प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंदिरों से जुड़े मुकदमों के काफी समय से लंबित रहने पर दुख जताते हुए कहा है कि अधिवक्ताओं और जिला प्रशासन से जुड़े लोगों को मंदिरों के प्रबंधन और नियंत्रण से दूर रखा जाना चाहिए। अदालत ने यह टिप्पणी मथुरा के एक मंदिर से जुड़े विवाद में एक ‘रिसीवर’ की नियुक्ति के संबंध में अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान की। अदालत को बताया गया कि मथुरा में मंदिरों से जुड़े 197 दीवानी मुकदमे लंबित हैं।
शुरुआत में ही रोका जाना चाहिए
मथुरा जिले के देवेंद्र कुमार शर्मा और एक अन्य व्यक्ति द्वारा दायर अवमानना याचिका का निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा, “यदि मंदिरों और धर्मार्थ ट्रस्ट का प्रबंधन और संचालन धार्मिक बिरादरी से जुड़े लोगों द्वारा न करके बाहरी लोगों द्वारा किया जाता है, तो लोगों की आस्था घटेगी। इस तरह के कार्यों को शुरुआत में ही रोका जाना चाहिए।” अदालत ने कहा, “अब समय आ गया है कि इन सभी मंदिरों को मथुरा में वकालत कर रहे अधिवक्ताओं के चंगुल से मुक्त किया जाए और अदालतों को यदि आवश्यक हो, तभी ‘रिसीवर’ नियुक्त करने का प्रयास करना चाहिए। नियुक्त किया जाने वाला ‘रिसीवर’ मंदिर के प्रबंधन से जुड़ा होना चाहिए और उसका देवता के प्रति कुछ झुकाव होना चाहिए।”
लटकाकर नहीं रखा जाना चाहिए
उच्च न्यायालय ने कहा, “अमुक ‘रिसीवर’ को वेदों और शास्त्रों का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। अधिवक्ताओं और जिला प्रशासन से जुड़े लोगों को इन प्राचीन मंदिरों के प्रबंधन और संचालन से दूर रखा जाना चाहिए। मंदिर से जुड़े इस मुकदमे को जितना जल्द हो सके, निपटाने का प्रयास होना चाहिए। मामले को दशकों तक लटकाकर नहीं रखा जाना चाहिए।”
लंबी खिंचती है मुकदमे की प्रक्रिया
अदालत ने इन मंदिरों के प्रबंधन के लिए मथुरा में वकालत कर रहे अधिवक्ताओं की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था पर भारी नाराजगी जाहिर की और कहा कि इस रुख से अक्सर मुकदमे की प्रक्रिया लंबी खिंचती है। उसने कहा, “वृंदावन, गोवर्धन और बरसाना के इन प्रसिद्ध मंदिरों में मथुरा के अधिवक्ता ‘रिसीवर’ नियुक्त किए गए हैं। मुकदमे को लटकाए रखना ‘रिसीवर’ के हित में है। मुकदमे को निस्तारित करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता, क्योंकि मंदिर प्रशासन पर संपूर्ण नियंत्रण ‘रिसीवर’ के हाथों में होता है। ज्यादातर मुकदमे मंदिरों के प्रबंधन और ‘रिसीवर’ की नियुक्ति से संबंधित हैं।”
अदालत ने कहा, “वकालत कर रहा एक अधिवक्ता मंदिर के उचित प्रबंधन के लिए आवश्यक समय नहीं दे सकता और वह इसके लिए समर्पित भी नहीं होता। इस तरह की नियुक्तियां समस्या के समाधान के बजाय प्रतिष्ठा का प्रतीक बनकर रह गई हैं।” उसने कहा, “इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए यह अदालत मथुरा के जिला न्यायाधीश से व्यक्तिगत रूप से जहमत उठाने और अपने अधिकारियों को इस आदेश से अवगत कराने के साथ ही मथुरा जिले के मंदिरों और ट्रस्ट के दीवानी मुकदमों को जितना जल्द संभव हो, निस्तारित करने का हर प्रयास करने का अनुरोध करती है।” अदालत ने 27 अगस्त के अपने निर्णय में कहा, “मुकदमे को लंबे समय तक लटकाए रखने से और विवाद ही खड़ा होगा, जिससे इन मंदिरों में परोक्ष रूप से अधिवक्ताओं और जिला प्रशासन का दखल बना रहेगा, जो हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के हित में नहीं है।” ( भाषा)