दीवापली का मौका है और बाजार खूब उत्साहित है। रोज बड़े ब्रांड्स के जमकर विज्ञापन आ रहे हैं लेकिन इस बार बड़े ब्रांड्स अपने विज्ञापनों को लेकर सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल हो रहे हैं। आए दिन किसी न किसी ब्रांड को अपने विज्ञापन को लेकर जनता की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। कुछ ने ट्रोल होने के बाद विज्ञापन हटा लिया है इस डर से कि जिनके लिए बनाया है कहीं वो बायकॉट न कर दें। कुछ ने बाकायदा माफी मांगी है क्योंकि बाजार तो यही रहेगा और सेंटिमेंट्स भी।
हाल ही में सब्यसाची द्वारा बनाए गए मंगलसूत्र एड पर भी काफी बवाल मच रहा है। मंगलसूत्र जिसे हिंदुओं में सुहागन स्त्रियों द्वारा पहना जाता है, उसका विज्ञापन करने के लिए सब्यसाची ने जो तरीका अपनाया है, उसका सोशल मीडिया पर जमकर विरोध हो रहा है। मंगलसूत्र को इंटीमेट ज्वैलरी कहे जाने पर भी सोशल मीडिया को ऐतराज है।
इस विज्ञापन की तुलना लोग कंडोम विज्ञापन से कर रहे हैं क्योकि इसमें न्यूडिटी ज्यादा दिखाने का आरोप लग रहा है। इस वजह से विज्ञापन को लेकर सब्यसाची ट्रोल हुआ और लोग उसके प्रोडक्ट को बायकॉट करने पर लगे हैं।
इससे कुछ रोज पहले ही डाबर के ब्लीच प्रोडक्ट फैम का विज्ञापन भी करवाचौथ की थीम को लेकर ट्रोल हो गया था। उस विज्ञापन में समलैंगिको को करवाचौथ मनाते दिखाया था। तब भी सोशल मीडिया पर काफी बवाल मचा था और डाबर को डिफेंसिव मोड में आकर इसके लिए माफी मांगनी पड़ गई थी।
इससे पहले फेब इंडिया ने दीवाली विज्ञापन थीम को जश्न-ए-रिवाज का नाम दिया तो भी सोशल मीडिया पर विरोध का स्वर उठा था कि हिंदू त्योहारों का इस्लामीकरण हो रहा है। तब मजबूरन फैब इंडिया को विज्ञापन हटाना पड़ा था।
एक के बाद एक तीन ब्रांड्स इस बार त्योहारी मौके पर अपनी विज्ञापन थीम को लेकर सोशल मीडिया पर ट्रोल हुए और तीनों बार यूजर की तरफ से इन पर धार्मिक भावनाओं को ठोस लगाने का आरोप लगा।
सवाल उठ रहा है कि इस बार ऐसा हुआ क्या है कि विज्ञापन भावनाओं को कथित रूप से आहत कर रहे हैं। क्या ऐसा पहले भी होता आया है। सोशल मीडिया जब नहीं था, तब विज्ञापन की पहुंच केवल टीवी के जरिए होती थी और वो भी गिने चुने स्लॉट के जरिए और अखबारों के जरिए विज्ञापन लोगों तक पहुंचते थे। लेकिन जबसे सोशल मीडिया का दौर चला है लोगों को अपनी बात कहने और विरोध जाहिर करने का मौका मिला है।
हालांकि इस बार का ट्रेंड देखा जाए तो ब्रांड्स भी ऐसे अतिसंवेदनशील सोशल मीडिया के दौर में ऐसे विज्ञापन क्यों बनाते जा रहे हैं, .ये सोचने की बात है।
ऐसे बाजार में जहां जाहिर तौर पर कुछ त्योहार खास भावनाओं से जुड़ें हैं, उन पर ही क्यों सामाजिक एक्सपेरिमेंट किए जा रहे हैं। यूजर की आपत्ति इसी बात पर है। करवाचौथ जैसा त्योहार जो खासतौर पर पति पत्नी के साथ की अवधारणा पर टिका है, उसमें लेस्बियन संबंध लाने की क्या जरूरत आन पड़ी, ये समझ से बाहर है। यूं भी इस विज्ञापन के जरिए डाबर गोरेपन की महत्ता को बता रहा था जिसे समाज लगभग पीछे छोड़ चुका है।
दूसरे नजरिए से देखा जाए तो ब्रांड्स द्वारा दीवाली जैसे त्योहार पर ऐसे एक्सपेरिमेंट किये जाना व्यापारिक तौर पर भी बेवकूफी कही जा सकती है। जब पता है कि भारत में दीवाली पर कितना बिजनेस होता है,ऐसे में केवल विज्ञापन की थीम पर अपने बने बनाए बाजार पर जोखिम लेना कतई समझदारी नहीं कही जा सकती।
सोशल एक्सपेरिमेंट कभी भी किए जा सकते हैं, उनके लिए त्योहारी सीजन में रिस्क लेने पर इन ब्रांड्स के मैनेजमेंट को कितना नुकसान हुआ होगा, ये आकलन किया जाए तो नुकसान ही होगा।