Sunday, December 22, 2024
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यूपी उपचुनाव: सीएम योगी की प्रतिष्ठा दांव पर, अखिलेश की PDA का लिटमस टेस्ट, जानें क्या है सियासी समीकरण

इस सेमीफाइनल मुकाबले में एक तरफ जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर है तो वहीं, अखिलेश की PDA का भी लिटमस टेस्ट होना है।

Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Published : Oct 25, 2024 14:54 IST, Updated : Oct 25, 2024 14:54 IST
योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव
Image Source : FILE योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव के लिए सियासी घमासान जारी है। आज नामांकन का आखिरी दिन है। इस उपचुनाव को विधानसभा चुनाव से पहले के सेमीफाइनल मुकाबले के तौर पर देखा जा रहा है। विधानसभा की 9 सीटों पर होनेवाले इस चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने अपने 8 उम्मीदवार खड़े किए हैं जबकि एक सीट पर उसने सहयोगी दल आरएलडी को दी है। बीजेपी, एसपी और बीएसपी ने नॉमिनेशन से एक दिन पहले ही उम्मीदवारों की लिस्ट फाइनल की है।

बीजेपी ने 9 में से 8 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं तो वहीं, 1 सीट (मीरापुर) अपनी सहयोगी पार्टी RLD को दिया है। समाजवादी पार्टी ने सभी 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। उधर, मायावती की बीएसपी ने भी सभी नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। वहीं कांग्रेस ने सत्ता के इस सेमीफाइनल से पहले ही सरेंडर कर दिया है। समाजवादी पार्टी के साथ सीट शेयरिंग में बात नहीं बन पाने के कारण कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला लिया। 

इस सेमीफाइनल मुकाबले में एक तरफ जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर है तो वहीं, अखिलेश की PDA का भी लिटमस टेस्ट होना है। लोकसभा के बाद अखिलेश का PDA चलेगा औऱ मायावती की हाथी फिर उठेगा या नहीं ये भी पता चलेगा।  उत्तर प्रदेश की जिन 9 सीटों पर मुकाबला हो रहा है, उसमें बीजेपी के पास 5 सीटें और अखिलेश के पास 4 सीटें थी।

उपचुनावों को लेकर योगी गंभीर

दरअसल, उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को झटका लगने के बाद पार्टी में खलबली मच गई थी। कुछ वरिष्ठ नेताओं ने सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए थे । अब उपचुनावों में आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद योगी आदित्यनाथ हरकत में आ गए और उपचुनावों की तैयारियां शुरू कर दी थी। मुख्यमंत्री ने उपचुनाव को पार्टी की प्रतिष्ठा बहाल करने और विरोधियों को यह संदेश देने के अवसर के रूप में देखते हुए खुद नेतृत्व करना शुरू कर दिया। और यह संदेश देने की कोशिश की कि उनका करिश्मा अभी खत्म नहीं हुआ है। 

सीएम योगी ने सभी निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा किया और अभियान की रणनीति बनाने के लिए स्थानीय पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कीं। उन्होंने इन सभी विधानसभा क्षेत्रों में कई जनसभाओं को संबोधित किया। इसके अलावा, राज्य सरकार ने युवाओं को लुभाने के लिए "रोजगार मेले" आयोजित किए और किसानों और महिलाओं के लिए विभिन्न योजनाओं की शुरुआत की घोषणा की। 

पार्टी कार्यकर्ताओं को किया संगठित

उपचुनाव वाली नौ सीटों में से करहल, कुंदरकी, सीसामऊ और कटेहरी को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। चार महीने के आक्रामक अभियान में, योगी ने सपा के किले को भेदने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को संगठित किया। अभियान की रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने तीन मंत्रियों के समूह भी गठित किए, प्रत्येक समूह को एक निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किया और उन्हें अभियान के लिए जमीनी कार्य पूरा करने का काम सौंपा। उन्होंने चुनाव अभियान को गति देने के लिए भाजपा की राज्य इकाई के शीर्ष नेताओं की उच्च स्तरीय बैठकों की अध्यक्षता की। अपना समर्थन आधार फिर से हासिल करने के लिए, भाजपा, जो नौ में से आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है, ने चार ओबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का फैसला किया है। 

अखिलेश को भरोसा, फिर चलेगा पीडीए

योगी की प्रचार शैली के विपरीत, सपा प्रमुख अखिलेश यादव की गतिविधियां पार्टी कार्यालय में स्थित एक चुनावी वार रूम तक ही सीमित रहीं। अभियान के सूक्ष्म प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए, वह रणनीति को बेहतर बनाने के लिए नौ विधानसभा क्षेत्रों के पार्टी नेताओं और पदाधिकारियों के साथ बैठकें कर रहे हैं क्योंकि उन्हें विश्वास है कि आजमाया हुआ पीडीए फॉर्मूला (पिछड़ा या पिछड़ा, दलित और अल्पसख्यक या अल्पसंख्यक) फिर से काम करेगा।

इस पीडीए फॉर्मूले ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन की बड़ी जीत का मार्ग प्रशस्त किया। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और लोकसभा की 37 सीटों पर उसे सफलता मिली। इसके सहयोगी, कांग्रेस ने छह सीटें जीतीं, जिससे एनडीए के 36 के मुकाबले उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन सांसदों की संख्या 43 हो गई। अखिलेश यादव बूथ समितियों को मजबूत कर रहे हैं, स्थानीय नेताओं के बीच विवादों को सुलझा रहे हैं, पार्टी नेताओं को मतदाता सूचियों की जांच करने और सभी निर्वाचन क्षेत्रों में सोशल मीडिया की उपस्थिति को मजबूत करने का निर्देश दे रहे हैं। वह पार्टी नेताओं को उन गांवों और मोहल्लों में बैठकें करने का निर्देश दे रहे हैं, जिन्हें भाजपा का मजबूत आधार माना जाता है।

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