भारत में धर्म और धार्मिक परंपराओं की बड़ी मान्यता है। विशेष कर हिंदू धर्म में। लोग यहां पर कण-कण की पूजा करते हैं। खैर अभी तक आमतौर पर आपने देवी-देवताओं के मंदिरों के बारे में पढ़ा और सुना होगा। इससे जुड़ी मंदिर के कहानियों के बारे में भी सुना होगा। लेकिन क्या आपने कभी कुतिया के मंदिर के बारे में पढ़ा या सुना है। शायद ही सुना होगा आपने। तो चलिए आपलोगों आज ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताते हैं जहां पर लोग देवी-देवताओं की नहीं कुतिया की पूजा करते हैं। वहीं लोग इस कुतिया के मंदिर के सामने जाकर अपने लिए मन्नत भी मांगते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर पर जो भी अपनी मन्नत मांगता है उसकी हर मुराद पूरी होती है। यह मंदिर कैसे बना और कैसे इसकी नींव पड़ी। इसके पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है।
हर मन्नत पूरा करती हैं मां कुतिया महारानी
यह मंदिर यूपी के झांसी जिले के महरानीपुर तहसील में है। यहां पर एक कुतिया की मूर्ती स्थापित की गई है। सड़क किनारे बने सफेद चबूतरे पर काले रंग की कुतिया की मूर्ती स्थापित की गई है। यहां पर रहने वाले लोग अक्सर इस मंदिर में पूजा करने के लिए आते हैं और मत्था टेक कर जाते हैं। यहां से जो भी गुजरता है वह दो मिनट रूक कर कुतिया के सामने सिर झुकाता है और मूर्ती को प्रणाम कर के ही जाता है। गांव के लोग कुतिया को धैर्य का प्रतिक मानते हैं।
इसलिए होती है पूजा
इस कुतिया के मंदिर के पीछे की कहनी भी बड़ी दिलचस्प है। गांव वाले बताते हैं कि किसी एक समय यह कुतिया ककवारा और रेवन नाम को दो गांवों में घूमा करती थी। ये कुतिया गांव के हर दावत में खाने के लिए पहुंच जाती थी। एक दिन दोनों ही गांव में दावत थी। उस समय दावत के समय रामतूला बजाया जाता था जिससे पता चल जाता था कि दावत शुरू हो गई है। उसी वक्त रेवान गांव में रामतूला बजा और कुतिया उस गांव में दावत के लिए पहुंच गई। लेकिन जब तक वह वहां पहुंचती तब तक सारा खाना खत्म हो गया था। थोड़ी देर बाद ककवारा गांव में रामतूला बजा लेकिन यहां भी कुतिया को खाना नहीं मिला। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि कुतिया बीमार और भूखी थी। दोनों गांव में दौड़ लगाने की वजह से वह थक कर रास्ते में ही बैठ गई। जिसके बाद भूख और बीमारी के कारण उसकी मौत हो गई। इसलिए अब जब भी गांव में दावत होती है तो सबसे पहले खाना इस कुतिया के मंदिर में चढाया जाता है और पूजा की जाती है।
कुतिया का मंदिर बनवाया गया
जहां कुतिया ने दम तोड़ा था। वहीं पर दोनों गांव का बॉर्डर लगता था। गांव वालों ने कुतिया को वहीं दफना दिया। गांव के लोगों का कहना है कि कुतिया को दफनाये जाने वाला स्थान पत्थर में तब्दील हो गया। लोगों ने जब यह चमत्कार देखा तो उन्होंने कुतिया का मंदिर बनवाने का फैसला किया। कुतिया का मंदिर बनाया गया और वहां पर उसकी प्रतिमा लगा दी गई। इस मंदिर को लोग कुतिया महारानी मां के मंदिर के नाम से जानते हैं। ककवारा गांव के लोगों का कहना है कि दिवाली और दशहरा के दिन कुतिया की पूजा करने का महत्व है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इन्हीं दिनों में कुतिया की मौत हुई थी।