कहते हैं कि समाज के बारे में सोचने से पहले घर के बारे में सोचना पड़ता है। घर के सदस्यों की जिम्मेदारी लेने वाले शख्स का दिल बरगद जैसा होना चाहिए जो अपने घर के बच्चों पर संकट आने पर कुछ भी कर जाए। ऐसे ही एक मजबूत इरादों वाले बुजुर्ग शख्स की खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसने अपनी पोती की पढ़ाई के लिए अपना घर तक बेच दिया और अब ऑटो में ही उसने अपना घर बना लिया है। दिन रात हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद ये बुजुर्ग रात को अपने ऑटो में ही सो जाता है। सड़क पर ही कुछ खा पी लेता है और फिर जुट जाता है, सवारियां ढोने में। इस खबर को पढ़ने के बाद उन लोगों की सोच बदलेगी जो अपने घर के बुजुर्गों को बेकार और लाचार समझते हैं।
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फेसबुक पर बने स्पेशल पेज 'ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे' पर महरूम बेटे के परिवार को पालने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे बुजुर्ग देसराज की कहानी शेयर की गई है।
चलिए देसराज की कहानी जानते हैं। देसराज का भरा पूरा परिवार था। वो ऑटो चलाते थे और दो जवान बेटे, बहुएं और उनके चार बच्चे साथ रहते थे। उनके घर में हमेशा खुशी खिलखिलाती थी।
फिर वो हुआ, जिसे नियति कहते हैं, बड़ा बेटा 6 साल पहले घर से निकला तो आज तक लौट कर नहीं आया। देसराज ने हिम्मत बांधी और परिवार को संभाला। लेकिन ईश्वर भी मानों परीक्षा लेने पर तुला था। दो साल पहले छोटे बेटे ने भी खुदकुशी कर ली। देसराज ने कहा 'इस बार मेरे पास मौत पर आंसू बहाने का भी वक्त नहीं था।' क्या करता! घर में दो बहुएं और चार छोटे बच्चे थे, जिनकी परवरिश करना मेरे जिम्मे था। मैं छोटे बेटे की मौत के अगले दिन ही ऑटो लेकर सड़क पर उतर गया क्योंकि एक दिन भी नागा करने का मतलब था, घर चलाने में दिक्कत होना।
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दस हजार में आठ लोगों का घर चलता है
देसराज कहते हैं कि ईश्वर का यही फैसला है तो मैं इसी को मानता हूं। दो बहुओं और उनके चार बच्चों की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है। इसलिए वो सुबह छह बजे घर से निकल जाते हैं, आधी रात को लौटते हैं, दिन भर ऑटो चलाते हैं, इससे करीब दस हजार रुपए की कमाई हो जाती है जिससे आठ लोगों का परिवार चलता है।
पिछले साल बीवी बीमार पढ़ गई, दवाइयों के लिए भी लोगों से मदद मांगनी पड़ी। छह हजार तो बच्चों की पढ़ाई में ही निकल जाते हैं, बाकी बचे चार हजार, जिसमें आठ लोगों का गुजारा होता है। कई बार तो ऐसे हालात बन गए थे कि घर में खाने के लिए भी कुछ नहीं होता था।
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पोती का सपना पूरा करने को घर बेचा
देसराज ने कहा कि मैंने घर बेच दिया, क्योंकि मेरी पोती का सपना टीचर बनने का था, उसको दिल्ली के स्कूल में बीएड का दाखिला करवाने के लिए मुझे घर बेचना पड़ा लेकिन अफसोस नहीं है, मैने उससे कहा है 'तुम जीभर कर पढ़ो, कोई दिक्कत नहीं होगी, चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े। उनके बाप नहीं है तो क्या, मैं उनके सपनों को यूं नहीं मरने नहीं दे सकता।'
घर बेचने के बाद देसराज ने पोती का दिल्ली में एडमिशन करवाकर उस दिल्ली भेजा और अपनी बीवी, बहुओं और उनके बच्चों को गांव में रिश्तेदारों के घर भेज दिया है।
रही बात देसराज की, उनको तो कमाने के लिए मुंबई में ही रहना होगा। घर नहीं तो क्या, वो अपने ऑटो को ही घर बना चुके हैं। देसराज दिन भर ऑटो चलाते हैं, रात को उसी ऑटो में सो जाते हैं। सुबह जल्दी उठकर भी ऑटो चलाना शुरू कर देते हैं।
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पोती के एक फोन से दर्द गायब हो जाता है
हां कभी कभी शरीर दर्द करता है, पैर टूटने लगते हैं, रात भर दबाते हैं, फिर जब पोती का फोन आता है तो दर्द गायब हो जाता है औऱ उसी शिद्दत से ऑटो चलाना शुरू कर देते हैं। देसराज कहते हैं 'जिस दिन मेरी पोती टीचर बन जाएगी, उस दिन फ्री राइड दूंगा।'
जिस उम्र में बुजुर्ग लोग घर में पोते पोतियों को खिलाकर समय काटते हैं, उस उम्र में देसराज उन्हीं पोते पोतियों के जीवन को संवारने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं। ये खबर लोगों की आंखें नम कर रही है।
घर के बुजर्ग जब बन जाते हैं सुपरमैन
ये कहानी सिखा रही है कि जिन बुजुर्गों को हम बूढ़ा, लाचार, बेकार समझकर घर के कौने में पड़ा रहने देते हैं, उनका जज्बा परिवार के लिए बिलकुल वैसा ही है, जैसा हमारा औऱ आपका। उन पर विश्वास कीजिए, वो परिवार की डोर हैं और बरगद भी, संकट पढ़ने पर यही बूढ़े लाचार परिवार के लिए सुपरमैन भी बन सकते हैं।
परिवार के लिए जज्बा हो तो इंसान अपनी उम्र और मजबूरी नहीं देखता। जरूरतें और परिवार का प्यार उसके भीतर इतना जुनून और ताकत भर देता है कि वो दुगनी रफ्तार से मेहनत करता है। देसराज के बारे में कहा जाए तो वो रीयल हीरो हैं जो अपने परिवार के लिए सुपरमैन बने हैं तो समाज के लिए अनोखी मिसाल।
देसराज की कहानी सुनकर कई लोग उनकी मदद के लिए आगे आए हैं। फेसबुक पर कई लोग देसराज की आर्थिक मदद के लिए दरकार कर रहे हैं। गुंजन रत्ती नाम के एक फेसबुक यूजर ने देसराज की मदद के लिए अभियान शुरू किया है, इसके तहत देसराज के लिए अभी तक लोग 5.3 लाख रुपए की मदद कर चुके हैं।