के कारण यह बहता रहता है, अन्यथा तुरंत जम जाता।