Wednesday, January 08, 2025
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सुप्रीम कोर्ट पहुंचा संभल मस्जिद का मामला, शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश की बेंच करेगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में एक पक्ष शाही जामा मस्जिद का प्रबंधन है, जबकि दूसरा पक्ष हरि शंकर जैन का है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की बेंच शुक्रवार को सुनवाई करेगी।

Edited By: Shakti Singh
Published : Nov 28, 2024 20:13 IST, Updated : Nov 28, 2024 20:34 IST
Sambhal
Image Source : PTI संभल में मस्जिद के पास तैनात पुलिसकर्मी

उत्तर प्रदेश के संभल की शाही जामा मस्जिद का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। इस याचिका में ⁠निचली अदालत के सर्वे के आदेश को चुनौती दी गई है। याचिका में मांग की गई है कि ⁠निचली अदालत के फैसले पर तुंरत रोक लगाई जाए। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की बेंच शुक्रवार को सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट में एक पक्ष शाही जामा मस्जिद का प्रबंधन है, जबकि दूसरा पक्ष हरि शंकर जैन का है। ⁠मुस्लिम पक्ष ने मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना से जल्द सुनवाई की मांग की है। प्रीम कोर्ट में कहा गया है कि ये असाधारण मामला है इसलिए अदालत को असाधारण कदम उठाना चाहिए।

संभल मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि 1526 में मुगल शासक बाबर ने एक हिंदू मंदिर को तोड़कर शाही जामा मस्जिद का निर्माण किया था। यह जगह मूल रूप से हरिहर मंदिर की है। ऐसे में मस्जिद का मालिकाना हक हिंदू पक्ष को मिलना चाहिए।

क्यों हुआ विवाद?

हिंदू पक्ष की तरफ से वकील हरि शंकर जैन ने याचिका दाखिल की थी, जिसे निचली अदालत ने स्वीकार कर लिया और उसी दिन सर्वे के लिए अधिवक्ता नियुक्त करने का निर्देश दिया। अधिवक्ता नियुक्ति होने के बाद उसी दिन मस्जिद का सर्वे भी हो गया। अगले दिन भी प्रशासन की टीम सर्वे के लिए पहुंची। इसके बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प में चार लोगों की मौत हो गई, जबकि 20 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हुए। हिंसा के बाद से संभल का मामला तूल पकड़ चुका है।

क्या है मुस्लिम पक्ष का दावा?

मुस्लिम पक्ष का कहना है कि निचली अदालत ने उनका पक्ष सुने बिना ही फैसला सुना दिया। इसलिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। इसके अलावा मुस्लिम पक्ष का कहना है कि जामा मस्जिद संरक्षित स्मारक है, जिसे प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 के तहत 22 दिसंबर 1920 को अधिसूचित किया गया था। सरकार इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक भी घोषित कर चुकी है और यह मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की केंद्र की ओर से संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल है। मुस्लिम पक्ष यह भी कह रहा है कि प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत 1947 से पहले बने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा की जानी चाहिए। हालांकि, इससे पहले ज्ञानवापी और मथुरा के मामले में कोर्ट याचिका स्वीकार कर चुका है। अदालत का मानना है कि ये मामले प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के दायरे से बाहर हैं।

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