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"हम कॉलेज में मिले, पहली नजर में हमें प्यार हुआ और अब...", रुला देगा शहीद कैप्टन अंशुमन सिंह की पत्नी का ये Video

सियाचिन में तैनान शहीद कैप्टन अंशुमन सिंह पिछले साल 19 जुलाई को शहीद हुए थे। रक्षा अलंकरण समारोह के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनके मरणोपरांत उनकी पत्नी स्मृति सिंह को कीर्ति चक्र से सम्मानित किया।

Written By: Pankaj Yadav @ThePankajY
Published on: July 06, 2024 17:17 IST
पति के नाम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से सम्मान प्राप्त करती शहीद कैप्टन अंशुमन सिंह की पत्नी स्मृति - India TV Hindi
Image Source : SOCIAL MEDIA पति के नाम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से सम्मान प्राप्त करती शहीद कैप्टन अंशुमन सिंह की पत्नी स्मृति सिंह

राष्ट्रपति भवन में आयोजित रक्षा अलंकरण समारोह के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 जुलाई को सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों को उनकी साहस और वीरता के लिए कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र से सम्मानित किया। इनमें से ही एक शहीद कैप्टन अंशुमन सिंह थे, जिन्हें मरणोपरांत उनकी बहादुरी के लिए कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान लेने के लिए उनकी मां और उनकी विधवा पत्नी स्मृति सिंह पहुंची हुईं थी। जिनका वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है।

शहीद की पत्नी ने लिया सम्मान

वीडियो में दिख रहा है कि शहीद कैप्टन अंशुमन सिंह को दिए गए कीर्ति चक्र को लेने के लिए उनकी मां और विधवा पत्नी मंच तक पहुंची। इस दौरान बताया जा रहा था कि किस तरह कैप्टन ने अपनी जान की परवाह किए बगैर सियाचिन में जरूरी दवाओं, उपकरणों और अन्य जवानों को बचाने के लिए जान की बाजी लगा दी। अपने पति की वीरगाथा सुनकर सुन स्मृति सिंह की आंखों में आंसू आ गए। फिर वह दोनों मंच  पर राष्ट्रपति के पास सम्मान लेने गईं। वीडियो में देख सकते हैं कि सफेद रंग की साड़ी पहनकर आई स्मृति सिंह अपनी डबडबाई आंखों के साथ राष्ट्रपति मुर्मू से कीर्ति चक्र सम्मान हासिल कर रही हैं। वीडियो में स्मृति के चेहरे पर दुख, दर्द और पीड़ा साफ तौर पर दिख रहा है। इसे देख आप उनके दुख का अंदाजा लगा सकते हैं। राष्ट्रपति ने सम्मान देने के बाद स्मृति के कंधे पर हाथ रखकर उन्हें ढंढास भी बंधाया।

शहीद कैप्टन अंशुमन की बहादुरी का किस्सा सुना रोने लगीं स्मृति 

इस वीडियो के साथ एक और वीडियो वायरल हो रहा है जिसे रक्षा मंत्रालय की पब्लिक रिलेशन टीम ने बनाया है। इस वीडियो में स्मृति सिंह ने अंशुमन से मुलाकात और उनके जीवन के बारे में बताते हुए नजर आ रही हैं। वीडियो में उन्होंने बताया कि "हमारी मुलाकात कॉलेज के पहले दिन हुई थी। हमें पहली नजर में ही प्यार हो गया। एक महीने का बाद उनका सेलेक्शन आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज के लिए हो गया। हमारी मुलाकात इंजीनियरिंग कॉलेज में हुई थी और वह मेडिकल कॉलेज के लिए सेलेक्ट हो गए। वह बहुत ही ज्यादा बुद्धिमान शख्स थे। एक महीन ने की मुलाकात के बाद ये 8 सालों तक चला लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप था। एक दिन अंशुमान ने मुझसे कहा कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए और हमने ऐसा ही किया। दुर्भाग्य से शादी के दो महीने बाद ही उनकी पोस्टिंग सियाचिन में हो गई। 18 जुलाई, 2023 को हमारे बीच लंबी बातचीत हुई, जिसमें हमने चर्चा की कि हमारे जीवन के अगले 50 साल कैसे होने वाले हैं। हमने घर लेने और बच्चों को लेकर बातें कीं।" शहीद कैप्टन की पत्नी ने जब ये बातें बता रहीं थीं तब उस वक्त उनका गला रुंध आया था।

जब उनके न होने की खबर आई

उन्होंने आगे बताया, "19 जुलाई की सुबह हमें फोन आया कि अंशुमन अब इस दुनिया में नहीं रहें। शुरु के 7-8 घंटों तक हमें यकीन ही नहीं हुआ कि अब वे नहीं रहे। लेकिन फिर उनके शहीद होने की पुष्टि हो गई। मैं खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि काश ऐसा न हुआ हो ये खबर झूठी निकले।" उन्होंने रोते हुए आगे बताया, "मगर अब मेरे हाथ में कार्ति चक्र है, इसका मतलब है कि यह सच है अब वह इस दुनिया में नहीं रहें। वह हीरो हैं। हम अपनी जिंदगी को मैनेज कर लेंगे, उन्होंने भी बहुत मैनेज किया है। उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाई, ताकि तीन लोगों के परिवार बच सकें।"

कैसे शहीद हुए कैप्टन अंशुमन सिंह? 

कैप्टन अंशुमन सिंह पंजाब रेजिमेंट की 26वीं बटालियन के सेना मेडिकल कोर का हिस्सा थे। वह ऑपरेशन मेघदूत के तहत सियाचिन में मेडिकल ऑफिसर के तौर पर तैनात थे। पिछले साल 19 जुलाई को सियाचिन के चंदन ड्रॉपिंग जोन में हुई भीषण अग्निदुर्घटना के दौरान अंशुमन ने वहां फंसे लोगों को बाहर निकालने में मदद की। इसी दौरान मेडिकल इंवेस्टिगेशन सेंटर तक आग फैल गई। ये देखकर कैप्टन अंशुमन ने अपनी जान की परवाह किए बगैर उसमें कूद गए। शहीद कैप्टन सेंटर में इसलिए दाखिल हुए थे, ताकि वह जीवनरक्षक दवाइयों और उपकरणों को बचा सकें। मगर 17 हजार फीट की ऊंचाई पर चल रही तेज हवाओं की वजह से शेल्टर आग की लपटों से घिर गया। उन्हें आग से बचाने की भरपूर कोशिश की गई, लेकिन उन्हें नहीं बचाया जा सका और उन्हें सियाचिन में वीरगति हासिल हुई। 

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