भारत में अलग-अलग जाती और जनजाती के लोग रहते हैं। भारत को ऐसे ही विविधताओं का देश नहीं कहा जाता। ऐसा ही एक हिमाचल प्रदेश का छोटा सा गांव मलाना है। जहां के लोग आज भी बाहरी लोगों से दूरी बनाए हुए है। कहा जाता है कि ये लोग सकंदर के वंशज हैं। जब सिकंदर भारत में आक्रमण के लिए आया था तब पंजाब क्षेत्र के राजा पोरस ने सिकंदर से युद्ध किया था और युद्ध में घायल सिंकदर की सेना ने इसी गांव में शरण ली थी। बाद में वह सैनिक यहीं पर बस गए और उनके ही वंशज यहां के लोग कहलाते हैं। इन लोगों को मालानी कहा जाता है। सिकंदर के जमाने की एक तलवार आज भी यहां रखी गई है।
सबसे अलग भाषा
मालानी लोग ऐसी भाषा बोलते हैं जो दुनिया में कहीं भी नहीं बोली जाती। इस भाषा को कनाशी कहा जाता है। इनकी भाषा को आजतक बाहर के लोग नहीं समझ पाए हैं। ये भाषा सिर्फ एक मालानी ही बोल सकता है। इस भाषा पर दुनिया भर के लोग रिसर्च कर रहे हैं।
बाहरी लोगों से दूरी बनाते हैं ये लोग
मालानी लोग बाहरी लोगों को छूने या उनसे हाथ मिलाने से परहेज करते हैं। अगर आप उनके पास जाने की कोशिश करेंगे तो वह आपसे दूर ही रहेंगे। यहां पर लोग पैसे भी हाथ से नहीं लेते। वह आपको कह देंगे कि पैसों को दूर रख दो हम उठा लेंगे।
गांजा-चरस बेचकर कमाते हैं पैसे
यहां के लोगों का पैसा कमाने का जरिया चरस और गांजा है। यहां पर दुनिया का सबसे अच्छा चरस और गांजा मिलता है। यहां के लोग अपने हाथों से मलकर चरस तैयार करते हैं और बाहरी लोगों को बेचते हैं।
गांव का अलग कानून और खुद का सदन
इस गांव में अलग ही कानून है। यहां के लोगों को भारत के संविधान के बारे में नहीं पता। इनका खुद का संसद भी है जहां से कानून बनता है और ये लोग उसी कानून पर चलते हैं।
सिर्फ दिन में ही आ सकते हैं बाहर के लोग
इस गांव की एक खास बात ये भी है कि बाहर के लोग यहां की किसी भी चीज को हाथ नहीं लगा सकते। मलाना गांव के लोग खुद भी किसी दीवार को नहीं छूते।
जमालू देवता की होती है पूजा
यहां के लोग जमदग्नि ऋषि को ही अपना देवता मानते हैं और उन्हें जमालू देवता के नाम से पूजते हैं। गांव में जो भी नियम कानून बनते हैं वह जमालू देवता की मर्जी से ही बनते हैं।
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