Thursday, November 14, 2024
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भारत से मुशर्रफ का नामोनिशान खत्म, बागपत में आखिरी जमीन भी नीलाम हुई; किसने खरीदी और कितने में बिकी?

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की खानदानी जमीन नीलाम हो गई है। यूपी में बागपत जिले के कोताना गांव में 13 बीघा इस जमीन को 3 लोगों ने खरीदा है। इसे खरीदने के लिए लोगों ने खूब बोली लगाई थी।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Updated on: November 14, 2024 19:25 IST
parvez musharraf land- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO बागपत में नीलामी में बिकी मुशर्रफ के परिवार से जुड़ी जमीन

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के कोताना में स्थित शत्रु संपत्ति के अंतर्गत आने वाली दो हेक्टेयर जमीन को तीन लोगों ने नीलामी में खरीद ली है। नीलामी में बिकी जमीन पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत परवेज मुशर्रफ से जुड़ी होने का दावा किया जा रहा है। बताया जाता है कि यह जमीन पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के रिश्तेदारों की है। इस जमीन को ऑनलाइन नीलामी में 3 लोगों ने खरीदा है जिसके बाद उन्होंने 25 प्रतिशत पैसा भी सरकार को जमा कर दिया है। परवेज मुशर्रफ के रिश्तेदारों की जमीन काफी वक्त से यहां पड़ी हुई थी।

1 करोड़ 38 लाख में बिकी जमीन

जिले के अपर जिला मजिस्ट्रेट (ADM) पंकज वर्मा ने बताया कि तीन लोगों ने ऑनलाइन नीलामी के जरिये 1 करोड़ 38 लाख 16 हज़ार रुपये में आठ प्लॉट वाली कुल 13 बीघा जमीन खरीदी है और कुल रकम का 25 फीसदी पैसा जमा कर कर दिया है।

सोशल मीडिया पर, नीलाम संपत्ति मुशर्रफ के परिजनों की बताई जा रही है। हालांकि, वर्मा के अनुसार इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है और न ही कोई ऐसा कोई सबूत मिला है कि नूरू नामक व्यक्ति मुशर्रफ का परिजन था। उन्होंने कहा, “राजस्व अभिलेख में यह शत्रु सम्पत्ति नूरू के नाम से दर्ज है। हालांकि दस्तावेजों में नूरू और मुशर्रफ के बीच किसी संबंध के बारे में जानकारी नहीं है। रिकॉर्ड में केवल इतना पता चला है कि नूरु इस संपत्ति का मालिक था, जो 1965 में पाकिस्तान चला गया था।" वर्मा ने बताया कि धन जमा करने के बाद खरीदारों के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज हो जाएंगे।

चाचा लंबे समय तक बागपत में रहे

एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि मुशर्रफ के दादा कोटाना में रहते थे जबकि मुशर्रफ का जन्म दिल्ली में हुआ था और वह कभी बागपत नहीं आए। अपर जिलाधिकारी वर्मा ने कहा कि मुशर्रफ के पिता सैयद मुशर्रफुद्दीन और मां जरीन बेगम कभी इस गांव में नहीं रहे, लेकिन उनके चाचा हुमायूं लंबे समय तक यहां रहे। उन्होंने कहा कि गांव में एक घर भी है, जहां हुमायूं आजादी से पहले रहते थे। साल 2010 में इस जमीन को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया था। (भाषा इनपुट्स के साथ)

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