मुंबई के ऑटो ड्राइवर देशराज के लिए इस वक्त खुशी का ठिकाना नहीं होगा क्योंकि पिछले सप्ताह उनकी दिल को छू लेने वाली कहानी के वायरल होने के बाद क्राउडफंडिंग पहल के माध्यम से दान में उन्हें 24 लाख रुपये मिले हैं। 11 फरवरी को 'ह्यूमन ऑफ बॉम्बे' ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट्स में देशराज की स्टोरी शेयर की थी और लगभग दो सप्ताह में इंटरनेट ने उनकी मदद करने में कामयाबी हासिल की।
'ह्यूमन ऑफ बॉम्बे' से बात करते हुए, देशराज ने कहा था कि वह अपने दो बेटों की मौत के बाद पोतियों की देखभाल की सारी जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई थी। देशराज ने लंबे समय तक काम किया और अपने पोतियों के लिए स्कूल की फीस का भुगतान किया और उनमें से एक को आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली भी भेज दिया, लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें अपना घर बेचना पड़ा।
'ह्यूमन ऑफ बॉम्बे' ने 22 फरवरी को एक पोस्ट शेयर किया और देशराज के समर्थन के लिए सोशल मीडिया को धन्यवाद दिया।
पेज ने लिखा, "देशराज जी को जो समर्थन मिला है, वह बहुत बड़ा है! क्योंकि आप सभी उनकी मदद करने के लिए सामने आए। अब उनके सिर पर छत है, और वह अपनी पोती को शिक्षित कर पाएंगे। धन्यवाद!"
बता दें फेसबुक पर बने स्पेशल पेज 'ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे' पर महरूम बेटे के परिवार को पालने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे बुजुर्ग देसराज की कहानी शेयर की गई थी।
अब तक कैसे गुजरती थी देशराज की जिंदगी, आइए जानते हैं -
दस हजार में आठ लोगों का घर चलता है
अपनी स्टोरी साझा करते हुए देसराज बताया कि ईश्वर का यही फैसला है तो मैं इसी को मानता हूं। दो बहुओं और उनके चार बच्चों की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है। इसलिए वो सुबह छह बजे घर से निकल जाते हैं, आधी रात को लौटते हैं, दिन भर ऑटो चलाते हैं, इससे करीब दस हजार रुपए की कमाई हो जाती है जिससे आठ लोगों का परिवार चलता है।
पिछले साल बीवी बीमार पढ़ गई, दवाइयों के लिए भी लोगों से मदद मांगनी पड़ी। छह हजार तो बच्चों की पढ़ाई में ही निकल जाते हैं, बाकी बचे चार हजार, जिसमें आठ लोगों का गुजारा होता है। कई बार तो ऐसे हालात बन गए थे कि घर में खाने के लिए भी कुछ नहीं होता था।
पोती का सपना पूरा करने को घर बेचा
देसराज ने कहा कि मैंने घर बेच दिया, क्योंकि मेरी पोती का सपना टीचर बनने का था, उसको दिल्ली के स्कूल में बीएड का दाखिला करवाने के लिए मुझे घर बेचना पड़ा लेकिन अफसोस नहीं है, मैने उससे कहा है 'तुम जीभर कर पढ़ो, कोई दिक्कत नहीं होगी, चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े। उनके बाप नहीं है तो क्या, मैं उनके सपनों को यूं नहीं मरने नहीं दे सकता।'
घर बेचने के बाद देसराज ने पोती का दिल्ली में एडमिशन करवाकर उस दिल्ली भेजा और अपनी बीवी, बहुओं और उनके बच्चों को गांव में रिश्तेदारों के घर भेज दिया है।
रही बात देसराज की, उनको तो कमाने के लिए मुंबई में ही रहना होगा। घर नहीं तो क्या, वो अपने ऑटो को ही घर बना चुके हैं। देसराज दिन भर ऑटो चलाते हैं, रात को उसी ऑटो में सो जाते हैं। सुबह जल्दी उठकर भी ऑटो चलाना शुरू कर देते हैं।
पोती के एक फोन से दर्द गायब हो जाता है
हां कभी कभी शरीर दर्द करता है, पैर टूटने लगते हैं, रात भर दबाते हैं, फिर जब पोती का फोन आता है तो दर्द गायब हो जाता है औऱ उसी शिद्दत से ऑटो चलाना शुरू कर देते हैं। देसराज कहते हैं 'जिस दिन मेरी पोती टीचर बन जाएगी, उस दिन फ्री राइड दूंगा।'
जिस उम्र में बुजुर्ग लोग घर में पोते पोतियों को खिलाकर समय काटते हैं, उस उम्र में देसराज उन्हीं पोते पोतियों के जीवन को संवारने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं। ये खबर लोगों की आंखें नम कर रही है।