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एक कवयित्री, एक रसूखदार मंत्री और एक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट... ये है 20 साल पुराने मधुमिता हत्याकांड की कहानी

यूपी सरकार में जिस मंत्री के नाम पर पूरा सिस्टम चल रहा था, उस कद्दावर नेता का एक कवयित्री के हत्याकांड में नाम कैसे आया। 20 साल पुराने इस हत्याकांड में दो बड़े ट्विस्ट ने इस पूरे केस की दिशा बदलकर रख दी थी।

Written By: Swayam Prakash @swayamniranjan_
Published on: August 25, 2023 15:20 IST
madhumita murder case- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV GFX मधुमिता हत्याकांड की कहानी

उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि को कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में कारागार विभाग द्वारा रिहाई का आदेश जारी कर दिया गया है और आज ये दोनों शुक्रवार जेल से रिहा हो सकते हैं। इस समय अमरमणि और उनकी पत्नी दोनों गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में हैं। जैसे ही इस मामले में अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी की रिहाई की खबर सामने आई तो इस हत्याकांड की यादें ताजा हो गईं। 20 साल पुराने हत्याकांड की पूरी कहानी हम आपको बताएंगे।

9 मई 2003 की वो तारीख...

ये साल 2003 की बात है। एक कवयित्री थी जो अपने करियर में उभर ही रही थी। उस कवयित्री का नाम था मधुमिता शुक्ला। लेकिन 9 मई 2003 की मनहूस तारीख को जब वह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित पेपर मिल कॉलोनी में थी तब अचानक उसके टू-रूम अपार्टमेंट में कुछ लोग घुसते हैं और उसके शरीर में गोलियां उतार देते हैं। कवयित्री मधुमिता शुक्ला मात्र 24 साल की थीं। इस मामले की जैसे ही पुलिस को खबर लगी तो वह मौके पर पहुंची और जांच शुरू की। अब तक मौत के कारण तक पुलिस नहीं पहुंच पाई थी। शायद ही पुलिस ने भी सोचा हो कि इस हत्याकांड में जल्द ही बहुत बड़ा ट्विस्ट आने वाला है। 

सियासत तक पहुंचे खून के छींटे
पुलिस ने जब मधुमिता की मर्डर मिस्ट्री सुलझानी शुरू की तो उनके नौकर से पूछताछ शुरू की। जब मधुमिता शुक्ला के नौकर ने पुलिस को सामने अपना मुंह खोला तो ऐसा खुलासा हुआ कि प्रदेश की राजनीति तक इस खून के छींटे जा पहुंचे। मधुमिता के नौकर देशराज ने पुलिस को बताया था कि कवयित्री मधुमिता और उस वक्त के कद्दावर मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा था। ये साल था 2003। उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी और बसपा सरकार में अमरमणि त्रिपाठी कद्दावर मंत्री माने जाते थे। हत्याकांड में इतना बड़ा नाम आने के बाद पुलिस फूंक-फूंककर कदम रख रही थी। 

एक DNA रिपोर्ट और रास्ते से ही लौट गया शव
मधिमिता की हत्या के बाद प्रोटोकॉल के हिसाब से पुलिस ने शव का पोस्टमॉर्टम कराया और कवयित्री की डेडबॉडी उनके घर लखीमपुर के लिए रवाना कर दी। इसी दौरान पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट आ गई थी। जांच में शामिल एक पुलिस अधिकारी ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पर जब पैनी नजर डाली तो पूरे मर्डर केस का सबसे बड़ा टर्निग प्वाइंड पकड़ में आ गया। मधुमिता की मेडिकल रिपोर्ट में लिखा था कि वह मौत के वक्त गर्भवती थीं। ये एक सुराग पाते ही पुलिस ने बिना कोई देरी किए लखीमपुर जा रहे मधुमिता के शव को रास्ते में ही रुकवा दिया और तत्काल लखनऊ मंगवाकर दोबारा जांच के लिए भेजा। जांच के बाद सामने आई डीएनए रिपोर्ट ने पूरे केस को खोल कर रख दिया था। कवयित्री मधुमिता की डीएनए रिपोर्ट में सामने आया कि उनके पेट में पल रहा बच्चा उत्तर प्रदेश के कद्दवार मंत्री अमरमणि त्रिपाठी का है।

पूरा सिस्टम अमरमणि के लिए कर रहा था काम
मधुमिता हत्याकांड में जैसे ही प्रदेश की सियासत का इतना बड़ा नाम आया तो बसपा सरकार पर निष्पक्ष जांच के लिए दबाव बढ़ने लगा। मामले की जांच केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो (CBI) को दी गयी। केस हाथ में आते ही सीबीआई ने अमरमणि त्रिपाठी को सितंबर 2003 में गिरफ्तार कर लिया। अमरमणि त्रिपाठी कोई साधारण नाम नहीं था। वो राज्य सरकार में मंत्री था, सिस्टम के सबसे ऊपर बैठा था और सरकार में उनका प्रभाव था। लिहाजा मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला को समझ आ गया था कि सारा सिस्टम अमरमणि त्रिपाठी के लिए काम कर रहा था। इसके बाद मधुमिता की बहन निधि ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उनकी याचिका पर ये हाई प्रोफाइल मामला देहरादून हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया। ये साल 2005 था।

जेल में रहकर चुनाव में प्रचंड जीत और हो गई सजा
तारीख दर तारीख कोर्ट में दलीले पेश होती रहीं, लेकिन अभी तक मधुमिता के हत्यारे अमरमणि को सजा नहीं सुनाई गई थी। सुनवाई चलती रही... उत्तर प्रदेश में 2007 के विधानसभा चुनाव आ चुके थे, लेकिन अदालत का फैसला अब तक नहीं। अमरमणि त्रिपाठी सिर्फ सलाखों के पीछे था, लेकिन उसका नाम अभी भी प्रदेश राजनीति में चमक रहा था। जेल में रहते हुए ही अमरमणि त्रिपाठी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा।

इस विधानसभा चुनाव में महराजगंज जिले की लक्ष्मीपुर सीट से अमरमणि त्रिपाठी ने जेल के अंदर बैठकर जबरदस्त जीत हासिल की थी। अमरमणि ने ये जीत 20 हजार वोटों के अंतर से अपने नाम की थी। यहां मई 2007 में चुनाव परिणाम आए और वहां अक्टूबर 2007 में देहरादून की अदालत ने मधुमिता की हत्या के लिए अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को आजीवन कारावास की सजा सुना दी। बाद में नैनीताल हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी दंपति की सजा को बरकरार रखा था। 

बीजेपी से मंत्री, सपा और बसपा में भी रहे 
महराजगंज जिले की लक्ष्‍मीपुर (अब नौतनवा) विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित अमरमणि त्रिपाठी 2001 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री रह चुके हैं। मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान वह समाजवादी पार्टी (सपा) में थे और फिर वह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में चले गये। 

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