एक तरफ देश में पहले समलैंगिक जज की नियुक्ति पर शुभकामनाओं और रिएक्शन का दौर है तो दूसरी ओर क्रिकेटर विराट कोहली के रेस्टोरोंट में LGBT+ समुदाय के सदस्यों की एंट्री पर रोक सोशल मीडिया पर बवाल मचा रही है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम ने वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल (Senior Advocate Saurabh Kirpal) को दिल्ली हाई कोर्ट के जज बनाने की मंजूरी दी है जो कि समलैंगिक हैं और दूसरी तरफ विराट कोहली के रेस्टोरेंट के बवाल ने साबित किया है कि समाज को अभी और जागरुक होने की जरूरत है।
सोशल मीडिया पर विराट कोहली को लेकर मचा बवाल क्रिकेटर के खेल नहीं बल्कि उनके रेस्टोरेंट के रवैये को लेकर उठ रहा है। कहा जा रहा है कि कोहली के One8 commune नामक रेस्टोरेंट चेन में समलैंगिकों LGBTQ+ के घुसने पर रोक लगाई गई है। बताया जा रहा है कि कोहली के दिल्ली, कोलकाता और पुणे में रेस्टोरेंट हैं।
हालांकि इस खबर की पुष्टि नहीं हो सकी है। यह बात सिर्फ ट्विटर पर दिखी है। कुछ लोगों का मानना है कि विराट कोहली से यह बात अगर सच है तो विराट कोहली ने इस समुदाय के लोगों से पक्षपात का व्यवहार किया है।
LGBTQ+ समुदाय से जुड़े एक ग्रुप ‘Yes, We Exist’ के हवाले से चलाए गए ट्विटर पोस्ट में कहा गया है कि कोहली के रेस्टोरेंट की जोमेटो लिस्टिंग में कहा गया है कि स्टैग (STAG) अलाउड नहीं है। जब इस संबंध में पुणे की ब्रांच में फोन किया गया तो कहा गया कि कोहली के रेस्टोरेंट में सिर्फ सिसजेंडर विषमलैंगिक जोड़ों या सिसजेंडर महिलाओं के समूहों को ही एंट्री दी जा सकती है। के लिए है. समलैंगिक जोड़े या समलैंगिक पुरुषों के समूहों को एंट्री नहीं है, ट्रांस महिलाओं को उनके कपड़ों के अनुसार एंट्री दी जा सकती है।
इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया कोहली और उनके रेस्टोरेंट को लगातार ट्रोल किया जा रहा है और यूजर नए जमाने में भी ऐसी संकुचित मानसिकता दिखाने के लिए उन्हें गरिया रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग विराट कोहली का सपोर्ट भी कर रहे हैं।
दूसरी तरफ विराट कोहली के रेस्टोरेंट वन8 कम्यून की तरफ से भी सफाई आ गई है। रेस्टोरेंट ने एक बयान जारी करके कहा है, 'रेस्तरां चेन सभी लोगों का उनके लिंग और वरीयताओं के बावजूद स्वागत करने में विश्वास करता है, जैसा कि हमारे नाम से पता चलता है, हम अपनी स्थापना के बाद से हमेशा सभी समुदायों की सेवा में समावेशी रहे हैं।'
अगर कोहली के रेस्टोरेंट पर लगे आरोप सही हैं तो निश्चित तौर पर ये कहा जा सकता है कि भले ही देश में समलैंगिक जज की नियुक्ति की जा सकती है लेकिन समाज में एलजीबीटी के साथ हो रहे भेदभाव को दूर करने में बड़े और प्रभावित और इंसपायर करने वाले लोग भी अपना रवैया बदलने को राजी नहीं है।